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लालची मिठाईवाली | Lalchi Mithaiwali | Hindi Kahaniya | Moral Stories | Bed Time Story | Hindi Kahani | Hindi Fairy Tales

आज की इस कहानी का नाम है - " लालची मिठाईवाली " यह एक Moral Story है। अगर आपको Hindi Kahaniya, Moral Story in Hindi या Bedtime Stories पढ़ें।
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हेलो दोस्तो ! कहानी की इस नई Series में आप सभी का स्वागत है। आज की इस कहानी का नाम है - " लालची मिठाईवाली " यह एक Moral Story है। अगर आपको Hindi Kahaniya, Moral Story in Hindi या Bedtime Stories पढ़ने का शौक है तो इस कहानी को पूरा जरूर पढ़ें।

लालची मिठाईवाली | Lalchi Mithaiwali | Hindi Kahaniya | Moral Stories | Bed Time Story | Hindi Kahani | Hindi Fairy Tales

Lalchi Mithaiwali | Hindi Kahaniya | Moral Stories | Bed Time Story | Hindi Kahani | Hindi Fairy Tales


एक गांव में 35 वर्षीय कमला ताई नाम की एक औरत रहा करती थी। उसका एक ढाबा था। 

उसके ढाबे पर मिलने वाली रबड़ी बहुत दूर तक मशहूर थी। वो रबड़ी वो खुद बनाती थी। कमला ताई क्रूर और निर्दयी स्वभाव की थी। 

वह गांव में ब्याज पर पैसे उठाने के काम भी करती थी। इस काम के लिए उसने कुछ गुंडे भी पाल रखे थे। 

एक दिन गाँव का सरपंच चतुर सिंह कमला ताई की रबड़ी खाने के लिए आया।

चतुर सिंह," कैसी हो कमला ताई ? "

कमला," मैं तो हमेशा अच्छी ही होती हूँ चतर सिंह जी। आप बताइए ? सुबह सुबह आज आपको मेरी दुकान कैसे याद आ गई ? "


चतुर सिंह," क्या बताऊँ कमला ताई ? कल शाम को तुम्हारी दुकान की रबड़ी खाकर घर जाकर सो गया। पेट तो भर गया था लेकिन अंदर से मन नहीं भरा। 

पूरी रात सपने में तुम्हारी रबड़ी ही आती रही। इसलिए सुबह उठकर तुम्हारी रबड़ी फिर से खाने के लिए आ गया। "

कमला," तब तो आपको कुछ घंटों का इंतजार करना पड़ेगा। चतुर सिंह जी। "

चतुर सिंह," मैं कुछ समझा नहीं। "

कमला," आप तो जानते हैं चतुर सिंह जी, मेरी दुकान की रबड़ी दोपहर के 12 बजे तक बनकर तैयार होती है। "

चतुर सिंह," अरे ! कुछ कल की रबड़ी अगर दुकान पर रखी हो तो वही खिला दो। "

कमला," चतुर सिंह जी आप तो जानते ही हैं, मेरी दुकान पर दूर दूर के गांव के लोग रबड़ी खाने आते हैं। उनमें से बहुत सारे तो बगैर खाये ही लौट जाते हैं क्योंकि रबड़ी खत्म हो जाती है। 

तो कल की रबड़ी बचने का तो कोई सवाल ही नहीं उठता। और वैसे भी अपने गांव में आपके अलावा सिर्फ इक्का दुक्का लोग ही मेरी दुकान पर आते हैं। 

वरना मेरी दुकान तो बाहर के गांव के ग्राहकों से चलती है। "

धैया," अरे मालकिन ! ये गांव वाले बेचारे आपकी रबड़ी कहाँ से खा लेंगे ? मालकिन इन बेचारे के ऊपर तो पहले से ही इतना कर्ज का बोझ है कि इन्हें तो एक वक्त की रोटी मिल जाए तो इनके लिए ये बहुत बड़ी बात है। "

कमला," क्या..? कहना क्या चाहता है धैया ? "

धैया," कुछ नहीं मालकिन, मैं तो बस ये कहना चाहता हूँ कि हमारे गांव में गरीबी बहुत ज्यादा है। "

कमला," मुझे बेवकूफ समझ रखा है तूने ? मैं सब समझती हूँ। तू हँसी हँसी में मुझे ताने देता रहता है। "

चतुर सिंह," अरे ! धैया पर क्यों भड़क रही हो कमला ताई ? वो बेचारा कुछ गलत थोड़ी ही ना बोल रहा है। 

