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गरीब राजमिस्त्री | Gareeb Rajmistri | Hindi Kahaniya | Moral Stories | Bed Time Story | Hindi Kahani | Hindi Fairy Tales

आज की इस कहानी का नाम है - " गरीब राजमिस्त्री " यह एक Moral Story है। अगर आपको Hindi Kahaniya, Written Stories या Bedtime Stories पढ़ें।
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हेलो दोस्तो ! कहानी की इस नई Series में आप सभी का स्वागत है। आज की इस कहानी का नाम है - " गरीब राजमिस्त्री " यह एक Moral Story है। अगर आपको Hindi Kahaniya, Written Stories या Bedtime Stories पढ़ने का शौक है तो इस कहानी को पूरा जरूर पढ़ें।

Gareeb Rajmistri | Hindi Kahaniya | Moral Stories | Bed Time Story | Hindi Kahani | Hindi Fairy Tales


गरीब राजमिस्त्री

 एक गांव में सोनू नाम का एक बूढ़ा राजमिस्त्री अपनी पत्नी मालती के साथ रहा करता था। उसकी पत्नी काफी बीमार रहती थी। 

सोमू को अपनी पत्नी की सेहत की चिंता दिन रात सताया करती थी। एक दिन सोनू गांव में एक चाय की दुकान पर उदास बैठा हुआ था कि तभी गांव का मुखिया वहाँ पर आ गया। 

मुखिया," क्या हाल है सोनू ? ऐसे मुँह लटकाए काहे को बैठा हुआ है ? "

सोनू," अब क्या बताऊँ मुखिया जी..? मेरी पत्नी की हालत दिन व दिन खराब होती जा रही है। मुझे दिन रात सिर्फ और सिर्फ उसी की चिंता सताए रहती है। "

मुखिया," अरे ! तू उसको किसी अच्छे डॉक्टर को क्यों नहीं दिखाता ? मैंने तुझसे पहले भी कहा था कि अपनी पत्नी को शहर ले जा। शहर में उसका अच्छा इलाज हो जाएगा। "

सोनू," शहर के डॉक्टर मेरी औकात से बाहर हैं मुखिया जी। मैं तो दो वक्त की रोटी का जुगाड़ भी बड़ी मुश्किल से कर पाता हूँ। भला मैं शहर के डॉक्टर की क्या फीस चुकाऊंगा ? "


मुखिया," तो फिर अपनी पत्नी को ऐसे ही मरने दे। "

सोनू," यह कैसी बातें कर रहे हैं आप ? "

मुखिया," अरे ! सही कह रहा हूँ। तेरे पास अपनी पत्नी के इलाज के लिए पैसे नहीं है तो तू उसका इलाज नहीं करा सकता और वैसे भी तेरी पत्नी बूढ़ी हो चुकी है। अगर ठीक भी हो गयी तो कितने साल और जियेगी ? "

सोनू," मेरी पत्नी के अलावा इस दुनिया में मेरा कोई नहीं है। आप तो गांव के मुखिया हैं। मैं कुशल राजमिस्त्री हूँ। अगर आप चाहें तो मुझे कहीं काम दिलवा सकते हैं। "

मुखिया," अबे तुझे कौन काम पर रखेगा सोनू ? अपनी हालत तो देख। चलते हुए तो तेरी टाँगें काँपती हैं। तू भला किसी का मकान क्या बना सकता है ? 

तू बस अपने घर पर अपनी पत्नी के लिए दाल बना। मकान बनाना तेरे बस का अब नहीं रहा। 70 साल से ऊपर का तो तू वैसे भी हो गया है और फिर ये उम्र आराम करने की होती है। "

बल्ली," ये गलत बात है मुखिया जी। अगर सोनू चाचा बूढ़े हो गए हैं तो इसका मतलब ये नहीं कि वो काम नहीं कर सकते। सीधे सीधे आप ये क्यों नहीं कह देते है कि आप उनसे काम करवाना ही नहीं चाहते ? "

मुखिया," तुझसे कितनी बार कहा है बल्ली कि जब मैं किसी से बातचीत करा करूँ तो बीच में अपनी टांग मत अड़ाए करना। "

मुखिया की बात सुनकर बल्ली चुप हो गया। 

मुखिया," वैसे सोनू मेरे पास एक उपाय है। अगर तू इस उपाय को कर लेगा तो तू जिंदगी भर सुखी रहेगा। तेरे हाथ में चार पैसे भी आयेंगे और तेरी पत्नी का इलाज भी हो जाएगा। "

