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कंजूस सेठ | Kanjoos Seth | Hindi Kahaniya | Moral Stories | Bed Time Story | Hindi Stories | Hindi Fairy Tales

आज की इस कहानी का नाम है - " कंजूस सेठ " यह एक Moral Story है। अगर आपको Hindi Stories, Bedtime Story या Hindi Kahaniya पढ़ें।
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हेलो दोस्तो ! कहानी की इस नई Series में आप सभी का स्वागत है। आज की इस कहानी का नाम है - " कंजूस सेठ " यह एक Moral Story  है। अगर आपको Hindi Stories, Bedtime Story या Hindi Kahaniya पढ़ने का शौक है तो इस कहानी को पूरा जरूर पढ़ें।

कंजूस सेठ | Kanjoos Seth | Hindi Kahaniya | Moral Stories | Bed Time Story | Hindi Stories | Hindi Fairy Tales

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 कंजूस सेठ 

मोतीपुर नामक एक छोटे से गांव में सेठ करोड़ीमल रहता था। वह था तो बहुत अमीर लेकिन उतना ही कंजूस भी था। पूरे गांव वाले उसके इस कंजूस बनने से बहुत परेशान थे।

एक दिन सेठ बाजार में एक आलू की दुकान पर जाता है।

सेठ," अरे ओ भाई ! आलू कैसे दिए ? "

आदमी," ₹10 किलो सेठ जी। "

सेठ," अरे ओ भाई ! आलू बेच रहे हो या सोना ? इतने महंगे आलू भैया इतने महंगे। "

आदमी," सेठ जी, इस पूरे रामपुर गांव में इसी दाम के आलू बिक रहे हैं। सभी ये खरीद रहे हैं और आपको महंगे लग रहे। आपको लेना हो तो लो वरना रहने दो। "

सेठ," अरे !नहीं भाई, इतने महंगे आलू का भला मैं क्या करूंगा? नहीं चाहिए भाई ये आलू तुम्हारे, रखो अपने पास। "

वही कुछ दूरी पर चलकर सेठ करोड़ीम को एक कपड़ो की दुकान दिखती है।

दुकानदार," अरे सेठ जी ! आइए आइए, कल ही बहुत सुन्दर सुन्दर साड़ियां लेकर आया। ये देखिए। आप भी ले जाइए भाभी जी के लिए। खुश हो जाएंगी वो। "

सेठ," हाँ हाँ, क्यों नहीं ? चलो आज ले ही जाता हूँ मंजूरी के लिए साड़ी। कब से वो बोल रही है मुझे एक नई साड़ी के लिए ? हाँ, ये बताओ भैया कितने की दोगे ये साड़ी ? "


दुकानदार," अरे ! ज्यादा महँगी नहीं है। सेठ जी बस ₹500 की है। "

सेठ," क्या कहा ? ₹500 ? अरे भाई ! इतनी महंगी... वो भी यह मामूली सी साड़ी ? नहीं नहीं भाई... रहने दो। मंजूरी भला इतनी महंगी साड़ी का क्या करेगी ? "

उसके बाद सेठ वहाँ से आगे चला जाता है।

दुकानदार," अरे पता नहीं कब इस कंजूस सेठ को थोड़ी सद्बुद्धि आएगी। जब देखो तब कंजूसी... हैं।

सेठ अपने घर जाता है। 

मंजूरी," अरे आ गए आप ? आपको आलू लाने के लिए कहा था। ये क्या ? आप तो खाली हाथ ही आ गए ? अब मैं क्या बनाउंगी ? "

सेठ," अरे भाग्यवान ! बहुत महंगे थे आलू इसलिए नहीं लाया। पर तुम कुछ और सब्जी बना लो। "

मंजूरी," हे भगवान ! पता नहीं ये किस आदमी से पाला पड़ गया है ? हर वक्त तुम्हारी कंजूसी से तंग आ गई हूं। मुझे कुछ नहीं पता। 

मेरा कई दिनों से आलू खाने का मन है। कल मुझे आलू चाहिए बस वरना मैं कल खाना नहीं बनाऊंगी। बता देती हूँ आपको। "

अगली सुबह एक नौकर सेठ के पास आता है।

नौकर," सेठ जी, आपने कई महीनों से मेरी पगार नहीं दी है।

सेठ," अरे ! पिछले महीने ही तो दी थी, तुझे तेरी पगार...।"

