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अनोखा छाता | Hindi Kahaniya | Moral Stories in Hindi | Bed Time Story | Gaon Ki Kahani

आज की इस कहानी का नाम है - " अनोखा छाता " यह एक Bachho Ki Kahani है। अगर आपको Hindi Kahaniya, Moral Story in Hindi या Hindi Stories For Kids
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हेलो दोस्तो ! कहानी की इस नई Series में आप सभी का स्वागत है। आज की इस कहानी का नाम है - " अनोखा छाता " यह एक  Bachho Ki Kahani है। अगर आपको Hindi Kahaniya, Moral Story in Hindi या Hindi Stories For Kids पढ़ने का शौक है तो इस कहानी को पूरा जरूर पढ़ें।

अनोखा छाता | Hindi Kahaniya | Moral Stories in Hindi | Bed Time Story | Gaon Ki Kahani

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 अनोखा छाता 

सोनू एक बहुत ही गरीब परिवार से था। वह अपने पिता अर्जुन और माता सीमा के साथ रहा करता था। 

उसके पिता जंगल से लकड़ियां काट कर लाते थे और बाजार में बेचा करते थे। इसी तरह से उनका गुजर-बसर चल रहा था।

सीमा," आप आ गए। आज इतना उदास क्यों लग रहे हो ? " 

अर्जुन," आज तो जंगल में लकड़ियां ही नहीं मिली। थोड़ी सी मिली है बस उससे भला बाजार में क्या दाम मिलेगा ? "

सीमा," आप चिंता क्यों करते हो ? सब दिन एक से नहीं होते। " 

इतने में सोनू भागता हुआ आता है और सीमा के गले लग जाता है।

सोनू," मां, देखो मैं अपनी कक्षा में प्रथम आया हूं। " 

सीमा," यह तो बहुत अच्छी बात है। बेटा, इसी तरह से पढ़ लिख कर बड़ा आदमी बनना और अपने मां-बाप का नाम रोशन करना। " 

सोनू," पापा, प्रधानाचार्य ने मेरी पढ़ाई से खुश होकर मुझे पास के गांव के बड़े स्कूल में पढ़ने की इजाजत देदी है। "

अर्जुन," अरे वाह ! यह तो बहुत अच्छी बात है। कब जाना है वहां पढ़ने के लिए ? "

सोनू ," दो दिन बाद जाना है। " 

सीमा," पर उस गांव में जाने के लिए तो नदी पार करनी होती है ना। और हमारे पास इतने पैसे नहीं है कि रोज उस गांव तक जाने के लिए नाव वाले को पैसे दे सकें। " 

अर्जुन," अभी तो 2 दिन बाकी है, कुछ ना कुछ जुगाड़ जरूर हो जाएगा। "

फिर तीनों खाना खाकर सो जाते हैं पर अर्जुन को नींद नहीं आती; क्योंकि उसे पैसों का बंदोबस्त करना था। उसका बेटा बहुत होनहार था और उसे एक बड़े स्कूल में पढ़ने का मौका मिला था। 

अर्जुन नहीं चाहता था कि उसकी वजह से उसका बेटा अच्छे स्कूल में ना पढ़ सके। 

अर्जुन," वैसे तो मैं अपने बच्चे के लिए कुछ नहीं कर पाता पर अब जब उसने अपनी मेहनत के बलबूते पर एक बड़े स्कूल में पढ़ने का मुकाम हासिल किया है तो फिर भला मैं उसे पढ़ा भी नहीं पा रहा। लेकिन हाथ पर हाथ रखे बैठकर कुछ नहीं होगा, मुझे कुछ ना कुछ तो प्रबंध करना ही होगा। "

अगली सुबह अर्जुन अपनी कुल्हाड़ी लेकर जंगल की तरफ गया और वहां उसे ज्यादा लकड़िया नहीं मिली। बस वही थोड़ी सी लकड़ियां काटकर बाजार में बेच आया। फिर जब वह बाजार से वापस आ रहा होता है तभी उसे एक भिखारी दिखाई दिया। 