सोनू," तो फिर जल्दी बताइए मुखिया जी। मैं अपनी पत्नी के इलाज के लिए कुछ भी करने को तैयार हूँ। "

मुखिया," सोनू तेरा मकान काफी बड़ी जमीन पर बना हुआ है। तू जमीन को किसी को बेच दे। 

अच्छे पैसे मिल जाएंगे और तू किसी और को क्या बेचेगा..? तू एक काम कर, तू उस जमीन को मुझे ही बेच दे। "

सोनू," आपका मतलब मैं अपना घर बेच दूँ ? "

मुखिया," अब तेरी बात समझ में आई। "

सोनू," ये कैसी बात कर रहे हैं आप मुखिया जी ? मैं अपना घर किसी कीमत पर नहीं बेच सकता। वो घर मेरे पुरखों का है। मेरे पुरखों की निशानी है। "

मुखिया," अबे ऐसे पूर्वजों की निशानी का क्या फायदा बे... जो वक्त पर काम ना आये ? सोच ले और समय ले ले।


मैं तेरा मकान अच्छे दाम में खरीदने को तैयार हूँ। ऐसे मौके बार बार नहीं आते... समझा ? "

सोनू," किसी कीमत पर नहीं। और एक बार उस मकान को बेचने का मेरे मन में विचार भी आ जाता लेकिन मेरी पत्नी इसके लिए कभी तैयार नहीं होगी। उसकी यादें इस मकान में ज्यादा जुड़ी हुई है। "


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मुखिया," तो फिर उन यादों को बाजार में बेच आ। उससे तुझे जितनी आमदनी होगी, उससे अपनी पत्नी का इलाज करा लेना। "

इतना कहकर मुखिया सोनू का मजाक उड़ाता हुआ वहाँ से चला गया। सोनू की आँखों में बेबसी के आंसू छलकने लगे। 

बल्ली," दिल छोटा मत करो सोमू चाचा। हिम्मत रखो और भगवान पर भरोसा करो। "

सोनू," उसी भरोसे पर तो आज तक जिन्दा हूं बल्ली। लेकिन अब मैं बूढ़ा हो चुका हूँ। मुझसे लोगों के ताने नहीं सुने जाते। 

मैं लोगों को कैसे यकीन दिलाऊं कि इस बुढ़ापे में भी मेरे शरीर में इतनी ताकत है कि मैं आज भी वो मकान बनाकर तैयार कर सकता हूँ जिसे बनाने में आज के नौजवानों के पसीने छूट जाएं ?

मैं आज भी एक से एक बेहतर डिजाइन बनाकर तैयार करके दे सकता हूँ। "

बल्ली," जुम्मन जमींदार अपनी कोठी बनवा रहा है। आप वहाँ पर बात करके क्यों नहीं देख लेते ? 

मेरे ख्याल से आपको एक बार जाकर जुम्मन जमींदार से मिलना चाहिए। अगर उसे आप पर भरोसा हो गया तो वो आपको काम दे सकता है।

और मैं तो आपके काम को जानता हूँ, चाचा। आपके जैसा कुशल राजमिस्त्री आज भी कोई नहीं है। "

सोनू," शायद तुम सही कहते हो बल्ली। मैं कल ही जुम्मन जमींदार के पास जाऊंगा। अब मैं चलता हूँ बल्ली। मालती की दवाई का वक्त हो गया है। "


इतना बोलकर सोनू अपने घर चला गया। उसकी पत्नी मालती को बहुत खांसी हो रही थी। सोमू तुरंत दवाई की शीशी लेकर मालती के पास पहुँच गया। 

सोनू," ये लो मालती, दवाई पी लो। लगता है तुमने सुबह से दवाई नहीं पी। डॉक्टर ने बोला था ना कि इस दवाई को सुबह शाम पीना है। "

इतना बोलकर सोनू ने दवाई मालती को पिला दी। दवाई पीकर मालती को आराम मिल गया। 

सोनू," क्या तुमने सुबह दवाई नहीं पी थी ? "

मालती," शीशी में दवाई कम रह गई थी। इस वजह से सोचा कि मैं दो वक्त की जगह एक वक्त इस दवाई को पियूंगी। और वैसे भी दवाई तो रोज़ रोज़ की ही है ना ? "

सोनू," तुम तो जानती हो मालती जब तुम इस दवाई को नहीं पीती हो, तुम्हें खांसी होने लगती है। अपना ख्याल रखो। तुम्हारे अलावा अब मेरा कौन है ? "

