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ईमानदार नौकर | Imandar Naukar | Hindi Kahaniya | Moral Stories in Hindi | Bed Time Story | Hindi Fairy Tales

आज की इस कहानी का नाम है - " ईमानदार नौकर " यह एक Hindi Kahani है। अगर आपको Hindi Kahaniya, Moral Story या Husband Wife Stories पढ़ें।
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हेलो दोस्तो ! कहानी की इस नई Series में आप सभी का स्वागत है। आज की इस कहानी का नाम है - " ईमानदार नौकर " यह एक Hindi Kahani है। अगर आपको Hindi Kahaniya, Moral Story या Husband Wife Stories पढ़ने का शौक है तो इस कहानी को पूरा जरूर पढ़ें।

ईमानदार नौकर | Imandar Naukar | Hindi Kahaniya | Moral Stories in Hindi | Bed Time Story | Hindi Fairy Tales

 Imandar Naukar | Hindi Kahaniya | Moral Stories in Hindi | Bed Time Story | Hindi Fairy Tales


एक बार की बात है। धनीराम एक ज़नीदार था। 

धनीराम की बेटी चारु पढ़ाई में बहुत तेज़ थी, मगर धनीराम का बेटा दिनेश दिन भर आवारा गर्दी करता था। इसी बात को लेकर धनीराम हमेशा परेशान रहता था। 

धनीराम," ये दिनेश कुछ काम धंधा तो करता नहीं है, सिर्फ मेरी मेहनत के कमाए हुए पैसे अपने आवारा दोस्तों में उड़ाता रहता है। तुम समझती क्यों नहीं हो ? "

शारदा," आप तो ऐसे बात कर रहे है जी जैसे कि दिनेश सिर्फ मेरा ही बेटा है, आपका तो कुछ लगता ही नहीं। "

धनीराम," जब मैं उसे डांटता हूँ तो तुम्हारी ही आँखों से टप टप आंसू बहने लगते हैं। "

शारदा," अरे ! आपसे डांटने के लिए किसने मना किया है ? आप तो उसे मारने लगते हैं। जवान बेटा है, कहीं कुछ कर बैठा तो ? "


धनीराम," अरे ! जवान है तो क्या हुआ ? उसे कुछ भी करने की आजादी दे दूं ? देखो शारदा, दिनेश सिर्फ तुम्हारी वजह से ही बिगड़ा है। "

शारदा," वाह पति देव ! बेटी पढ़ाई में अच्छी है तो वह आप पर गई है। अगर आवारागर्दी करता है बेटा तो उसे मैंने बिगाड़ा है। आप तो जी जवानी में बड़े सीधे थे। "

धनीराम," मैंने तो अपने पिता की दौलत को अपने आवारा दोस्तों में कभी नहीं उड़ाया। 20 साल की उम्र में ही काम करने लगा था और अपने पिता का हाथ बटाने लगा था। 

और तुम्हारा बेटा...तुम्हारा बेटा तो अपने पिता के ऊपर बोझ है ? "

शारदा," बस कीजिए, इतना भी बिगड़ा हुआ नहीं है मेरा बेटा। अरे इतनी दौलत है, कहाँ ले जाओगे ? 

एक दिन तो वह दौलत दिनेश को ही मिलनी है। बिटिया तो अपने घर चली जाएगी। "

धनीराम," गांव में ऐसा कोई व्यक्ति नहीं है जिसने मुझसे दिनेश की शिकायत ना की हो। परसों तो दिनेश ने हद कर दी। मुखिया की बेटी बिंदिया को भी छेड़ा है उसने। "

शारदा," बस... बस अब मैं अपने बेटे के खिलाफ़ एक शब्द नहीं सुन सकती। पता है मुझे आपके मुँह तो वो कलमूआ नौकर प्रकाश सिर पर चढ़ा है। 

संसार में तुम ऐसे पहले पिता होंगे जो अपने बेटे की जगह अपने नौकर की तारीफ करते फिरते हो। "