भिखारी," बेटा, कई दिनों से खाने को कुछ नहीं मिला और ना ही जेब में कोई पैसा है। जिससे भी भीख मांगने गया उसने चिल्लाकर- फटकारकर मुझे वहां से भगा दिया और रात भी बहुत हो गई है। कुछ पैसे हों तो दे दो, बहुत तेज भूख लगी है। "


अर्जुन (मन में)," मेरे पास तो इन लकड़ियों को बेचकर केवल दो ही रुपए आए हैं। इनसे भला मेरा क्या होगा ? लेकिन कम से कम इस गरीब इंसान का पेट तो भरेगा। मैं यह ₹2 इसी को दे देता हूं। मैं कुछ और बंदोबस्त कर लूंगा। "

अर्जुन ₹2 उस भिखारी को दे देता है ।

भिखारी," बेटा, भगवान तुम्हारा भला करे। तुम्हारे हाथ में जो हुनर है वह एक दिन तुम्हें बहुत ऊंचाई पर लेकर जाएगा। "

अर्जुन," मैं समझा नहीं। "

भिखारी," समय आने पर सब कुछ समझ जाओगे। " यह कहते हुए भिखारी वहां से चला जाता है।


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अर्जुन खाली हाथ घर वापस जाता है और अभी भी वह यही सोच रहा था कि सोनू के लिए पैसे कहां से लेकर आऊं ? तभी अचानक से बहुत तेज बारिश होने लगी जो कि रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी।

अर्जुन," हे भगवान ! इस बारिश को भी अभी होना था। ऐसा लग रहा है कि साल भर की बारिश अभी हो जाएगी। "

सीमा," कल सोनू को पास वाले गांव में पढ़ने के लिए जाना है और यह बारिश है कि रुकने का नाम ही नहीं ले रही। हमारे पास तो छाता भी नहीं है जो हमें इसे दे दें। "

पूरी रात पानी बरसता रहा। पानी रुकने की आस में सीमा और अर्जुन सोनू के साथ बारिश होते हुए देखते रहे लेकिन बारिश ने रुकने का नाम ही नहीं लिया। तभी अर्जुन को उस भिखारी की बात याद आई। वह तुरंत उठ गया।

सीमा," क्या हुआ ? तुम अचानक इस तरह क्यों उठ गए ? "

अर्जुन," तुम आराम से सो जाओ और मुझे मेरा काम करने दो। सीमा और सोनू अंदर जाकर सो गए और अर्जुन ने पूरी रात जागकर एक लकड़ी की छतरी बनाई।

और सुबह सोनू को देते हुए कहा," सोनू... यह बारिश तो रुकने का नाम ही नहीं ले रही। इसलिए यह लो छतरी, मेरे पास कुछ लकड़ियां बची थी उनको छीलकर मैंने एक लकड़ी की छतरी बनाई है।

यह तुम्हें इस बारिश से भीगने से बचाएगी और तुम बिना भीगे स्कूल जा सकोगे। "

सोनू," पर पिता जी यह तो लकड़ी की छतरी है। "

अर्जुन," हां बेटा, मेरे पास जो था वह मैंने तुम्हें दे दिया। "

सोनू," यह तो बहुत ही सुंदर लग रही है। " 

सोनू उस छतरी को उठाता है और स्कूल जाने के लिए अपने माता पिता से आज्ञा लेता है।

जब सोनू छतरी लेकर गांव से निकला तो आसपास के लोग उसकी छतरी को देखने लगे और उसकी बहुत प्रशंसा करने लगे। गांव में बारिश के साथ-साथ तूफान भी आया हुआ था।

रास्ते में पवन और नितिन नाम के दो लड़के सुंदर-सुंदर रंगों की साधारण छतरी लिए हुए बारिश के नीचे खड़े थे।

पवन," अरे, अरे ! देखो सोनू के पास लकड़ी की छतरी। "

नितिन," इसके पास तो छतरी है ही नहीं। इसे तो बस किसी तरह काम चलाना है। "