मालती," आप जब लोगों से मेरी दवाई के लिए कर्जा मांग कर आते हो तो मुझे बिलकुल भी अच्छा नहीं लगता। मैं जानती हूँ कि आपके ऊपर वैसे भी बहुत लोगों का कर्जा है। "

तुम्हें उसकी चिंता करने की जरूरत नहीं है। मैं उन सारे कर्जों को एक ही झटके में चुका दूंगा। बस मुझे काम मिलने की देर है। आज सुबह भी दो तीन कर्जदार तुम्हें पूछते हुए आए थे। "

सोनू," चिंता मत करो मालती, सब ठीक हो जाएगा। गांव का मुखिया भी तुम्हारी गैरहाजिरी में आया था। बोल रहा था इस मकान को बेच दो। "

मालती की बात सुनकर सोनू की आँखों में आंसू बहने लगे। सच बताऊं मालती तो कभी कभी अब मेरे दिल में भी यही ख्याल आता है। "

मालती," ऐसा भूलकर भी मत करना। अच्छी तरह से जानते हो कि इस मकान से मेरी कितनी यादें जुड़ी हुई हैं ? "

सोनू," तुम्हारी ही बात मेरे दिमाग में आ जाती है। "


मालती," चिंता मत कीजिये। आप अपने जमाने के बहुत कुशल राजमिस्त्री रहे हैं। बस आपको काम मिलने की देरी है। वैसे आज आपको कहीं काम मिला ? "

सोनू," नहीं मालती, आज भी कहीं मुझे कोई काम नहीं मिला लेकिन बल्ली बता रहा था कि जुम्मन जमींदार अपनी कोठी बनवा रहा है। "

मालती," तो फिर आप जाकर जुम्मन जमींदार से बात क्यों नहीं कर लेते ? "

सोनू," कल सुबह मैं जुम्मन जमींदार के यहाँ जाऊंगा। "

अगली सुबह सोनू तैयार होकर जुम्मन जमींदार के घर के दरवाजे के पास पहुंचा। जुम्मन के यहाँ उस वक्त दो तीन शहरी लोग आये हुए थे। सोनू को देखकर जुम्मन मजाक उड़ाने वाले अंदाज में बोला। 

जमींदार," सोनू, सुबह सुबह यहाँ कैसे ? सब ठीक तो है ? कहीं तेरी पत्नी मर तो नहीं गयी ? "

सोनू," ये कैसी बातें कर रहे हैं आप जमींदार साहब ? "

जमींदार," मुझे लगा तेरी पत्नी मर गयी है और तुझे अर्थी के इंतजाम के लिए कुछ पैसों की जरूरत है इसलिए तू मेरे पास आया है। 

लेकिन लगता है कि तेरी पत्नी अभी भी जिंदा है और तू उसकी दवाई के लिए मुझसे पैसे लेने आया है। गांव के लगभग हर व्यक्ति से तूने उधार पैसे ले रखे हैं। 

वो सब कैसे चुकाएगा ? एक बार मुझे अगर काम मिल जाए तो मैं सबके कर्जे चुका दूंगा। "

जमींदार," तो तूने कहीं काम देखा क्या ? तुझे कोई काम देने के लिए तैयार हुआ ? "

सोनू," उसी के लिए तो मैं आपके पास आया हूँ। बल्ली ने मुझे कल बताया कि आप यहाँ पर अपनी एक आलीशान कोठी बनवा रहे हैं। आप काम पर मुझे रख लीजिये। 

मैं आपकी कोठी में वो डिजाइन बनाकर दूंगा कि आप उसे बस देखते ही रह जाएंगे। मैं अपने जमाने का बहुत कुशल राजमिस्त्री रहा हूँ। "

सोनू की बात सुनकर जमींदार गुस्से से देखते हुए बोला। 

जमींदार," तेरा दिमाग तो ठीक है सोमू ? मैं कोठी बनवा रहा हूँ, कोई ईंटों का भट्टा नहीं लगवा रहा जो मैं तुझे काम पर रख लूँ। 

ये जो तुझे शहरी लोग दिख रहे हैं ना, ये सब इंजीनियर हैं। इनमें से एक मेरी कोठी का डिजाइन बनाएगा और दूसरा कुछ और। 

तू क्या चाहता है कि मैं अपने करोड़ों रुपए तेरे जैसे सड़कछाप बूढ़े के लिए खर्च कर दूँ ? तेरी हिम्मत भी कैसे हुई सोचने की कि मैं अपनी कोठी के लिए तुझ पर भरोसा करूँगा। "