हम सब जानते हैं कि पूरा गांव तुम्हारा कर्जदार है। उन बेचारों की जमीन, जायदाद, खेत सब तुम्हारे पास गिरवी रखे हैं। 

और वो बेचारे जीवन में ना कभी सूत सहित तुम्हारे पैसे लौटा पाएंगे और ना वो अपनी संपत्ति छुड़ा पाएंगे। 

क्योंकि अगर तुम किसी को ₹500 सूत पर देती हो तो अगले महीने उसका सूद ही ₹5000 हो जाता है। लेने वाला तो बेचारा वैसे ही मर जाएगा। "

कमला," अरे ! तो मैं क्या गांव वालों को घर घर जाकर जबरदस्ती कर्जा देती हूँ क्या ? वो मेरी दुकान पर खुद आते हैं पैसे मांगने के लिए। 


पैसे देने से पहले मैं उन्हें सब बता देती हूँ कि मैं सूद और लोगों से थोड़ा ज्यादा लगाती हूँ। इसके बावजूद भी अगर वह नहीं मानते तो उसमें मैं क्या करूँ ? 

और तुम तो इतने भोले बन रहे हो चतुर सिंह जैसे कि तुम तो राजा हरिश्चंद्र की संतान हो। मुझे सब पता है शहर में तुम कौन सा काला कारोबार करते हो ? "

चतुर सिंह," अरे कमला ताई ! तुम तो मेरी बात का बुरा मान गयी। मैं तो बस तुमसे ये कहना चाहता हूँ कि अपने गांव के लोगों पर थोड़ा सा तरस खा लिया करो। "

गुंडे," कमला ताई जी, सुखिया चाचा ने जो सूद पर जो रुपए लिए थे, उसका अभी तक उन्होंने पिछले छह महीने से ब्याज नहीं चुकाया है। "

कमला," अरे ! पूरे 1 लाख रुपए लेकर गया था जिसका ब्याज और असल मिलाकर पूरे 5 लाख रुपए है। जाओ, जाकर पैसे लेकर आओ। "

गुंडे," हम दोनों सुखिया से पैसे ही मांगने गए थे। लेकिन आज उसकी बेटी की शादी है। 

उसकी पत्नी बहुत रो पीट रही थी इसलिए मजबूरी में हम दोनों को वापस आना पड़ा। "

कमला," अरे मुस्तंडो ! रोज़ मेरी दो दो किलो रबड़ी खा जाते हो और तीन तीन किलो पी जाते हो दूध। ये सब मैं तुम्हे मुफ्त का नहीं खिलाती पिलाती। 

उस सुखिया की पत्नी ने तुम्हारे सामने दो आंसू क्या बहा दिए, तुम दोनों पिघल गए ? चलो मेरे साथ... देखती हूँ कैसे पैसे नहीं देता ? 

आज तो मैं उससे अपनी पूरी रकम वसूल करके ही लौटूँगी। "

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सुखिया के घर पहुंचकर...
कमला," सुखिया... अरे ओ सुखिया ! कहाँ मर गया तू ? अरे !कहाँ मुँह छुपाए बैठा है ? हिम्मत है तो यहाँ आकर कमला ताई का सामना कर। "

सुखिया बाहर आता है।

कमला," क्या रे सुखिया ! भीमा और कालिया को तूने बगैर पैसे दिए ही लौटा दिया ? "

सुखिया," कमला ताई जी, आज मेरी बेटी की शादी है। मुझे थोड़ी मोहलत और दे दीजिये। मैं आपके सारे पैसे सूत समेत वापस कर दूंगा। "

कमला," बस, वही मैं तुझे नहीं दे सकती‌। तुझे जितनी मोहलत देनी थी, मैंने दे दी। आज मैं अपने पूरे पैसे लेकर जाऊंगी। 


तेरे ऊपर मेरे पूरे 5 लाख रुपए निकल रहे हैं। चल जल्दी से निकाल मेरे पैसे। "

सुखिया," क्या... 5 लाख रुपए ? लेकिन आपने तो कहा था कि मेरे ऊपर सिर्फ 2 लाख रुपए निकल रहे हैं। "

कमला," अरे ! वो सब कहा था जब तू समय पर पैसे दे देता। लेकिन तू अपने वादे से पूरे दो महीने लेट हो गया। तो ब्याज ब्याज दोगुना लगेगी। "

सुखिया," ऐसा अत्याचार मेरे ऊपर मत कीजिए कमला ताई। मैं बर्बाद हो जाऊंगा। "

कमला," मुझे फरक नहीं पड़ता है। अगर सूत पर पैसे लिए है तो लौटाने तो पड़ेंगे। "

सुखिया," कमला ताई जी, मैं तो सोच रहा था कि मेरी जो गांव की जमीन पड़ी है, उसे बेचकर मैं आपके सारे पैसे चुका दूंगा। लेकिन 5 लाख रुपए मैं आपको कहाँ से दूंगा ? 