पवन," यह देखो मेरी छतरी कितनी सुंदर है ? इसके रंग देखो और इसके ऊपर बनी पेंटिंग देखो। पता है कितनी महंगी है ? मेरे पापा इसे विदेश से लेकर आए थे। इसमें एक भी पानी की बूंद नहीं टपकती। "

पवन," हां, मेरे पिताजी को भी उनके जन्मदिन पर उनक एक दोस्त ने गिफ्ट किया था और पापा जी ने अब मुझे दी है। बारिश में काम तो आ रही है। "

नितिन," एक काम करते हैं, बारिश में इस सोनू को परेशान करते हैं।

पवन और नितिन छतरी लिए सोनू के पास जाते हैं और उसे उस लकड़ी के छतरी के बारे में बहुत कुछ सुनाते है।

पवन," अरे मैंने सुना है मास्टर जी ने तुम्हें पास के गांव में पढ़ने के लिए जाने को कहा है। "

नितिन," हां, इसका दूसरे स्कूल में तबादला हो गया है। "

पवन," अच्छा तो तू लकड़ी की इस छतरी को लेकर नये स्कूल जा रहा है ? "

नितिन," इसकी औकात भी है नये स्कूल में पढ़ने की। एक नया छाता तो लिया नहीं जाता, जाएंगे नये स्कूल में पढ़ने के लिए। "

नितिन और पवन सोनू को बहुत कुछ सुना देते हैं और तभी तेज तूफान आता है और नितिन एवं पवन की सुंदर-सुंदर साधारण छतरियों को अपने साथ आसमान में उड़ा कर ले जाता है।


सोनू," अरे तुम्हारी विदेश की छतरियां तो कौआ बन गई। यह विदेश से आई थी पर यह हमारे देश के आंधी तूफान को बर्दाश्त नहीं कर सकीं। "

पवन," सोनू हम भीग रहे हैं। हमें अपनी छतरी में आने दो ना, हमें बहुत ठंड लग रही है। "

नितिन," सोनू तुम्हारी छतरी तो हवा से उड़ेगी भी नहीं और ना ही उसमें पानी टपकेगा, हमें अपनी छतरी में ले लो ना। "

सोनू को उन पर दया आ गई और उसने अपनी छतरी में उनको आने दिया।

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पवन," हमें माफ कर दो सोनू... हमने तुम्हारा बहुत मजाक उड़ाया पर तुमने फिर भी हमें अपनी लकड़ी की छतरी में आने दिया और हमें भीगने से बचा लिया। नहीं तो हम पूरे के पूरे भीग जाते और बीमार पड़ जाते। "

सोनू," यह तो मेरा फर्ज था। अगर मैं भी तुम्हारी तरह करता तो तुम में और मुझ में क्या फर्क रह जाता ? "

सोनू अब पवन और नितिन को उनकी जगह पर छोड़कर अपने स्कूल की तरफ आगे बढ़ता है। आगे जाकर वह एक नदी के किनारे पहुंचा जहां पर बहुत पानी भरा हुआ था और कोई नाव भी नहीं थी।

सोनू ," अरे यहां तो कोई नाव भी नहीं है। मैं नदी पार कैसे करूंगा ? "

नदी के पास पहुंचते-पहुंचते बारिश भी रुक चुकी थी। तभी वह अपने छाते को उल्टा करके नदी में डाल देता है और उसे एक नाव के रूप में प्रयोग करता है।

सोनू," ये छतरी मेरे लिए नाव का काम भी करेगी। मुझे किसी भी हाल में स्कूल पहुंचना ही होगा। अगर मैं आज नहीं पहुंचा तो कभी भी इस मुकाम को हासिल नहीं कर पाऊंगा। "

सोनू अपनी छतरी में बैठ गया और अपने हाथों से पानी को धकेलते हुए आगे बढ़ गया। छतरी उसके इशारों के अनुसार आगे बढ़ते गई। 

