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पहलवान पत्नी | Hindi Kahaniyan | Moral Stories | Saas Bahoo Ki Kahaniyan | Stories in Hindi | Bed Time Story

आज की इस कहानी का नाम है - " पहलवान पत्नी" यह एक Moral Story in Hindi है। अगर आपको Hindi Kahani, Pati Patni Ki Kahaniyan या Majedar Hindi Kahani पढ़ें
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हेलो दोस्तो ! कहानी की इस नई Series में आप सभी का स्वागत है। आज की इस कहानी का नाम है - " पहलवान पत्नी" यह एक Moral Story in Hindi है। अगर आपको Hindi Kahani, Pati Patni Ki Kahaniyan या Majedar Hindi Kahaniyan पढ़ने का शौक है तो इस कहानी को पूरा जरूर पढ़ें।

पहलवान पत्नी | Hindi Kahaniyan | Moral Stories | Saas Bahoo Ki Kahaniyan | Stories in Hindi | Bed Time Story

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 पहलवान पत्नी 

एक गांव में महेश और आनंदी नाम का पति पत्नी का जोड़ा रहता था। उनके घर में महेश की मां भी थी। उनके परिवार में केवल 3 ही सदस्य थे। शुरुआती 1 साल में सब कुछ ठीक था लेकिन धीरे-धीरे सब कुछ बिगड़ने लगा। 

महेश और महेश की मां आनंदी को हर बात के लिए डांटने लगे; क्योंकि आनंदी अब मोटी होने लगी थी। उसको रूप रंग भद्दा होने लगा था। छोटे-छोटे कामों के बीच महेश की मां आनंदी को खूब डांटने लगी जिससे सुनकर आनंदी अकेले में रोती रहती।

एक दिन महेश अपने काम पर जाने वाला था, उसने आनंदी को आवाज लगाई," आनंदी... खाना लगाओ मेरे लिए, भूख लगी है। " महेश और महेश की मां दोनों टेबल पर बैठ जाते हैं और खाने का इंतजार करने लगते हैं। 

आनंदी को खाना ले जाने में थोड़ी देर हो जाती है तो महेश और महेश की मां दोनों कहते हैं," खाना लाने में इतना समय ? वहां से यहां तक आने में तुमने सारी पूडियों को ठंडा कर दिया। अब इन्हें कैसे खाऊं ? "

आनंदी उन दोनों की बातों को सर झुकाए सुनती रहती है और कुछ नहीं कहती। इतने में महेश आनंदी से कहता है," अब खड़ी-खड़ी मेरी शक्ल क्या देख रही हो,, जाकर सब्जी लेकर आओ। " 

आनंदी थोड़ी देर में सब्जी लेकर आती है। सभी लोग खाना खाकर अपने अपने काम पर लग जाते हैं।

महेश की मां सोफे पर बैठी हुई होती है तभी पड़ोस की एक बूढ़ी औरत उनके घर आती है। वह कहती है," लक्ष्मी... तेरा बेटा तो एकदम हीरो है लेकिन तेरी बहू एकदम मोटी और बदसूरत। "

इस पर महेश की मां जवाब देते हुए कहती है," हां ! सही कहा तुमने लेकिन अब कर भी क्या सकते हैं ? " 


उन दोनों की सारी बातें आनंदी छुपकर सुन रही थी। वे दोनों आपस में बात करते हैं कि ऐसी बहू को तो समाज में भी नहीं ले जा सकते, लोग हसेंगे इसे देखकर। 

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अब आनंदी का सब्र का बांध टूट चुका था। वह बाहर आती है और उन दोनों से कहती है," मां जी मैं इस घर को छोड़कर जा रही हूं। " 

इस पर महेश की मां कहती है," कहां जाओगी ? " 

आनंद कहती है," कहीं भी चली जाऊंगी। वैसे भी तुम्हें मेरे मोटेपन से बहुत ज्यादा समस्या है तो मैं इस घर को छोड़कर चली जाती हूं। "

आनंदी उसी वक्त घर से बाहर निकल जाती हैं। यह देखकर पड़ोस की औरत कहती है," सही है चली गई। तुम्हारे बेटे के सर से एक बला टल गई। अब तुम अपने बेटे की दोबारा शादी कर देना किसी अच्छी सी बहू देखकर।

" हां ! हां ! सही कहा तुमने। "

आनंदी चलते चलते ही थकान महसूस करने लगती है और थोड़ा देर रूकती है और अपने आसपास विश्राम करने की जगह तलाशने लगती है। उसे सामने एक मंदिर दिखाई देता है। वह मंदिर के पास जाती है और उसकी सीढ़ियों पर बैठ जाती है। 

थकान ज्यादा होने की वजह से वह तुरंत बेहोश हो जाती है। इतने में गुरु मां मंदिर से बाहर निकल कर आती हैं। वो तुरंत आनंदी के ऊपर जल का छिड़काव करती हैं और उसे थोड़ा जल पिलाती हैं।

थोड़ी ही देर में आनंदी होश में आ जाती है और दुखी होने लगती है। गुरु मां उसके दुखी होने का कारण पूछने लगती हैं। तो वह कहती है कि मेरी सास और मेरे पति मेरे मोटेपन से परेशान हैं। 

हर रोज वह मुझे उल्टा सीधा कहते हैं और मैं केवल उनकी बातें सुनती  रहती हैं। मुझे बहुत बुरा लगता है अब मैं घर छोड़ कर आ गई हूं कहां जाऊंगी का क्या करूंगी कुछ नहीं पता। गुरु मा अगर आप बुरा ना माने तो मैं आपके साथ ही रह लूंगी इसी मंदिर में। 

