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जादुई कड़ाही | Jadui Kadhai | Hindi Kahaniya | Moral Stories | Hindi Story | Jadui Kahani | Hindi Fairy Tales

आज की इस कहानी का नाम है - " जादुई कड़ाही " यह एक Jadui Kahani है। अगर आपको Hindi Stories, Moral Story in Hindi या Hindi Kahaniya पढ़ें।
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हेलो दोस्तो ! कहानी की इस नई Series में आप सभी का स्वागत है। आज की इस कहानी का नाम है - " जादुई कड़ाही  " यह एक Jadui Kahani है। अगर आपको Hindi Stories, Moral Story in Hindi या Hindi Kahaniya पढ़ने का शौक है तो इस कहानी को पूरा जरूर पढ़ें।

जादुई कड़ाही | Jadui Kadhai | Hindi Kahaniya | Moral Stories | Hindi Story | Jadui Kahani | Hindi Fairy Tales

Jadui Kadhai | Hindi Kahaniya | Moral Stories | Hindi Story | Jadui Kahani | Hindi Fairy Tales


रामपुर नामक गांव में गुड्डू नाम का एक गरीब लकड़हारा रहा करता था। 

पूरे गांव में घर घर लकड़ियां पहुंचाया करता था और उसी से जो भी पैसे मिलते ,अपनी बीमार माँ और अपना गुजर बसर किया करता था। 

एक दिन गुड्डू जंगल से कुछ लकड़ियां लेकर गांव के एक आदमी के घर जाता है। 

गुड्डू," अरे ! कहाँ हैं रामू भईया ? ये देखिये, ले आया मैं आपके लिए लकड़ियां। ज़रा बाहर तो आइए। अरे ओह भैया ! "


रामू," अच्छा अच्छा ठीक हैं गुड्डू, रख दो यहां लकड़ियां। अच्छा किया भाई, तुम जंगल से लकड़ियां लेकर आते हो तो थोड़ा काम आसान हो जाता हैं वरना कौन दूर जंगल में लकड़िया लेने जाए भैया ? "

रामू," अच्छा ये लो रखो तुम्हारे दो आने। "

गुड्डू," बहुत बहुत धन्यवाद रामू भैया ! अच्छा अब मैं चलता हूँ। "

जिसके बाद गुड्डू फिर से कुछ लकड़ियां लेकर गांव के दूसरे घर जाता है। 

गुड्डू," अरे ! कहाँ हो बबली दीदी ? देखो बाहर आओ, ले आया मैं आपके लिए लकड़ियां। "

बबली," अरे ! आ गया तू गुड्डू ? अच्छा किया ले आया लकड़ियां। 
अब मुझसे तो जंगल जाया नहीं जाता, तू लकड़ियां ले आता है तो मदद हो जाती है। रुक, मैं अभी आई हाँ। "

बबली (मन में)," कितने चावल दूं ? ऐसा करती हूँ कि इतना ही दे देती हूँ हाँ। 

थोड़ा कम कर लेती हूँ वैसे भी लकड़ियां कौन सी ज्यादा लाया है। जितना काम उतना दाम। "

बबली," अच्छा ये ले तेरी मेहनत का फल। मेरे पास पैसे तो नहीं हैं जो तुझे दे पाऊं। तू ये चावल की पोटली ही रख ले, हाँ। "

गुड्डू," ठीक है बबली दीदी, तुम कहती हो तो मैं ये चावल की पोटली ही लिए जाता हूँ। आज इन्हें ही पकाकर माँ को खिला दूंगा। अच्छा अब मैं चलता हूँ। "

घर पहुंचने के बाद...
गुड्डू की मां," अरे ! आ गया बेटा ? कब से तेरी राह देख रही थी ? 