नौकर," आप आ गए मालिक आप..? आपके कहने के मुताबिक मैंने सुबह ही खेतों में पानी डाल दिया है और जो आपने गड्ढा खोदने के लिए बोला था, वो भी खोद दिया है। "

धनीराम," अभी तो सुबह के 7 बजे प्रकाश। तू कितने बजे से काम पर लग गया ? "

नौकर," मालिक, मैं सुबह 4 बजे ही आ गया था। एक बात और बतानी थी आपको। "

धनीराम," कौन सी बात..? "

नौकर," कुछ देर पहले मुखिया यहाँ आया था। आपको बहुत उल्टी सीधी सुना रहा था। 

बोल रहा था अगर वो ज़मींदार है तो क्या... उसके लड़के को गांव की लड़कियां छेड़ने का कोई लाइसेंस मिला है क्या ? 

वो पुलिस में रिपोर्ट करने की धमकी दे कर गया है मालिक। "

धनीराम," अच्छा है, वो पुलिस में रिपोर्ट कर दे। एक तू है प्रकाश और एक मेरा बेटा है, दिन भर कुछ नहीं करता सिवाय आवारा गर्दी करने के अलावा और मैं उससे कुछ कह भी नहीं सकता क्योंकि मेरा कुछ भी कहना उसकी माँ को बहुत बुरा लगता है। "

नौकर," आप दिनेश बाबू को समझाते क्यों नहीं ? "

धनीराम," मैं उसे समझा समझाकर थक गया हूँ। "


नौकर," मालिक, मुझे कुछ देर के लिए जरूरी काम है। अगर आपका आदेश हो तो मैं कुछ देर के लिए चला जाऊं ? "

धनीराम," क्या बात है प्रकाश, कहीं तेरा कोई चक्कर वगैरह तो नहीं चल रहा ? "

नौकर," अरे ! नहीं नहीं मालिक, मुझ जैसे गरीब नौकर से भला कौन सी लड़की अपना चक्कर चलाएगी ? "

धनीराम," ठीक है जा। 2 घंटे के लिए नहीं, 4 घंटे के लिए चला जा वैसे भी सारा काम तो तू कर ही चुका है। "

जंगल में नदी किनारे...
चारू," मैं तुम्हारा कब से इंतजार कर रही हूँ प्रकाश ? घर में तो तुमसे बात करने का मौका मिलता ही नहीं। "

प्रकाश," चारू, आज मैं तुमसे साफ साफ कहने आया हूँ कि अब मैं तुमसे नहीं मिल सकता। "

चारू," लेकिन क्यों प्रकाश..? मैं तुमसे प्रेम करती हूँ और तुम भी तो मुझसे प्रेम करते हो। "

प्रकाश," प्रेम तो मैं भी तुमसे करता हूँ लेकिन मत भूलो कि मैं तुम्हारे घर का नौकर हूँ। मालिक मुझ पर कितना विश्वास करते हैं ? 

लेकिन कहीं अगर किसी दिन मालिक को कुछ पता लग गया तो वो मेरे बारे में क्या सोचेंगे ? "

चारू," मैं कुछ नहीं जानती प्रकाश, मैं तुमसे प्रेम करती हूँ और तुमसे ही शादी करूँगी। अगर मेरी तुमसे शादी नहीं हुई, तो मैं ज़हर खाकर अपनी जान दे दूंगी। "

चारू गुस्से से वहाँ से चली गई। कुछ दिन ऐसे ही बीत गए। एक दिन शहर से हुकुमचंद नाम का एक बड़ा व्यापारी मुखिया को लेकर जमींदार के पास आता है। मुखिया को देखकर धनीराम चौंक गया। 

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धनीराम," मुखिया जी, मैं दिनेश की हरकत पर बहुत शर्मिंदा हूँ। "