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नहीं नहीं बेटा अगर तुम विपत्ति में हो तो 1 दिन के लिए मेरे पास ठहर सकती हो लेकिन तुम इस तरह अपने घर को छोड़कर नहीं आ सकती। तुम्हें घर वापस जाना चाहिए।

आनंदी उस रात उस मंदिर में ही ठहर जाती है। इधर महेश काम पर से वापस लौटता है। लौटते ही वह आनंदी को आवाज लगाता है। लेकिन तभी महेश की मां आ जाती है। वह कहती है कि आनंदी नहीं है, वह घर छोड़कर चली गई है।


महेश गुस्सा होता हुआ कहता है," मुझे भूख लगी है, मेरे लिए खाना लगाओ। 

महेश की मां कहती है," इस बूढ़े शरीर से क्या काम हो सकता है, खाना तो नहीं है। " 

यह सुनकर महेश और गुस्सा हो जाता है और कहता है," तो मैं क्या भूखा सो जाऊं ? आनंदी होती तो अभी तक खाना खा चुका होता। " और चला जाता है।

सुबह नाश्ते के समय महेश की मां आवाज लगाती है," बहू... चाय लेकर आओ। " लेकिन थोड़े ही समय बाद कहती है," आनंदी तो घर छोड़कर चली गई अब तो मुझे ही सब कुछ करना होगा। " 

महेश के मां धीरे - धीरे किचन की ओर जाने लगती है लेकिन तभी उसे चक्कर आ जाते हैं और वह वही फर्श पर गिर जाती है। उसकी तबीयत अचानक से खराब हो जाती है।

इधर गुरु मां आनंदी को समझाते हुए कहती है," बेटा ! घर जाओ। तुम्हें इस तरह घर छोड़कर नहीं आना चाहिए। "

लेकिन आनंदी नहीं मानती तभी गुरु मां कहती है," बेटा ! तुम्हें कुछ अच्छा करना होगा जिससे तुम्हारे परिवार वाले तुम्हारी कदर करें। " और समझाते हुए उसे घर जाने के लिए कहते हैं।

आनंदी गुरु मां का आशीर्वाद लेकर घर की ओर रवाना हो जाती है। वह जैसे ही घर की ओर आती है उसे घर के चारों तरफ काफी भीड़ दिखाई देती है जिससे वह अपने पैरों के रफ्तार को बढ़ा देती है। 

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जैसे ही वह घर में घुसती है और देखती है कि उसकी सासू मां बिस्तर पर पड़ी हुई है और गांव के कुछ लोग उसके चारों तरफ खड़े हुए हैं।

आनंदी पूछती है- मेरी सासू मां को क्या हुआ ? तो उन्हीं में से एक बूढ़ी औरत कहती है," तुम्हारी सासू मां खाना बनाने के लिए जा रही थी तभी अचानक से बेहोश हो गई और जमीन पर गिर गई। "

" तो डॉक्टर को बुलाओ। "

" अभी डॉक्टर नहीं आ रहे हैं। "

" तो एंबुलेंस को फोन करो। "

" आसपास के सभी हॉस्पिटल में एंबुलेंस को कॉल किया है लेकिन कोई भी खाली नहीं है। बोल रहे हैं थोड़ी देर लगेगी। "

" इतने में तो सासु मां मर जाएगी। अब मुझे ही कुछ करना होगा। " यह कहते हुए आनंदी अपनी सासु मां को अपनी गोद में उठा लेती है और हॉस्पिटल के लिए निकल जाती है।


हॉस्पिटल जाकर अच्छे से मां का इलाज करवाती है। इतने में महेश भी वहां आ जाता है। डॉक्टर साहब कहते हैं," अच्छा हुआ जो तुम इन्हें समय पर लेकर आ गए वरना कुछ भी हो सकता था। "

यह सुनकर महेश की आंखों से आंसू टपकने लगते हैं। वह आनंदी को प्यार भरी नजरों से देखता है और उसे ' धन्यवाद ' कहता है। आनंदी हम दोनों मिलकर तुम्हें मोटा - मोटा कहते रहते थे लेकिन तुमने आज हमारे लिए बहुत बड़ा काम किया है। 

इतने में महेश की मां भी होश में आ जाती है और कहती है," बहू... इधर आओ। " आनंदी उनके पास जाती है। महेश की मां कहती है," बेटा ! मैंने ना जाने तुमसे कितना उल्टा सीधा कहा है लेकिन कभी भी तुमने उसका जवाब नहीं दिया ?

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और आज तो तुमने अपनी जान पर खेलकर मेरी जान बचाई है। मैं तुम्हारा शुक्रिया अदा कैसे करूं ? आज से तुम मेरी बहू नहीं और मैं तुम्हारी सांस नहीं बल्कि हम दोनों मां बेटी हैं। 

यह सुनकर आनंदी भावुक हो जाती है और महेश और आनंदी दोनों उसके गले लग जाते है और हंसने लगते हैं।


इस कहानी से आपने क्या सीखा ? नीचे Comment में हमें जरूर बताएं।


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हेलो दोस्तों ! मैं हूं आपका अपना दोस्त, प्रदीप। यहां मैं कुछ अनोखी कहानियों के साथ आपका मनोरंजन करूंगा। अगर आपको हमारा लेखन कार्य पसंद आए तो हमें Support करें और अपना प्यार बनाए रखें।

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