बहुत जोरों की भूख लगी है अब और नहीं सहा जाता बेटा। चल फिर नहीं सकती हूँ तो भोजन ही क्या पकाऊंगी बेटा ? "

गुड्डू," अरे माँ, तुम क्यों चिंता करती हो ? मैं बस अभी तुम्हारे लिए भोजन पकाकर लेकर आता हूँ। "

जिसके बाद गुड्डू एक चूल्हे पर बबली दीदी के दिए गए चावल की पोटली से चावल पकाकर अपनी माँ को देता है। 

गुड्डू," ये लो मां, खा लो भोजन। देखो आज बबली दीदी ने जो चावल दिए थे, मैंने उनसे ही तुम्हारे लिए भोजन बना दिया। ये लो खाओ। "

मां," अरे वाह बेटा ! बहुत ही स्वादिष्ट भोजन बनाया है तूने। पर लगता है आज का सारा भोजन मुझे ही दे दिया। 

रोज़ तू ऐसा ही करता है। कहीं मैं भूखी ना रह जाऊं, तू अपने हिस्से का भी मुझे ही दे देता है। कितनी अभागी हूँ मैं ? 

एक तो मेरी ये बिमारी तुझ पर बोझ बन गई है। ना जाने हमारी ये लाचारी कब खत्म होगी ? कब ऊपर वाले को हम पर दया आएगी ? "

गुड्डू," अरे माँ ! तुम दुखी क्यों होती हो ? देखना जल्द ही सब ठीक हो जायेगा। अच्छा तुम आराम करो माँ और सो जाओ, रात बहुत हो चुकी है। "


जिसके बाद दोनों अपनी झोपड़ी में सो जाते हैं। अगली सुबह होती है। राजू फिर से लकड़ियां लेने जंगल जाता है। 

और जब थका हारा अपनी झोपड़ी में आता है तो देखता है कि उसकी माँ ज़ोर ज़ोर से चिल्ला रही होती है और गांव के कुछ लोग उसके पास खड़े होते हैं। 

मां," हाय ! इतना पेट दर्द हो रहा है, बहुत दर्द हो रहा है। लगता है अब मैं और नहीं जी पाऊंगी। बस अब और नहीं सहा जाता। हाय ! ना चाहे क्या भाग्य पाया है मुझे ? "

बेचारी निर्मला काकी अपनी बिमारी के कारण बहुत दुःख सहती है। 

आदमी," ना जाने कब ऊपर वाला इसकी सुनेगा ? "

गुड्डू ," अरे माँ ! तुम दुखी मत हो, मैं बस अभी वैद्य जी से तुम्हारे लिए दवा लेकर आता हूँ। फिर तुम जल्दी ठीक हो जाओगी, हाँ। बस मैं अभी आया। "

तभी बहुत तेज़ बारिश होने लगती है और गुड्डू भीगता हुआ वैद्य के घर जाता है और वैद्य के घर का दरवाजा खटखटाने लगता है।

गुड्डू," वैद्यजी, दरवाजा खोलिए। क्या कोई है इस घर में..? दरवाजा खोलिए। "

लेकिन गुड्डू के कई बार बोलने पर भी कोई दरवाजा नहीं खोलता है। तभी वहाँ पर एक आदमी आता है, जो काला कंबल ओड़े होता है। 

आदमी," अरे ! कौन हो तुम ? क्या तुम नहीं जानते इस घर में अब कोई नहीं रहता है। 

वैद्य जी का तो पिछले मास ही स्वर्गवास हो गया है। जाओ यहाँ से कोई नहीं रहता यहाँ इस घर में। "

गुड्डू," अरे ! लेकिन मुझे वैद्य जी से अपनी माँ के लिए दवा लेनी थी। मेरी माँ की तबियत ठीक नहीं है। 

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अब आखिर में कहाँ जाऊंगा ? पूरे गांव में वही एक वैद्य जी थे, अब वो भी नहीं रहे तो भला अब मैं माँ के लिए दवा कहाँ से लाऊं ? मेरी माँ की तबियत तो बिलकुल भी ठीक नहीं है। "

आदमी," ओह ! अच्छा तो ये बात है। चलो, तुम मेरे साथ चलो। यहाँ से कुछ दूरी पर एक साधू बाबा रहते हैं। वो जरूर तुम्हारी कोई मदद कर सकते हैं, चलो मेरे साथ। "