मुखिया," अरे ! नहीं धनीराम जी, दिनेश की हरकत को मैं कब का भूल चुका हूँ ? आप भी भूल जाइए। दिनेश बच्चा है और बच्चे तो गलती कर ही देते हैं। 

दरअसल धनीराम जी, मैं हुकुमचंद जी को आपसे मिलवाने के लिए लेकर आया हूँ। हुकुमचंद जी शहर में बहुत बड़े सोने के व्यापारी है। "


हुकुमचंद," नमस्ते धनीराम जी ! मुझे मुखिया जी के द्वारा ही आपके बारे में पता लगा है। मुझे एक अच्छे और सच्चे व्यक्ति के तलाश थी। 

मुखिया जी ने बताया कि आप बहुत ईमानदार और धनवान व्यक्ति हैं। "

धनीराम," मुखिया जी ने मेरी तारीफ तो कुछ ज्यादा ही कर दी। मुझसे ज्यादा अच्छे इंसान तो मुखिया जी हैं जिन्होंने मेरे बेटे की गन्दी हरकत को भी माफ़ करके भुला दिया। बताइए आपको मुझसे क्या काम है ? "

हुकुमचंद," दरअसल मैं सोने का एक बहुत बड़ा व्यापारी हूँ और मैं हिंदुस्तान छोड़कर विदेश में बसना चाहता हूँ। मेरे पास कुछ सोने का स्टॉक है। 

मैं चाहता हूँ कि उस सोने को आप खरीद लें। मैं वो सोना आधे पौने दामों में बेचने के लिए तैयार हूँ। "

इतना कहकर हुकुमचंद ने एक बड़ी सी अटैची धनीराम के सामने खोल दी। उसमें ढेर सारे सोने के बिस्कुट रखे हुए थे। सोने को देखकर धनीराम बुरी तरह से हैरान हो गया। 

धनीराम," लेकिन इतना ढेर सारा सोना आप शहर में किसी को भी बेच सकते हैं। "

हुकुमचंद," जी बिल्कुल बिल्कुल, लेकिन मैं चाहता हूँ कि ये सोना किसी गांव के व्यक्ति के पास रहे। क्योंकि गांव के व्यक्ति बहुत दयालु स्वभाव के होते हैं और लोगों की मदद करते हैं। 

वैसे तो ये सोना 5 करोड़ का है, लेकिन मैं यह सोना आपको सिर्फ 2 करोड़ में बेचने के लिए तैयार हूँ, यानी आधे दाम से भी कम। "

हुकुमचंद की बात सुनकर धनीराम सोच में पड़ गया क्योंकि वह 2 करोड़ की जायदाद का मालिक था।

मुखिया," सोच क्या रहे हो धनीराम जी ? अगर आपके पास कैश नहीं है तो आप अपनी संपत्ति बेचकर इस सोने को खरीद लो और बाद में सोने को मुनाफ़े में बेच देना। आपकी संपत्ति भी दोगुनी हो जाएगी। "

धनीराम," मुझे एक हफ्ते का समय दीजिए। एक हफ्ते बाद आप 2 करोड़ ले जाना और सोना मुझे दे जाना। "

धनीराम ने अपनी सारी जायदाद बेचकर 2 करोड़ की रकम इकट्ठा कर ली। एक हफ्ते के बाद हुकुमचंद वही सोने की अटैची लेकर आया। 

धनीराम," गिन लीजिए हुकुमचंद जी, पूरे 2 करोड़ हैं। "

हुकुमचंद," मुझे आप पर पूरा भरोसा है धनीराम जी। रुपए गिनकर मैं आपका अपमान नहीं करना चाहता। "

मुखिया," धनीराम जी, एक बार सोने को किसी जोहरी से चेक करवा लेते। "


धनीराम," कैसी बातें कर रहे हो मुखिया ? तुम हमारे गांव के हो, मुझसे धोखा थोड़े ही करोगे। "

मुखिया और हुकुमचंद रुपए लेकर वहाँ से चले गए। अगले दिन धनीराम वह सोना बेचने के लिए शहर गया। 