नौकर," सेठ जी, वो पिछले महीने की बात नहीं। कई महीने बीत चुके हैं उस पगार को तो। "

मंजूरी," अरे ! क्यों करते हैं आप ऐसा ? दे दीजिए ना बेचारे को पगार। आखिर उसे भी तो अपने बीवी बच्चे पालने होते हैं। आप 
भी क्यों इतनी बहस करते हैं जी ? "


सेठ," अरे ! हाँ हाँ ठीक है तुम चुप रहो। मैं कहीं भागा थोड़े ही जा रहा हूँ। दे दूँगा इसकी पगार। कल आकर लेकर जाना ठीक है। "


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नौकर (उदास मन से)," ठीक है सेठ जी, जैसी आपकी मर्जी। "

ये बोलकर नौकर वहां से चला जाता है। अगली सुबह सेठ अपनी दुकान पर जा रहा होता है कि तभी गांव के दो लोग आपस में बात कर रहे होते हैं।

पहला आदमी," अरे भइया ! सुना है... पास वाले गांव में बहुत सस्ते में आलू की बोरियां मिल रही हैं।"

दूसरा आदमी," हां भाई, सुना तो है। मैं तो कल ही जाऊंगा। आखिरी ऐसा मौका फिर मिले या न मिले।

सेठ," अरे ! सस्ते में आलू की बोरियां। अरे! वहां तो मैं जरूर जाऊंगा पास वाले गांव में और मंजूरी को सस्ते मैं खूब सारे आलू लाकर दे दूंगा... हां। "

थोड़ी ही देर में सेठ दूसरे गांव पहुंचता है और काफी सस्ते में ही आलू की बोरी ले लेता है।

सेठ," ओ हो ! अब मैं ये आलू की बोरी लेकर कैसे जाऊंगा ? "

सेठ बोरी को उठाने की कोशिश करता है।

सेठ," अरे ! यह तो बहुत भारी है। मुझसे तो उठ ही नहीं रही। लगता है इसको ले जाने के लिए किसी सवारी की जरूरत होगी। "

तभी उसे रास्ते में एक घोड़े का रथ दिखता है।

सेठ," अरे ओ रथ वाले भैया ! तनिक रामपुर गाँव चलोगे क्या ? "


रथ वाला," अरे ! हाँ सेठ जी, क्यूं नहीं ? बिल्कुल चलेंगे। लेकिन आज हमारे घोड़ों की तबीयत ठीक सी नहीं है। इसलिए जरा आराम से बैठिएगा। "

सेठ," अरे ! हां भाई... ठीक है। "

और रथ चलने लगता है। थोड़ ही देर बाद रथ का घोड़ा बहुत तेज भागने लगता है।

सेठ," अरे भइया ! यह क्या कर रहे हो ? तनिक अपने घोड़े को थोड़ धीरे चलाओ भाई। "

रथ वाला," अरे सेठजी ! मैंने तो पहले कहा था कि मेरे घोड़ की तबियत ठीक नहीं है। अब यह रुक ही नहीं रहा है। "

सेठ," हे भगवान ! अरे आज तो लग रहा है कि तुम्हारा ये घोड़ मेरी जान लेकर ही छोड़ेगा। हे भगवान ! आज मेरी जान बचा ले, पूरे गांव को भोजन कराऊंगा। "

सेठ कई बार ऐसा बोलता है। थोड़ी देर बाद अचानक से घोड़े का रथ रुक जाता है।

सेठ," आज तो बाल बाल बचा वरना ये घोड़ा तो मुझे मार ही डालता। हे भगवान ! तेरा बहुत बहुत धन्यवाद ! "

रथ वाला," अरे सेठजी ! अब तो आपको पूरे गांव को भोजन कराना पड़ेगा। सेठजी, आप मुझे मत भूल जाइएगा। 

मैं अभी जाकर पूरे गांव वालों को बता देता हूं कि करोड़ीमल सेठ पूरे गांव को दावत देने वाले हैं... हां। "

ऐसा बोलते हुए वह रथ वाला वहां से चला जाता है।

सेठ," अरे ! ये क्या बोल दिया मैंने ? ऐसी गलती कैसे हो गई मुझसे ? अब ये रथ वाला सारे गांव वालों को जाकर बता देगा कि मैं दावत देने वाला हूं और सारे गांव वाले मेरे घर आ जाएंगे। 