साधू," अच्छा तो तुम आ गए..? आओ, आओ गुड्डू। हम तुम्हारी ही प्रतीक्षा कर रहे थे। "

गुड्डू," अरे साधु महाराज ! क्या आप मुझे जानते हैं ? मैं बहुत दुखी हूँ महाराज, मेरी मदद कीजिए। "

साधू," हाँ हाँ बच्चा, मैं सब जानता हूँ। तुम चिंता मत करो गुड्डू। इसे अपनी माँ को दे देना, वो कुछ ही पलों में ठीक हो जाएगी। "

गुड्डू," बहुत बहुत धन्यवाद साधू महाराज... बहुत बहुत धन्यवाद। "


गुड्डू की माँ बिल्कुल ठीक हो जाती है। 

गुड्डू," अरे वाह ! माँ तुम बिलकुल ठीक हो गयी। वाकई साधू बाबा की दी हुई जड़ी बूटी ने अपना काम कर दिया, माँ। "

मां," हाँ बेटा, ये देख अब मैं बिलकुल ठीक हो गई हूँ। अब तो मेरा पेट भी दर्द नहीं कर रहा है, हाँ। 

और ये क्या... अब तो मैं चल फिर भी सकती हूँ। वाह वाह ! वाकई तेरी मुझे ये दी गई जड़ी बूटी तो चमत्कारी है बेटा, चमत्कारी। "

गुड्डू," हाँ, हम तुम सही कहती हो। साधू बाबा कोई साधारण नहीं बल्कि बहुत ही शक्तिशाली बाबा हैं। 

मैं फिर से उनके पास उनका धन्यवाद करने अवश्य ही जाऊंगा। उनकी दी गई जड़ी बूटी से तुम ठीक हो गयी, माँ। "

अगली सुबह गुड्डू फिर से साधू के पास जाता है जहाँ साधू अपनी ध्यान मुद्रा में बैठा होता है। 

गुड्डू," साधू बाबा, आँखें खोलिए साधू बाबा। सच में बाबा आपकी दी गई जड़ी बूटी कमाल कर गई थी। मेरी माँ ठीक हो गई, बाबा। आपका बहुत बहुत धन्यवाद ! "

साधू बाबा ज़ोर ज़ोर से हंसने लगता है। 

साधू," ये तो होना ही था। हमारी दी कोई भी चीज़ अपना असर ना करे, ये हो नहीं सकता। 

अपनी कई वर्षो की तपस्या से हमने परम ज्ञान प्राप्त किया है। लेकिन इसके बावजूद भी कई दिनों से हम बहुत दुखी हैं। "

गुड्डू ," ये आप क्या बोल रहे हैं बाबा ? आप और दुखी... आखिर क्यों ? क्या बात है जो आपको दुखी कर रही है ? बताओ मुझे। "

साधू," अपनी आराधना समाप्त करने के बाद मैं यहाँ से थोड़ी दूर अपने झोपड़ी में रहता हूँ, जिसमें मैं जाकर विश्राम करता हूं। 

लेकिन कल रात आए तूफान की वजह से मेरी झोपड़ी तहस नहस हो गई और अब मेरे पास कोई ऐसा स्थान नहीं जहाँ मैं विश्राम कर सकूँ। 

इस जंगल में आधी रात को जंगली जानवर आया करते हैं। मुझे भय है यहाँ स्थान पर अकेला देखकर वो मुझे अपना भोजन ना बना लें। "

गुड्डू," अरे ! अच्छा तो ये बात है। आप चिंता मत कीजिए, मैं एक लकड़हारा हूँ। आपकी समस्या का उपाय है मेरे पास। 

चलिए, आप मुझे अपनी टूटी हुई झोपड़ी के पास ले चलिए। अभी रुकिए साधू बाबा, मैं बस अभी आया। "

जिसके बाद गुड्डू जंगल जाता है और कुछ लकड़ियां और घास फूस लेकर साधू बाबा के पास आता है और फिर से साधू बाबा की टूटी झोपड़ी बनाने लगता है और देखते ही देखते वह फिर से साधू बाबा की बहुत सुंदर झोपड़ी बना देता है। 