मगर शहर में जाकर उसे पता लगा कि वह सारा सोना नकली था। धनीराम बर्बाद हो चुका था। अब उसके पास सिर्फ घर के सिवाए कुछ भी नहीं बचा था। 

मुखिया अपने परिवार सहित गांव से फरार हो चुका था। एक दिन धनीराम ने अपने बेटे दिनेश को बुलाकर कहा।

धनीराम," दिनेश बेटा, तुम तो जानते हो मेरे साथ कितना बड़ा धोखा हुआ है ? मैं सड़क पर आ गया हूँ और अब मेरी बूढ़ी हड्डियों में इतनी ताकत भी नहीं कि मैं मेहनत कर सकूं। 

तुम जवान हो। कोई काम धंधा क्यों नहीं करते ताकि परिवार की रोज़ी रोटी चल सके ? "

दिनेश," दिमाग तो ठीक है आपका पिताजी ? एक तो आपने सारी दौलत पानी की तरह बहा दी, ऊपर से अब मुझे मेहनत करने के लिए बोल रहे हैं। मैं आपका खर्चा नहीं उठा सकता। "

नौकर," दिनेश बाबू, आपको अपने पिताजी से इस तरह से बात करते हुए शर्म नहीं आती ? 

मैंने अपनी आँखों से देखा था कि कुछ समय पहले आपने धनीराम जी की तिजोरी से 10 लाख रुपए चुराए थे। उस रकम में से ही आप कुछ पैसे धनीराम जी को दे दीजिए। "

दिनेश," मैं उसमें से एक फूटी काड़ी भी पिताजी को नहीं दूंगा। वह पैसे मेरे खर्चे के हैं और तू दो कौड़ी का नौकर मुझे आदेश देगा, चल भाग यहाँ से। "

धनीराम," प्रकाश, तुझे मेरे बेटे से इस तरह से बात करते हुए शर्म नहीं आती ? निकल जा मेरे घर से और दोबारा यहाँ पर कदम मत रखना। "

नौकर," ये कैसी बातें कर रहे हैं आप ? "

धनीराम," बिलकुल सही बोल रहा हूँ। "

नौकर," ठीक है मालिक, आप कहते हैं तो मैं यहाँ से चला जाता हूँ। लेकिन मुझे आपका ये दुर्व्यवहार हमेशा याद रहेगा। "


प्रकाश रोते हुए वहाँ से चला गया। धनीराम अपने कमरे में जाकर रोने लगा। तभी चारू रोती हुई अपने पिता के पास आकर बोली। 

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चारू," यह आपने अच्छा नहीं किया पिताजी। प्रकाश तो आपका पक्ष ले रहा था और आपने उसे ही धक्के देकर बाहर निकाल दिया। "

धनीराम," मैंने अपने दिल पर पत्थर रखकर प्रकाश को घर से बाहर निकाला है बेटी। तुम तो जानती हो कि मेरे हाथ से सब कुछ छिन गया है। 

मेरी आँखों के सामने दिनेश ने एक जोरदार थप्पड़ प्रकाश के गाल पर मार दिया। मैं प्रकाश को इससे ज्यादा अपमानित होते नहीं देख सकता था। 

अगर मैं प्रकाश से प्यार से बोलता तो वो मुझे छोड़कर ही नहीं जाता। मजबूरी में मुझे ये रास्ता अपनाना पड़ा। "

प्रकाश एक अनाथ था। वह रोते हुए बगैर टिकिट के ट्रैन में बैठ गया। 

नौकर," मैं अब इस गांव में नहीं रहूँगा। जब मालिक ने ही मुझे निकाल दिया तो फिर मेरा इस गांव में क्या काम ? "

प्रकाश ट्रैन में काफी दूर तक निकल गया था। जिस डिब्बे में प्रकाश बैठा था, वहाँ पर उसके और एक व्यक्ति के अलावा और कोई भी मौजूद नहीं था। 