फिर तो सभी गांव वालों को भोजन कराना पड़ेगा मुझे और अगर सभी गांव वालों को भोजन नहीं कराया तो मेरी बड़ी बदनामी होगी। अरे अरे अरे... ये क्या हो गया मुझसे ? "


ये सोचकर ही सेठ बड़ा उदास हो जाता है। सेठ अपने घर जाता है।

मंजूरी," अरे आ गए आप ? कहां चले गए थे ? काफी देर में लौटे हैं। "

सेठ," अरे मैं तो तुम्हारे लिए आलू की बोरी लेने गया था लेकिन एक नई मुसीबत आ गई। "

मंजूरी," क्या हुआ जी..?? आखिर ऐसी कौन सी मुसीबत आ गई है ? आखिर क्यों ऐसी बातें कर रहे हैं ? "


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सेठ अपनी पत्नी को सारी बात बताता है। 

मंजूरी," अरे ! ये तो कितनी अच्छी बात हुई थी ? आखिर आपकी जान बच गई। आपने खुद ही तो बोला था कि आप सभी गांववालों को भोजन कराएंगे 

और ये तो और भी अच्छी बात है कि हमारे घर सभी गांव वाले दावत पर आएंगे। वो हमें कितनी दुआएं देंगे ? "

सेठ," अरे ! तुम चुप करो भाग्यवान। क्या तुम्हें ये नहीं पता कि गांव वालों के भोजन का खर्चा बहुत महंगा पड़ जाएगा ? 

मेरे इतने सारे पैसे तो दावत में खत्म हो जाएंगे। लेकिन अब तो मुझे गांव वालों को दावत देनी ही पड़ेगी। अब मैं क्या करूंगा ? "

सेठ काफी सोचता है। फिर उसे एक तरकीब सूझती है। सेठ एक हलवाई को अपने घर बुलाता है।


हलवाई," सेठ जी, आपने बुलाया मुझे ? बताइए क्या बनवाना है आपको ?

सेठ," मुझे ऐसे लड्डू बनवाने हैं जो किसी से भी न चबाया जाए तुम एक एक लड्डू काफ़ी बड़ा और ठोस बनाना। "

हलवाई," अरे सेठ जी ! ये आप क्या बोल रहे हैं ? आप ऐसे लड्डू का भला क्या करेंगे जिसे कोई भी न खाए ? "

सेठ," तुमसे जितना बोलना है तुम सिर्फ उतना करो समझे। कल सुबह सारे लड्डू घर पहुंचा देना। "

हलवाई," ठीक है सेठ जी, जैसे आपकी मर्जी। "

ये सभी बातें सेठ की पत्नी के चुपके से खड़ी सुन रही होती है। अगले दिन सुबह सभी गांव वाले सेठ के घर आते हैं। सब एक साथ बैठे होते हैं। 

उनमें से एक गांव वाला...
आदमी," अरे भाई ! आज तो मजा ही आने वाला है। कंजूस सेठ के घर कभी भोजन करने को मिलेगा, ये किसने सोचा था भैया ? भाई वाह ! मैं तो पेट भरकर खाऊंगा भैया... हां। "

दूसरा आदमी," सही बोल रहे हो। आज लगता है... सेठ जी ने बहुत मजेदार मजेदार पकवान बनवाए होंगे। मेरे मुंह में तो ये सोचकर ही पानी आ रहा है भैया... हां। "

इसके बाद सभी गांव वाले हंसने लगते हैं। तभी वहां पर सेठ करोड़ीमल आता है।

आदमी," अरे सेठ जी ! आज तो हम जी भरकर खाएंगे... हाँ। "

सेठ," हाँ हाँ, क्यों नहीं भाईयो? अभी थोड़ देर में तुम्हारे लिए भोजन आता ही होगा। "

तभी गाँव वालों के सामने सेठ का एक नौकर पत्तों से बनी खाने की प्लेट एक एक करके रख देता है। 

काफी देर के इंतजार के बाद...