गुड्डू," ये लीजिए बाबा, आपकी झोपड़ी बनकर तैयार हो गई है,।ये पहले से काफी मजबूत और सुंदर बन गई है। देखिए... अब आप इसमें आराम से विश्राम कर पाएंगे। "


साधू," सच में तुमने तो बहुत ही सुंदर झोपड़ी बना दी। अब हम इसमें अच्छे से विश्राम कर पाएंगे। हमें किसी जंगली जानवर का भी कोई भय नहीं होगा। 

वाह ! मैं तुमसे बहुत खुश हूँ। बताओ, तुम्हारी क्या इच्छा है ? हम अवश्य ही पूरा करेंगे। बताओ हमें। "

गुड्डू," आप ऐसा कर सकते हैं..? तो साधू बाबा मुझे कोई ऐसी वस्तु दे दीजिये जिससे मेरी बूढ़ी माँ को कभी भूखा ना रहना पड़े। बस कोई ऐसी वस्तु दे दीजिये, बाबा। "

साधू," अच्छा तो ये इच्छा है। ठीक है, तुम्हारी ये इच्छा मैं अवश्य पूरी करूँगा। "

तभी साधू बाबा की शक्ति से वहाँ एक चमकती हुई कड़ाही आ जाती है। 

साधू," ये चमत्कारी कड़ाही है। जब भी तुम्हें अपनी बूढ़ी माँ के लिए भोजन की आवश्यकता होगी तो यह चमत्कारी कड़ाही तुम्हारी सहायता करेगी। तुम इससे जो भी वस्तु मांगोगे, वो तुम्हें मिल जाएगी। "

गुड्डू," सच में बाबा, आप सच बोल रहे हैं ? मैं इस चमत्कारी कड़ाही से जो भी मांगूंगा, ये कड़ाही मुझे देगी ? "

साधू," हाँ बेटा, तुम जो भी मांगोगे वही देगी। लेकिन याद रखना जरूरत से ज्यादा लालच सदैव ही विनाश की ओर ले जाता है। 

अत्यधिक लालच का फल हमेशा ही बुरा होता है बेटा। बाकी सब तो माया है माया। "

गुड्डू," हाँ बाबा, मैं ध्यान रखूँगा। आपने जो कहा, मैं वो समझ गया। बहुत बहुत धन्यवाद आपका बाबा ! अब मैं चलता हूँ। "

घर पहुंचने के बाद...
मां," अरे ! आ गया तू बेटा ? कब से तेरी राह देख रही थी ? आज तो घर में एक भी अनाज का दाना नहीं है। 

अरे ! लेकिन तेरे हाथ में ये कड़ाही कहाँ से आई ? बता, क्यों लेकर आया है तू ये ? "

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गुड्डू," आजकल तो दीवार के भी कान होते हैं। ये कोई मामूली कड़ाही नहीं है बल्कि चमत्कारी है। साधू बाबा ने दी है। रुको अभी। *

गुड्डू ," हे चमत्कारी कड़ाही ! मुझे खूब सारा भोजन चाहिए जिससे मेरा और मेरी माँ का पेट भर जाए। जल्दी से मुझे खूब सारा भोजन दे दो। "

मां," अरे वाह बेटा ! तू तो बिल्कुल सच बोल रहा था। ये तो सच में चमत्कारी कड़ाही है। अरे वाह वाह ! इतना सारा भोजन...। "

गुड्डू," हाँ मा, देखो कितना सारा भोजन आ गया है ? वाह ! चलो अब भोजन करते हैं। "

आगे से गुड्डू और उसकी माँ को जब भी भोजन चाहिए होता था, तब वह उस चमत्कारी कड़ाही से मांगते और रोज़ बड़े चाव से भोजन करते। 


लेकिन फिर एक दिन गुड्डू की पड़ोसिन बबली गुड्डू के घर आती है और उसकी माँ को आवाज देती है। 

बबली," अरे ! कहाँ हो निर्मला काकी..? तनिक बाहर तो आओ। अरे ओ काकी ! देखो तो ज़रा बबली आई है। आओ ना, बाहर आओ। "

काकी," अरे ! आओ आओ बबली बेटी, कैसे आना हुआ ? आज बड़े दिन बाद आई हो, सब ठीक तो है ? "

बबली," अरे ! हाँ काकी, सब ठीक है। क्या बताऊँ काकी, बड़ी दुखी हूँ ? 