अगर मैं अपना घर और जमीन भी बेच दूं तब भी मैं इतने पैसे नहीं जुटा सकता। "

कमला," कोई बात नहीं सुखिया, तूने अपनी बेटी के विवाह में जो गहने बनवाए हैं वो किस काम आएँगे ? मैं तुझे 15 दिन की मोहलत देती हूँ। 

15 दिन के अंदर इस घर को खाली कर देना। अगर तुने ऐसा नहीं किया तो ठीक 15 दिन बाद मैं तुझे इस घर से धक्के देकर बाहर निकालूंगी। 

पर हाँ, जो जमीन तू बेचने की बात कर रहा था ना, अब वो भी मेरी ही है। तब तक आज मैं तेरी बेटी के गहनों से काम चला लूँगी। "

कमला," देखते क्या हो..? घर का कोना कोना छान मारो। इसने अपनी बेटी के विवाह के लिए जो गहने बनवाए हैं, उठाकर मेरी दुकान पर ले आना। "

इतना कहकर कमला ताई वहाँ से चली गई। सुखिया बेचारा भीमा और कालिया के सामने हाथ जोड़ता रह गया। उन दोनों ने सुखिया की एक भी नहीं सुनी।

वो सुखिया की बेटी के विवाह के गहने जबरदस्ती लेकर वहाँ से चले गए। सारा गांव सुखिया के घर पर इकट्ठा हो गया।

सुखिया की पत्नी निर्मला रोते हुए बोली।

निर्मला," हे भगवान ! ये कैसा न्याय है ? आज मेरी बेटी की शादी थी और आज के दिन वो कमला ताई मेरी बेटी के गहने छीनकर ले गई। मेरी बेटी से अब विवाह कौन करेगा ? "

सुखिया," गांव वालो जिस तरह से अन्याय करना एक पाप है, उसी तरह से किसी के ऊपर अन्याय होते हुए देखना भी एक पाप की श्रेणी में आता है। 

क्या तुम सबका ये कर्तव्य नहीं था कि तुम कमला ताई को ऐसा करने से रोकते ? अगर ऐसा ही रहा तो वो दिन दूर नहीं जब सारा गाँव कमला ताई का गुलाम बन जाएगा। "


रतन," बन जाएगा नहीं सुखिया चाचा बल्कि बन गया है। देखो इन चेहरों को... ये सिर्फ नाम के जीवित प्राणी हैं। "

चतुर सिंह," मुझे तुझसे पूरी हमदर्दी है सुखिया। लेकिन तुझे कमला ताई से सूत पर पैसे लेने की आखिर ऐसी क्या जरूरत आ पड़ी थी ? 

तुझे मैंने मना किया था लेकिन तुने मेरे मना करने के बावजूद मेरी एक बात नहीं मानी और अंजाम तेरे सामने है। अरे मुझे तो पहले से ही पता था कि तेरे साथ कुछ ऐसा ही होगा। "

रतन," आप सही कहते हैं चतुर सिंह चाचा। लेकिन अब कमला ताई का कुछ ना कुछ तो करना पड़ेगा। उसका आतंक अब गांव में दिन व दिन बढ़ता जा रहा है। "

चतुर सिंह," अरे ! तू क्या कर लेगा रतन ? गांव की पुलिस भी कमला ताई से मिली हुई है। 

टोंडे को महीने में अच्छी खासी रकम पहुंचाती है। इसलिए हम सब गांव वालों की कोई रिपोर्ट नहीं लिखता। "

सुखिया," अरे ! तो तुम किस काम के चतुर सिंह हो ? सारे गांव वालो ने मिलकर तुम्हे अपना चतुर सिंह चुना है। 

जब तुम ही ऐसी बात करोगे तो फिर बाकी गाँव वालो का क्या होगा ? "