अचानक उस व्यक्ति के मुख से झाग निकलने लगा। प्रकाश दौड़ते हुए उस व्यक्ति के पास चला गया। 

पशु," ये तुम्हारे मुँह से झाग क्यों निकल रहा है ? "

आदमी," मैंने कुछ देर पहले जहर खा लिया है। मैं एक बहुत ही धनवान व्यक्ति था। मगर एक नंबर का अइयाश था। 

मेरी वजह से मेरी पत्नी और बच्चों ने आत्महत्या कर ली। इस बैग को देख रहे हो ? इस बैग में हीरे हैं। 

मैं इन हीरो को लेकर विदेश में जाकर बसना चाहता था। मगर मेरी पत्नी और बच्चों की याद मेरा पीछा नहीं छोड़ती। 

जब वही इस दुनिया में नहीं रहे तो मैं जी कर क्या करूँगा ? "

इतना कहकर उस व्यक्ति ने दम तोड़ दिया। प्रकाश ने देखा कि उस बैग में हीरे भरे थे। प्रकाश एक चतुर व्यक्ति था। 


वह समझ गया कि अगर उसने इसके बारे में पुलिस को बताया तो पुलिस उल्टा उसे ही गिरफ्तार कर लेगी। प्रकाश इस बैग को लेकर अगले रेलवे स्टेशन पर उतर गया। 

प्रकाश उन हीरो को बेचकर बेहद अमीर आदमी बन गया। अमीर होने के बाद प्रकाश को चारू की याद सताने लगी। 

प्रकाश," सुखिया चाचा, आप..? धनीराम जी कहाँ गए ? "

सुखिया," उनके साथ तो बहुत बुरा हुआ प्रकाश। दिनेश ने अपने परिवार के सभी लोगों को धक्के देकर बाहर निकाल दिया। 

यह सदमा धनीराम की पत्नी बर्दाश्त नहीं कर सकी और वह इस दुनिया से चल बसी। धनीराम चारू को लेकर पता नहीं कहाँ चला गया ? "

प्रकाश," लेकिन यह मकान तो धनीराम जी के नाम पर था ना ? "

सुखिया," लेकिन दिनेश ने चुपके से इस मकान को भी गिरवी रख दिया था। धनीराम के पास इतने पैसे नहीं थे कि वो इस मकान को छुड़ा पाए। जाते वक्त धनीराम तुम्हें याद करके बहुत रो रहे थे भाई। "

प्रकाश ," मुझे याद कर रहे थे ? लेकिन उन्होंने ही तो मुझे घर से बाहर निकाला था। "

सुखिया," नहीं प्रकाश, उन्होंने तुम्हें ज्यादा अपमानित होने से बचाने के लिए अपने कलेजे पर पत्थर रखकर तुम्हें घर से बाहर निकाला था। 

अगर वह तुमसे प्यार से कहते तो तुम कभी नहीं जाते और उनके पास इतने पैसे नहीं थे कि वो तुम्हारा खर्चा पानी उठा पाते। "

प्रकाश ने चारु और धनीराम की बहुत तलाश की। मगर वह उसे गांव में कहीं भी नहीं मिले। थक हारकर प्रकाश उन दोनों को शहर जाकर तलाशने लगा। 

एक दिन तलाश करने के दौरान प्रकाश की नजर दिनेश, हुकुमचंद और मुखिया पर पड़ी। वो तीनों एक कार में अंदर बैठे हुए थे। प्रकाश हैरत में पड़ गया। 

प्रकाश," ये तो मुखिया और हुकुमचंद है, जो धनीराम जी को बर्बाद करके गांव छोड़ कर भाग गए थे। उनके साथ दिनेश क्या कर रहा है ? इनका पीछा करना चाहिए। "

हुकुमचंद," वाकई दिनेश तुम्हारे दिमाग को मान गए। किस तरह से तुमने अपने बाप को चूना लगाकर उनकी सारी जायदाद अपने नाम कर ली भाई ? "