अब तुम तो जानती ही हो, कई दिनों से मेरी फसल खराब हो रही है तो घर में अनाज का एक भी दाना नहीं है। तो तनिक थोड़े से चावल मिल जाते तो अच्छा होता काकी। आज भूखा नहीं सोना पड़ेगा। "

बबली की ऐसी बातें सुनकर गुड्डू की माँ को बबली पर दया आ जाती है। 

काकी," अच्छा अच्छा ठीक है। तुम यही रुको, मैं अभी तुम्हारे लिए चावल लेकर आती हूँ। "

काकी," अरे ओ चमत्कारी कड़ाही ! मुझे खूब सारे चावल चाहिए। "

देखते ही देखते जादुई कड़ाई से खूब सारे चावल निकलने लगते हैं और यह सब बबली छुपकर देख रही होती है।

बबली (मन में)," अरे बाबा ! ये क्या... इतने सारे चावल वो भी इस मामूली से कड़ाही से। वाह वाह ! अब तो मुझे कड़ाई चाहिए, हाँ। 

कितना अच्छा होगा अगर ये चमत्कारी कड़ाही मेरे पास आ जाएगी ? इससे अपनी हर इच्छा पूरी करूँगी, हाँ। 

बबली," बहुत बहुत धन्यवाद काकी ! तुम सच में कितनी अच्छी हो ? वाह वाह ! ऊपर वाला तुम्हें लम्बी उम्र दे काकी। "

बबली (मन में)," अरे ! देखो तो सही इस चालाक बुढ़िया को... देखो तो पूरी की पूरी चमत्कारी कड़ाही लेकर बैठी हुई है और मुझे दिए ये कुछ चावल के दाने। "

जिन्हें लेकर बबली अपने घर चली जाती है। थोड़ी देर बाद बबली चुपके से फिर से आती है और चुपके से रसोई में आती है, जहाँ वह चमत्कारी कड़ाही रखी होती है। 

बबली," तुझे पाकर तो मुझे सब कुछ मिल जाएगा, हाँ। अच्छा इससे पहले मुझे वो देख ले, मुझे चमत्कारी कड़ाही ले जानी होगी, हाँ। 

अब मैं इस चमत्कारी कड़ाही से अपनी हर इच्छा पूरी करूँगी, हाँ। लेकिन अभी तो मुझे बहुत ज़ोरों की भूख लगी है। "

बबली," अरे ओ चमत्कारी कड़ाही ! मुझे खूब सारा मजेदार और स्वादिष्ट भोजन चाहिए, हाँ... खूब सारा। अरे वाह ! इतना सारा भोजन... वाकई ये तो सच में चमत्कारी कड़ाही है। 

अरे वाह वाह ! बड़ा ही मजेदार और स्वादिष्ट भोजन है। खाकर मज़ा ही आ गया। 

वाह वाह ! क्या चमत्कारी कड़ाही हाथ आई है। क्यों ना मैं इससे और भी कुछ मांगू ? मांग के देखूं... और भी कुछ मांगते हू। "

बबली," अरे ओ चमत्कारी कड़ाही ! ज़रा मुझे कुछ चांदी के सिक्के चाहिए, क्या तुम दे पाओगी ? दे दो मुझे चांदी के सिक्के। 

अरे वाह वाह ! क्या अद्भुत कड़ाई है ? वाह ! अब तो मुझे किसी भी वस्तु की कोई कमी नहीं होगी, हाँ। जो भी मुझे चाहिए, वो मैं इस कड़ाई से मांग लूँगी। 

अभी मांग लू क्या ? क्या पता कल ये अपना चमत्कार ना दिखा पाए ? तो तब तो मेरे हाथ कुछ भी नहीं आएगा। 