चतुर सिंह," अगर ऐसी बात है तो फिर मैं अभी और इसी वक्त चतुर सिंह का पद त्यागने को तैयार हूँ। मगर मैं कमला ताई से पंगा नहीं ले सकता। समझ गए ना तुम लोग ? "

रतन ," हाँ, आप तो ऐसा बिलकुल बोलोगे क्योंकि आप तो रोजाना उसकी रबड़ी खाने जाते हैं और आपको तो उसकी रबड़ी बहुत पसंद है। "

चतुर सिंह," सिर्फ मुझे ही नहीं बल्कि उसकी रबड़ी दूर दूर तक मशहूर है। "

रतन,":हाँ, लेकिन वो दूर के लोग नहीं जानते ना कि कमला ताई रबड़ी की आड़ में गांव के लोगों के ऊपर अत्याचार करती है। उन्हें नाजायज दबाती है। 

आप सबको ये कायर भरा जीवन मुबारक हो। मगर मैं इस कायरता में नहीं रह सकता। मैं जा रहा हूँ गांव छोड़कर। "

चतुर सिंह," अगर जाना चाहता है तो जा। हम सबके ऊपर ठीकरा फोड़कर क्यों जा रहा है ?

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इतनी ही ज्यादा अगर तेरे मन में सच्चाई की आग लगी हुई है तो जाकर तू खुद कमला ताई से बात क्यों नहीं कर लेता और अगर खुद बात नहीं कर सकता तो जाकर उसके खिलाफ़ थाने में रिपोर्ट दर्ज करा दे। "


रतन," गांव छोड़ने से पहले ये काम भी ज़रूर करूँगा। मैं तुम्हारी तरह कायर नहीं हूँ, चतुर सिंह जी। "

थाने पहुंचकर...
रतन," मुझे कमला ताई रबड़ी वाली के खिलाफ़ रिपोर्ट दर्ज करवानी है, टोंडे साहब। "

टोंडे (इन्स्पेक्टर)," अच्छा... क्या किया कमला ताई ने तेरे साथ ? "

रतन," मेरे साथ नहीं, लेकिन गांव वालों के साथ जरूर किया है। कमला ताई रबड़ी बेचने की आड़ में गांव वालों को नाजायज दबाती है। 

उन्हें कम पैसे कर्ज पर देकर बहुत भारी ब्याज वसूलती है और ब्याज ना दे पाने की सूरत में उनके मकान और उनके जमीन पर कब्जा कर लेती है। "

टोंडे," तुझे शर्म नहीं आती है एक वेधवा पर ऐसा इलज़ाम लगाते हुए ? एक तो बेचारी का पति 10 साल पहले मर चुका है। 

तब से वो बेचारी रबड़ी बेच बेचकर अपना धंधा कर रही है। सीधी तरह से यहाँ से निकल जा, वरना इतना मारूंगा कि सारी सच्चाईगीरी निकल जाएगी। निकल यहाँ से। "

रतन समझ गया कि टोंडे कमला ताई रबड़ी वाली से मिला हुआ है। वह चुपचाव गांव की सीमा से बाहर निकल गया।

रास्ते में वह एक आदमी से टकरा गया।

रतन," माफ़ करना भाई, अंधेरे की वजह से मैं आपको देख नहीं पाया। "

आदमी," कोई बात नहीं, वैसे तुम काफी चिंतित नजर आ रहे हो। सब कुछ ठीक तो है ना ? "

रतन," मैं गांव छोड़कर जा रहा हूँ। "

आदमी," गांव छोड़कर जा रहे हो, लेकिन क्यों ? "

रतन," अब तुम्हें क्या बताऊँ ? तुम तो वैसे भी परदेसी गांव के लगते हो। "

आदमी," तुम मुझे गांव की हर बात बता सकते हो, रतन। "

रतन," तुम मेरा नाम कैसे जानते हो ? "

आदमी," मैं तुम्हें भी जानता हूँ और तुम्हारे माता पिता को भी जानता हूँ। ये बात अलग है कि जब मैंने तुम्हे आखरी बार देखा था तब तुम 15 साल के थे। लेकिन आज तुम 25 साल के गबरू जवान हो चुके हो। "

रतन," मुझे आपकी आवाज पहली बार जानी पहचानी महसूस तो हुई थी। कौन हैं आप ? "

आदमी," वो सब छोड़ो। ये बताओ कि तुम गांव छोड़कर क्यों जाना चाहते हो ? गांव में सब कुछ ठीक तो है ना ? "