सोनू," आप मुझ पर एक बार भरोसा करके तो देखिए। मैं आपको निराश नहीं करूँगा। "

जमींदार," इससे पहले कि मैं तुझे धक्के देकर यहाँ से बाहर निकाल दूँ, तू यहाँ से खुद निकल जा वरना लोग कहेंगे कि जमींदार ने एक बूढ़े पर भी तरस नहीं खाया। "

सोनू निराश होकर नीचे निगाह करके वहाँ से चला गया। सोनू की बीवी की बिमारी बढ़ती जा रही थी। आसपास के गांवों में कहीं भी मकान बनते, सोमू बेचारा वहाँ पर पहुँच जाता। 

मगर हर कोई सोनू को गालियां देकर भगा देता था। सोनू परेशान अवस्था में एक चाय की दुकान पर बैठा हुआ था कि तभी उसने देखा कि दो लोग आपस में झगड़ रहे थे। 

सोनू ने चाय वाले से पूछा। 

सोनू," ये दोनों लड़ क्यों रहे हैं ? देखने में तो अच्छे परिवार के मालूम पड़ते हैं। "


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चायवाला," ये सामने सफेद शर्ट पहना व्यक्ति बैठा है ना ? इसका नाम राकेश है और जो दूसरा काले कोट वाला व्यक्ति है ना ? इसका नाम गौरव है। 

राकेश इंजीनियर है और गौरव शहर में बहुत बड़ा कॉन्ट्रेक्टर है। गौरव को कुछ दिनों पहले एक बिल्डिंग बनाने का कॉन्ट्रैक्ट मिला था। 

शुरुआत में राकेश ने हामी भर दी थी मगर बाद में वो आनाकानी करने लगा। "

सोनू," ऐसा क्यों? "

चायवाला," क्योंकि राकेश का कहना है कि गौरव जिस तरह की डिजाइन की बिल्डिंग बनाना चाहता है वो नामुमकिन है। वो कोई तैयार नहीं कर सकता। 

ऐसी तकनीक भारत में विकसित ही नहीं है। भारत में तो क्या... बल्कि विदेशों में भी ऐसी तकनीक विकसित नहीं है। "

सोनू," लेकिन तुम तो बोल रहे थे कि राकेश बहुत बड़ा इंजीनियर हैं। "

चायवाला," इंजीनियर हैं सोनू, कोई जादूगर नहीं। "

सोनू के दिमाग में पता नहीं उस वक्त क्या सूझा। वह धीरे धीरे कदमों से चलता हुआ गौरव के पास जाकर बोला।

सोनू," मुझे सारी बात उस चाय वाले ने बता दी। जो आप बिल्डिंग तैयार करवाना चाहते हो, मैं वो तैयार कर सकता हूँ। "


सोनू की बात सुनकर राकेश जो गुस्से में था, वो ज़ोर से हंसते हुए बोला।

सोनू," अबे पागल हो गया क्या ? यह बिल्डिंग की बात चल रही है। "

सोनू ," हाँ तो... बिल्डिंग और घर में क्या फर्क है ? घर दो या तीन मंजिल का होता है और बिल्डिंग पांच या छः मंजिल की होती है। "

राकेश," अबे बुड्ढ़े ! कहाँ तक पढ़ाई की है तूने ? "

सोनू," मैंने तो कभी स्कूल की शक्ल तक नहीं देखी। लेकिन मैं अपने जमाने का सबसे कुशल राजमिस्त्री रहा हूँ और आज भी हूँ। "

राकेश," तुझे मैं बेवकूफ़ नज़र आता हूँ ? ये जो बिल्डिंग की डिजाइन पास करवा के आया है, पहली बात तो उस डिजाइन की बिल्डिंग नहीं बन सकती और दूसरी बात ये है कि इसका बजट बहुत कम है। 

बजट का मतलब समझता है ना..? मतलब कम लागत में एक बेहतरीन डिजाइन वाली बिल्डिंग। "

सोनू," मैं कम लागत में इससे बेहतर बिल्डिंग बनाकर तैयार कर सकता हूँ। "

गौरव जो अपने काम में बेहद निपुण था, वह सोनू की ओर बहुत गौर से देखने लगा। 

गौरव," पता नहीं क्यों... मुझे तुम्हारी बात पर यकीन करने का दिल करता है ? और वैसे भी जब मेरे प्रोजेक्ट पर कोई हाथ रखने को तैयार नहीं है तो तुम्हें काम देने में क्या हर्ज है ? "