नहीं नहीं, सुन जादुई कड़ाई... मेरे ऊपर सोने चांदी, हीरे, मोती, जवाहरात सब की बारिश करा दे। ऐसी बारिश जो आज तक किसी ने ना देखी हो। 

इतना धन कि एक गांव क्या इस पूरी दुनिया को भी मेरे धन का एक तिहाई कमाने के लिए कई कई जनम लेने पड़ जाए, हाँ। 

इतना दे दे बस। अब मुझे इस दुनिया का सबसे अमीर बनने से कोई नहीं रोक सकता, कोई भी नहीं। "

इतना बोलते ही कड़ाही में से सोने और चांदी की बारिश होने लगती है और देखते ही देखते। खूब सारा सोना चांदी गिरने लगता है और उस पर भारी भारी सोने चांदी की चीजें गिरने लगती हैं। 

लगातार भारी चीज़ों से बबली पे चोट लगने लगती है। तभी गाय भैसों की आवाज सुन वो बाहर आती है। 

जैसे ही बबली घर के बाहर जाती है तो उसके तबेले में आग लग चुकी होती है और उसकी गाय भैस इधर उधर भाग रही होती हैं। 

तभी पूरे तबेले में आग लग जाती है और जैसे ही वो कुछ सोचती है इतने में उसका सारा घर जलकर राख हो जाता है। 

बबली," अरे रे ! ये क्या हुआ ? ये आग कैसे लग गयी ? अरे ! ये क्या हो गया ? अरे ! मेरा धन... ये क्या हो गया ?

मेरा सारा धन और वो चमत्कारी कड़ाही आग में जलकर खाक हो गई। लगता है ये सब मेरे लालच की वजह से हुआ है। 

मुझे वो चमत्कारी कड़ाही निर्मला काकी की झोपड़ी से चोरी ही नहीं करनी चाहिए थी। मुझे जाना होगा निर्मला काकी के पास, माफी मांगनी होगी। "

उस आग में उसका पूरा घर जलकर राख हो जाता है। लेकिन जब बबली काकी के घर जाती है तो जादुई कड़ाही बिल्कुल सुरक्षित उसी स्थान पर रखी होती है। 

बबली," अरे ! ये कैसे संभव है ? ये चमत्कारी कड़ाही तो आग में जलकर राख हो गई थी, फिर ये यहाँ कैसे ? 

मेरी तो कुछ समझ नहीं आ रहा। अरे ! ये चमत्कारी कड़ाही तो मैं चुराकर अपने साथ ले गई थी, जिसके बाद ही मेरे साथ ये सब कुछ हुआ। 

मुझे जो कुछ भी इस चमत्कारी कड़ाही से प्राप्त हुआ था, वो सब जलकर खाक हो गया। "

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काकी," तुम्हारे लालच के ही कारण हुआ है। साधू बाबा ने कहा था... जब कोई इस चमत्कारी कड़ाही का उपयोग अपने अत्यधिक लालच के लिए करेगा तो ये चमत्कारी कड़ाही उसके लालच का फल उसे अवश्य ही देगी। 


ये चमत्कारी कड़ाई तो यहीं थी। ये तो मेरी इस झोपड़ी से कभी बाहर गई ही नहीं बबली बेटी। 

जिस चमत्कारी कड़ाही को तुम चुराकर ले गई थी, वो तो इसकी परछाई थी जिसने तुम्हारे लालच का फल तुम्हें दे दिया। "

बबली," हाँ काकी, अब मैं समझ गई हूँ। मनुष्य को उसकी अत्यधिक लालच का फल अवश्य मिलता है। मुझे लालच नहीं करना चाहिए था। मेरे लालच के कारण ही मेरी ये दशा हो गई है। "

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हेलो दोस्तों ! मैं हूं आपका अपना दोस्त, प्रदीप। यहां मैं कुछ अनोखी कहानियों के साथ आपका मनोरंजन करूंगा। अगर आपको हमारा लेखन कार्य पसंद आए तो हमें Support करें और अपना प्यार बनाए रखें।

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