आदमी," अरे भाई ! न जाने कितनी देर में आएगा भोजन ? "


दूसरा आदमी," हाँ भाई, कब से तो इन्तजार कर रहे हैं। अब तो पेट में चूहे भी कूदने लगे हैं। अब सब्र नहीं होता भाई। "

तभी सेठ की पत्नी एक थाली में बहुत सारे लड्डू लेकर आती है और सबकी प्लेट में एक एक लड्डू रख देती है।

आदमी," अरे सेठ जी सिर्फ एक लड्डू ? अब इसमें भला हमारा क्या होगा ? इस एक लड्डू से तो हमारी भूख ही नहीं मिटेगी। "

सेठ," अरे भाइयों ! ऐसा नहीं है। मैंने आप सभी गांव वालों के लिए काफी सारे पकवान बनवाए हैं। लेकिन मैं आपके साथ एक खेल खेलना चाहता हूँ। "

आदमी," खेल ? कैसा खेल सेठ जी ? "

सेठ," तुम में से जो भी सबसे पहले अपने सामने रखी थाली में रखा लड्डू खा लेगा, उसे ही पकवानों से भरी थाली दी जाएगी और साथ में एक सोने का सिक्का भी दिया जाएगा। "

ये बात सुनकर सभी गांव वाले हैरान हो जाते हैं। सभी गांव वाले अपने सामने रखे लड्डू को उठाते हैं और खाना शुरू करते हैं। 

थोड़ ही देर में गांव वाले अपना अपना लड्डू खत्म कर देते हैं जिसे देख सेठ हैरान हो जाता है। "

सेठ," अरे यह कैसे हो गया ? इन सबने तो ये लड्डू खा ही लिए। हे भगवान ! अब तो इनके लिए पकवानों से भरी थाली मंगवानी पड़ेगी। "

आदमी," ये लो सेठ जी, खा लिए आपके लड्डू। अब जल्दी से पकवानों से भरी थाली मँगवा दीजिए। आह हा हा... बहुत तेज भूख लगी है। "

सेठ," हाँ हाँ, ठीक है। मंगवाता हूँ। "


तभी गांव वालों को पकवानों से भरी एक थाली दी जाती है जिसे गांव वाले बड़े चाव से खाने लगती हैं। गांव की सभी लोग अपना भोजन खत्म कर लेते हैं।

गांव वाले," अरे वाह ! आज तो सेठ जी आपने मन खुश कर दिया हमारा। सारा भोजन बहुत स्वादिष्ट था। चलिए अब हमारा एक एक सोने का सिक्का तो दे दीजिए। "

दूसरा आदमी," हां हां सेठ जी, सोने का सिक्का भी दीजिये। "

सेठ," हाँ हाँ, ठीक है। देता हूँ, देता हूँ सोने का सिक्का। "

तभी सेठ अपनी पोटली में से एक एक सोने का सिक्का सभी गाँव वालों को देता है जिसके बाद सभी गांव वाले वहाँ से बहुत खुश होकर चले जाते हैं।

सेठ," हाय हाय ! यह क्या हो गया ? मेरे इतने सारे सोने के सिक्के भी चले गए। हाय हाय... लेकिन ये कैसे हो गया ?

मैंने तो उस हलवाई से ठोस लड्डू ही बनवाए थे। ना जाने कैसे गांव वालों ने वह भी गटक लिए ? "


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मंजूरी," अरे ! चुप हो जाइए आप। जब आप उस हलवाई से ठोस और ना चबने वाले लड्डू बनाने की बात कह रहे थे तो मैंने सब सुन लिया था।

इसके बाद मैंने खुद सभी गांव वालों के लिए लड्डू बनाए और आपने लड्डू मंगवाए थे, उन्हें अपने बनाए गए लड्डू से बदल दिया था। 

ये क्या करने जा रहे थे आप ? घर आए मेहमानों के साथ कोई ऐसा करता है क्या ? मेहमान तो भगवान का रूप होते हैं। पर आप उनके साथ ऐसा खराब बर्ताव करने जा रहे थे। 


सभी गांव वाले कितनी उम्मीद से आपके घर भोजन करने आए थे। मैं आपकी पत्नी हूं और ये मेरा कर्तव्य बनता है कि मैं आपको कोई भी गलती न करने दूं। इसलिए मैंने वो लड्डू बदल दिए थे। "

अपनी पत्नी की ऐसी बातें सुन सेठ को अपनी गलती पर पछतावा होता है।

सेठ," तुम सही कह रही हो भाग्यवान। तुमने मेरी आंखें खोल दीं। मैं अपनी कंजूसी के कारण घर भोजन करने आए मेहमानों के साथ कितना गलत करने जा रहा था ? 

लेकिन तुमने अपनी सूझ बूझ से ऐसा नहीं होने दिया। तुम्हारा बहुत बहुत धन्यवाद ! मेरी प्यारी पत्नी। "


इस कहानी से आपने क्या सीखा नीचे Comment में हमें जरूर बताएं।

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