राकेश," अबे ! पागल हो गया है क्या ? तू भी डूबेगा और साथ में तेरी कंपनी भी डूबेगी। "

गौरव," मार्केट में जाकर मेरे बारे में पता कर ले। सब जानते हैं कि मेरा अंदाजा कभी गलत साबित नहीं होता। मैं अपने पैसे कहीं गलत जगह नहीं लगता। 

मैं मानता हूँ कि यह बूढ़ा पढ़ा लिखा नहीं है लेकिन इसके चेहरे की झुर्रियां और आँखों की चमक ये बता रही है कि इसमें वो टैलेंट है जो आज की पीढ़ी में नहीं है। "

गौरव," मैं तुम्हें काम देने के लिए तैयार हूँ। "

गौरव ने पूरी जिम्मेदारी सोनू को दे दी। सोनू मेहनत से काम करने लगा। उसने कुछ ही महीनों में अपनी कुशल कारीगरी के बल पर बांस और बल्ली से एक बेहतरीन डिजाइन की बिल्डिंग तैयार करके खड़ी कर दी।

सोनू की कारीगरी देखकर सभी लोगों की आंखें हैरानी से फटी की फटी रह गयीं। 

गौरव," ये तो तुमने कमाल कर दिया। सोनू, इस तरह की बिल्डिंग तो पूरी दुनिया में कहीं नहीं होगी। तुम्हे तो इसके लिए इनाम मिलना चाहिए। "


राकेश," मुझे माफ़ कर दो बाबा, मैंने आपका मजाक उड़ाया। लेकिन वाकई आपने तो ये काम करके दिखा दिया कि हम जैसे पढ़े लिखे नौजवान आपके सामने तो कहीं भी नहीं टिक सकते। 

आप की जरूरत यहाँ नहीं बल्कि अमेरिका में है। अगर आप कहें तो मैं आपको अमेरिका ले जा सकता हूँ। "

सोनू," नहीं बेटा, अब इस उम्र में मैं कहा विदेश जाता फिरूंगा। मुझे तो बस मेरा मेहनताना चाहिए ताकि मैं अपनी पत्नी का इलाज करा सकूं। "

गौरव," हमारा जो आपका तय हुआ था? मैं उससे तीन गुना आपको अधिक दूंगा। "

सोनू," नहीं बेटा, मुझे सिर्फ उतना ही पैसा चाहिए जितने मेरे बनते हैं। मुझे ज्यादा नहीं चाहिए। "

सोनू की ईमानदारी देखकर गौरव बहुत ज्यादा प्रभावित हुआ। उससे सोनू ने कुछ ही दिनों में अपने सारे कर्ज चुका दिए और उसने अपनी पत्नी का इलाज अच्छे डॉक्टर से करवाया और उसकी पत्नी की बिमारी सही हो गई। 

सोनू के पास देखते ही देखते अब इतना ज्यादा काम आने लगा कि सोनू को कई बार लोगों को मना करना पड़ता। एक दिन अचानक गौरव सोनू के घर पर आ गया। 

सोनू," गौरव बाबू, आप यहाँ..? "

गौरव," क्यूँ..? क्या मैं आपके घर नहीं आ सकता ? "

सोनू," नहीं नहीं, ऐसी कोई बात नहीं। बात ये है, सोनू कि मैं जिस कंपनी के लिए काम करता हूँ, उस कंपनी के मालिक मिस्टर अजय आपसे मिलना चाहते हैं। "

सोनू," लेकिन आपने तो कहा था कि वो लंदन में रहते हैं। "

गौरव," हाँ, उनकी फैमिली लंदन में ही रहती है। लेकिन जब मैंने तुम्हारी बनाई हुई बिल्डिंग की फोटोग्राफ उन्हें भेजी तो वो देखकर बहुत ज्यादा प्रभावित हुए और वो खुद को इंडिया आने से रोक नहीं पाए। 

तुम खुश नसीब हो सोनू जो मिस्टर अजय तुमसे मिलना चाहते हैं। तुम जानते हो, मिस्टर अजय करोड़ों अरबों रुपये की संपत्ति के मालिक हैं ? 