फिर सोनू थोड़ी देर बाद पास के गांव में पहुंच गया।

सोनू," इस छतरी की मदद से मैं अपनी मंजिल तक पहुंच पाया हूं। पर यहां तो बारिश भी नहीं हो रही और तेज धूप निकली हुई है। इसमें भी यह मेरी लकड़ी की छतरी काम आएगी। "

वह अपनी छतरी को ऊपर कर लेता है और धूप से रक्षा करने लगता है। चलते चलते रास्ते में उसे कई लोग मिलते हैं जिन्हें वो अपनी छतरी के नीचे आने देता है और उन्हें उनके स्थान पर छोड़ते हुए आगे स्कूल की तरफ बढ़ता रहता है।

धीरे-धीरे सोनू स्कूल पहुंच जाता है।

वहां पर उसकी स्कूल की हेड मास्टर से मुलाकात होती है।

हेड मास्टर," अरे ! वाह सोनू , तुम तो इतनी तेज बारिश में भी निश्चित समय पर स्कूल आ गए। तुम्हारी यह लकड़ी की छतरी तो बड़ी कमाल की है। "

सोनू," मेरे पिताजी ने बनाकर मुझे दी है। मेरे पास इतने पैसे नहीं थे कि मैं एक नई छतरी ले सकता इसलिए उन्होंने अपने हाथों से यह लकड़ी की छतरी बना दी। "

हेड मास्टर को लकड़ी की छतरी इतनी पसंद आई कि वह सोनू के साथ उसके घर पहुंच गए।

और सोनू की प्रशंसा करते हुए बोले," सोनू जितना पढ़ाई में होशियार है उतना ही दिमाग भी बहुत चलाता है। उसने इस छतरी का उपयोग बहुत ही अच्छे तरीके से किया है। 

उसकी यह लकड़ी की छतरी बहुत अनोखी है। इसे इस लकड़ी की छतरी का उपयोग करना बहुत अच्छे तरीके से आता है। "

हेड मास्टर," मैं चाहता हूं कि तुम मेरे लिए भी एक लकड़ी की छतरी बनाओ जिसके लिए मैं तुम्हें एडवांस पैसे भी देना चाहूंगा। " 

अर्जुन यह सुनकर बहुत खुश हुआ। अब उसकी लकड़ी की छतरी की चर्चा दूर-दूर तक होने लगी और दूर-दूर से लोग उससे छतरी बनवाने के लिए आने लगे।

अर्जुन," बेटा आज तुम्हारी वजह से मेरी यह लकड़ी की छतरी लोगों की चहेती बन गई है। "


सोनू," पिता जी आपने मेरे बारे में इतना सोचा तो क्या मैं आपके लिए इतना सा भी नहीं कर सकता ? मेरे जरिए लकड़ी की छतरी का प्रचार हुआ है और यह छतरी दुनिया भर में प्रसिद्ध हो गई है। इससे आपको एक नया व्यापार करने का भी मौका मिला है। "



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अर्जुन," अगर उस भिकारी ने मेरे हुनर का मुझे विश्वास नहीं दिलाया होता तो आज शायद मैं यहां पर नहीं होता। "

अर्जुन अब हर रोज मेहनत करके 100 से भी ज्यादा लकड़ी की छतरियां बनाता और उन्हें सुंदर रंगों से भी पेंट करता। बाजार जाकर बेचने पर उन छतरियां का बहुत अच्छा दाम मिलता जिससे अर्जुन अपने परिवार का पालन पोषण करने लगा।

उसके इस व्यापार में उसकी पत्नी और उसका बेटा भी हाथ बटाते रहते। अब अर्जुन का पूरा परिवार इस काम से खुश था।



इस कहानी से आपने क्या सीखा ? नीचे Comment में हमें जरूर बताएं।


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हेलो दोस्तों ! मैं हूं आपका अपना दोस्त, प्रदीप। यहां मैं कुछ अनोखी कहानियों के साथ आपका मनोरंजन करूंगा। अगर आपको हमारा लेखन कार्य पसंद आए तो हमें Support करें और अपना प्यार बनाए रखें।

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