सब कुछ सुनने के बाद...
आदमी," चिंता मत करो रतन, कल कमला ताई रबड़ी वाली का गांव में आतंक समाप्त हो जाएगा। क्योंकि अब मैं आ गया हूँ। चलो मेरे साथ। "


कमला ताई के ढाबे पर...
धैया," ये आदमी इस गाँव का तो नहीं लगता। लेकिन फिर भी पता नहीं क्यों इसकी शक्ल काफी जानी पहचानी महसूस होती है ? "

कमला," अरे ! क्या खाक जानी पहचानी महसूस होती है ? पूरे दो किलो रबड़ी खा चुका है अब तक। "

धैया," लेकिन आपने एक बात पर गौर नहीं किया। ये व्यक्ति जब से यहाँ पर बैठा है तब से तो बाहर ग्राहकों की भीड़ और ज्यादा लगी हुई है। "

कमला," तो तू कहना क्या चाहता है ? इस व्यक्ति के शुभ कदम से मेरी दुकान पर ग्राहकों की भीड़ लगी हुई है ? 

अरे ! इसके जैसे पता नहीं कितने आते हैं, कितने जाते हैं। इसकी शकल तो देख... कितना गंदा मालूम होता है ? 

ऐसा लगता है इसने बरसों से अपनी दाढ़ी और बाल नहीं कटवाए। मुझे तो सोच सोचकर घबराहट हो रही है। 

पता नहीं इसके पास पैसे भी होंगे या नहीं ? "

धैया," सही कह रही हो कमला ताई। वैसे अगर इसके पास पैसे नहीं निकले तो आप क्या करेंगी ? "

चतुर सिंह," मैं कुछ समझा नहीं। कमला ताई ने तो बताया था कि 10 साल पहले रात के वक्त तुम्हारा ट्रैन से पैर फिसल जाने की वजह से देहांत हो गया और हम सब गांव वालों ने उसकी बात पर यकीन कर लिया। "

आदमी," झूठ बोलती है कमला ताई। सच तो यह है कि ट्रैन में इसने मुझे धक्का दिया था। 

क्योंकि मेरी सारी जायदाद पर ये कब्ज़ा करना चाहती थी। मुझसे पहले ना जाने ये कितने लोगों को धोखा दे चुकी थी। 

लेकिन मुझे ट्रैन से धक्का देकर फिर ये इसी गांव में ही रहने लगी और इसने अपना धंधा बदल लिया। मेरे पैसों का गलत इस्तेमाल किया है कमला ताई ने‌। 

मेरी मेहनत की कमाई गांव वालों को कर्ज के रूप में देकर उनसे उनका सब कुछ छीन लेना... आजकल यही धंदा अपना रखा है इस कमला ताई ने। "

कमला," ये झूठ बोल रहा है। क्या सबूत है इसके पास, ये मेरा पति है ? "

चतुर सिंह," कमला ताई झूठ ये नहीं झूठ तुम बोल रही हो। ये रमेश ही है। 

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भला क्या मैं रमेश को नहीं पहचानता ? और सिर्फ मैं ही नहीं बल्कि सारा गांव पहचानता है। "

कमला," क्या सबूत है कि मैंने इनको ट्रैन से धक्का देकर आई ? अगर इनके पास सबूत है तो ये गांव के टोंडे के यहाँ जाकर रिपोर्ट लिखवाकर मुझे गिरफ्तार करवा दें। "


आदमी," मैं जानता हूँ कि टोंडे तुमसे मिला हुआ है। इसलिए मैं पहले से ही बंदोबस्त करके आया हूँ। "

तभी भीड़ में से कुछ पुलिस वाले निकलकर कमला ताई के सामने आकर खड़े हो गए। उन पुलिस वालों को देखकर कमला ताई बुरी तरह से डर गई और उसने अपना सारा जुर्म कबूल कर लिया। 

पुलिस ने कमला ताई को गिरफ्तार करके जेल में भेज दिया और रमेश, खुशी, खुशी गांव में रहने लगा। अब कमला ताई का आतंक गांव से समाप्त हो गया था।

इस कहानी से आपने क्या सीखा ? नीचे Comment में हमें जरूर बताएं।
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हेलो दोस्तों ! मैं हूं आपका अपना दोस्त, प्रदीप। यहां मैं कुछ अनोखी कहानियों के साथ आपका मनोरंजन करूंगा। अगर आपको हमारा लेखन कार्य पसंद आए तो हमें Support करें और अपना प्यार बनाए रखें।

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