अमेरिका में उनकी कई बिल्डिंग्स है और विदेश में हर जगह उनके बंगले बने हुए। हैं। "

सोनू," ठीक है साहब, अगर ऐसी बात है तो मैं उनसे जरूर मिलूंगा। "

गौरव," मिस्टर अजय ने तुम्हें और तुम्हारी पत्नी दोनों को बुलाया है। "

सोनू और मालती तैयार होकर गौरव की गाड़ी में बैठ गए और कुछ ही घंटों में गौरव शहर में एक आलीशान बंगले के अंदर उन दोनों को लेकर आया। 


मिस्टर अजय बड़ी बेसब्री से सोनू और मालती का इंतजार कर रहा था। जैसे ही सोनू अजय को देखा, उसकी आंखें गुस्से से लाल हो गयी। 

सोनू," अच्छा तो तुम हो मिस्टर अजय... करोड़ों अरबों के मालिक। अगर मुझे पता होता तो मैं यहाँ पर कभी तुमसे मिलने नहीं आता। मुझे तुम्हारी शक्ल तक नहीं देखनी। "

गौरव सोनू की बात सुनकर चौंकते हुए बोला। 

गौरव," ये क्या कह रहे हो आप ? आप जानते हैं आप किससे बात कर रहे हैं ? ये मिस्टर अजय करोड़ों के मालिक हैं। 

सोनू," दुनिया के लिए ये मिस्टर अजय होंगे। लेकिन क्या तुम जानते हो ये कौन है ? ये कोई और नहीं बल्कि मेरा इकलौता बेटा अज्जू है।

सोनू की बात सुनकर गौरव बुरे तरीके से चौंक गया। 

अजय," मुझे माफ़ कर दीजिए, पिताजी। मैंने आपको कहां कहां नहीं ढूंडा। "

सोनू," सही कहा तुमने बेटा क्योंकि तू अपने गाव का पता तो जनता ही नहीं था। आज कितने सालों बाद जब तू हमें सहयोग से मिला तब भी तू हमसे झूठ ही बोल रहा है। 

ऐसा ही झूठ तूने आज से 20 साल पहले भी बोला था जब तू बगैर बताए हमारे घर के कागजात गिरवी रख आया था और पैसे लेकर भाग गया था। 

तेरे पिताजी ने दिन रात मेहनत करके अपने उस पुरखों के मकान को छुड़वाया। पीछे मुड़कर ये तक नहीं देखा कि तेरे माता पिता किस हाल में है। "

अजय," मुझे माफ़ कर दीजिए, पिताजी। मैं बड़ा आदमी बनना चाहता था। मुझे उस वक्त पैसों की जरूरत थी। लेकिन आपने पैसे देने से साफ साफ इनकार कर दिया। 

मजबूरी में मुझे कुछ ऐसा करना पड़ा और भगवान ने मुझे उसकी सजा भी दी है। पिताजी शादी के 20 साल बाद भी मेरी कोई औलाद नहीं हुई। 

ये रुपया, ये पैसा मेरे किस काम का ? सच तो ये है कि अपने ही माता पिता को धोखा देने के बाद मैंने रुपया, दौलत, पैसा तो बहुत कमाया लेकिन कभी भी सुकून से सो नहीं पाया। 

मैं आप दोनों के साथ अपने घर में रहना चाहता हूँ। अपने गांव में रहना चाहता हूँ। इस देश के लिए, अपने गांव के लिए कुछ करना चाहता हूँ। मुझे माफ़ कर दो। "


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इतना कहकर अजय फूट फूटकर रोने लगा। 

अजय को रोता देख मालती का दिल पिघल गया। 

मालती," इसे माफ़ कर दो जी। "


सोनू," नहीं मालती, इसकी वजह से मुझे कितने बेइज्जती सहनी पड़ी ? इसे उसके किए की सजा भगवान ने दे दी। "

मालती," अगर हम इसे माफ़ नहीं करेंगे तो भगवान भी हमें माफ़ नहीं करेगा। ये हमारा बेटा है... हमारा इकलौता बेटा। वही बेटा जो आपकी ऊँगली पकड़कर बड़ा हुआ है। "

मालती की बात सुनकर सोनू का गला भर आया। उसने अजय को गले से लगा लिया। इस जज्बाती मंजर को देखकर गौरव की आँखों में भी आंसू आ गए। 

उस दिन से अजय अपनी पत्नी के साथ अपने माता पिता के साथ ही गांव में रहने लगा।


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हेलो दोस्तों ! मैं हूं आपका अपना दोस्त, प्रदीप। यहां मैं कुछ अनोखी कहानियों के साथ आपका मनोरंजन करूंगा। अगर आपको हमारा लेखन कार्य पसंद आए तो हमें Support करें और अपना प्यार बनाए रखें।

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