दिनेश," अगर मुखिया जी इसमें मेरा साथ नहीं देते तो मैं अपने मकसद में कभी कामयाब नहीं हो पाता। मेरा पिता एक नंबर का बेवकूफ इंसान था। 

मैं ज़रा से पैसे क्या खर्च कर देता था, घर में रोज़ रोज़ झगड़ा करता था। वो तो भला हो मुखिया जी का जिन्होंने मुझे ये सारी योजना बताई। "

मुखिया," दिनेश तुम मेरी बेटी से प्यार करते थे। लेकिन तुम कोई काम धंधा तो करते नहीं थे। और धनीराम तुम्हें कभी भी व्यापार करने के लिए पैसे नहीं देता।

इसलिए मैंने पहले ये अफवाह उड़ाई कि तुमने मेरी बेटी को छेड़ा है और कुछ महीनों बाद में हुकुमचंद को लेकर धनीराम के पास पहुँच गया।


और उसे ऐसा जताया कि जैसे मैंने तुम्हें माफ़ कर दिया है। धनीराम मेरी इस भलाई को देखकर सब कुछ भूल गया और मुझ पर विश्वास कर बैठा। "

प्रकाश (गुस्से में)," भगवान तेरे जैसी औलाद किसी दुश्मन को भी ना दे। अरे ! तेरे जैसा कपूत जिस घर में पैदा हो जाए, उस घर को बर्बाद होने से भला कौन रोख सकता है ? "

दिनेश," प्रकाश, तुम्हारे शरीर पर ये महंगे कपड़े कहाँ से आए ? इसे चुरा कर लाये हो ? "

प्रकाश," प्रकाश नहीं कृष्णा कहूदिश, कल के वक्त का एक मामूली नौकर आज के वक्त का एक बहुत बड़ा धनवान व्यक्ति बन चुका है जो तुम्हारे जैसे ना जाने कितने दिनेश को खड़े खड़े खरीद लेगा। 

तुम्हें तुम्हारे किए की ससा जरूर मिलेंगी। सीधी तरह से ये बता दो कि धनीराम जी और चारू कहां है। "

दिनेश," मुझे ये क्या पता वो कहाँ है ? हो सकता है सड़क पर रोड अक्सीडेंट में कहीं मर मरा गए होंगे। "

दिनेश की बात सुनकर प्रकाश को बुरी तरीके से गुस्सा आ गया। उसने गुस्से में तीनों को पीट दिया और तुरंत पुलिस के हवाले कर दिया। 

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प्रकाश बेहद अमीर आदमी बन चुका था। पुलिस ने उन तीनो को धोखाधड़ी के आरोप में जेल में बंद कर दिया। 

प्रकाश मंदिर में रोज़ प्रार्थना करने जाता था और एक दिन उसकी नजर मंदिर की सीढ़ियों पर पड़ी। उसने देखा कि मंदिर की सीढ़ियों पर धनीराम और चारु बैठे हुए थे। प्रकाश तुरंत वहाँ पर पहुंचा। 

प्रकाश," मालिक, मैं आ गया। मैंने आपको कहाँ कहाँ नहीं ढूंढा ? "

धनीराम," तू तो बहुत बड़ा आदमी बन गया है रे प्रकाश ! "


प्रकाश," हाँ मालिक, लेकिन मैं कल भी आपका नौकर था और आज भी आपका नौकर हूँ। "

प्रकाश को देख कर चारू की आँखों में खुशी के आंसू आ गए।

धनीराम," तेरे जाने के बाद इस संसार ने हम पर कई कहर ढाए। 

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हेलो दोस्तों ! मैं हूं आपका अपना दोस्त, प्रदीप। यहां मैं कुछ अनोखी कहानियों के साथ आपका मनोरंजन करूंगा। अगर आपको हमारा लेखन कार्य पसंद आए तो हमें Support करें और अपना प्यार बनाए रखें।

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