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जादुई अंगूठी | Hindi Kahaniya| Moral Stories in Hindi | Bed Time Story | Gaon Ki Kahani

आज की इस कहानी का नाम है - " जादुई अंगूठी " यह एक Magical Story है। अगर आपको Hindi Kahaniya, Moral Story in Hindi या Jaadui Kahaniya
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हेलो दोस्तो ! कहानी की इस नई Series में आप सभी का स्वागत है। आज की इस कहानी का नाम है - " जादुई अंगूठी " यह एक Magical Story है। अगर आपको Hindi Kahaniya, Moral Story in Hindi या Jaadui Kahaniya पढ़ने का शौक है तो इस कहानी को पूरा जरूर पढ़ें।

जादुई अंगूठी | Hindi Kahaniya| Moral Stories in Hindi | Bed Time Story | Gaon Ki Kahani

Magical Ring | Hindi Kahaniya| Moral Stories in Hindi | Bed Time Story | Gaon Ki Kahani 



 जादुई अंगूठी 

एक बहुत बड़े जंगल के पास एक गांव था। उस जंगल में एक बड़ा राक्षस रहने लगा। वह उन्हीं गांव वालों के जानवरों को मारकर खा लेता था और उन्हें परेशान करता रहता था। एक बार तो भोजन ना मिलने की वजह से उसने एक आदमी को ही मार डाला। गांव वाले उस राक्षस से बहुत परेशान थे। 

राक्षस ने गांव वालों के सामने एक शर्त रखी कि अगर वो सब हर रोज उसके भर पेट खाने का प्रबंध करते हैं तो वह उन्हें कोई भी नुकसान नहीं पहुंचाएगा। और इस तरह हर दिन गांव का एक व्यक्ति उसके भरपेट भोजन का प्रबंध करता।

गरीब ललित भी इसी गांव में अपनी पत्नी, सुमोना और बेटा, डमरू के साथ रहता था।

इस समस्या के सुझाव के लिए गांव के सभी व्यक्ति उस गांव के मुखिया के पास इकट्ठा होते हैं।

उनमें से एक व्यक्ति कहता है," मैं और सुखीराम उस राक्षस के लिए भरपेट भोजन लेकर गए थे। लेकिन उस भोजन से उस राक्षस का पेट नहीं भरा और वह क्रोधित हो गया। 

हमने उससे काफी विनती की कि हम उसके लिए और भोजन लेकर आएंगे। लेकिन वह नहीं माना और सुखीराम को मार दिया। इस तरह कब तक चलता रहेगा ? "

मुखिया कहता है," देखो राक्षस ने तो पहले ही कहा था कि उसे भरपेट भोजन हर दिन चाहिए। हमारी भलाई इसी में है कि हम उसे हर रोज भरपेट भोजन दें। 

ललित... कल राक्षस के लिए भरपेट भोजन ले जाने की तुम्हारी बारी है। हम सब ने अपनी अपनी बारी से उस राक्षस का पेट भरकर तुम्हारी और तुम्हारे परिवार की रक्षा की है और अब तुम हमारी रक्षा करो। "

ललित के पास कोई उपाय नहीं था इसलिए उसने मुखिया के सामने ' हां ' कह दिया और घर वापस लौट आया। 

उसने अपनी पत्नी से कहा," सुनो... घर में जितना भी खाना है वह सब इकट्ठा कर दो। आज दोपहर को ही राक्षस के पास लेकर जाना है। "


ललित की पत्नी अंदर रसोई में जाती है और सारे बर्तनों को खगोलती है। लेकिन उसे थोड़े से चावल और सत्तू मिलता है। 

वह उदास चेहरा लेकर ललित के पास आती है और कहती है," घर में तो खाने के लिए कुछ भी नहीं है। केवल थोड़े से चावल और सत्तू बचा है। इससे इस राक्षस का क्या होगा ? " 

ललित कहता है," पता नहीं लेकिन तुम इसी से कोई स्वादिष्ट व्यंजन बना दो। "

ललित की पत्नी सुझाव देते हुए कहती है," देखो इतने भोजन से उस राक्षस का पेट भी नहीं भरेगा। तुम एक काम करो, गांव वालों से अनाज और खाने की विनती करो। हो सकता है कोई ना कोई हमारी मदद कर दे। "


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ललित कहता है," इस समय भगवान के सिवाय हमारी कोई मदद नहीं कर सकता। "

तभी ललित का बेटा कमरे में प्रवेश करता है और कहता है," पापा, पापा... मेरा दोस्त कह रहा था कि आज वह मोटा राक्षस आपको खा जाएगा। क्या ये सच है ? "

ललित की पत्नी कहती है," हां, हां... डमरु सही कह रहा है। क्या पता पेट न भरने की वजह से वह तुम पर ही आक्रमण कर दे ? आप खाना लेकर नहीं जाएंगे। "

ललित कहता है," इतने दिनों तक गांव वालों ने अपनी - अपनी बारी पर राक्षस को खाना खिलाकर मेरी और मेरे परिवार की रक्षा की है। अगर मैं अपनी बारी से मुंह मोड़ लेता हूं तो यह तो बहुत बड़ा अन्याय होगा। नहीं... मैं ऐसा नहीं कर सकता। भले ही वह राक्षस मुझे ही क्यों ना खा ले ? लेकिन मैं खाना तो लेकर जाऊंगा। "


ललित की पत्नी उदास होते हुए कहती है," हे भगवान ! यह कैसी विपदा आ पड़ी है ? "

तभी डमरु वहां से भागकर जाता है और भगवान की मूर्ति के सामने हाथ जोड़कर खड़ा हो जाता है," हे भगवान ! मेरे पिता की रक्षा कीजिए और उस मोटे काले राक्षस को यहां से हमेशा हमेशा के लिए भगा दीजिए। "

नन्हे डमरु की ऐसी भक्ति और साहस देखकर ललित और सुमोना की आंखों में आंसू आ जाते हैं और वे दोनों भागकर डमरू को गले लगा लेते हैं।

ललित एक संदूक में से एक पुराना सा डिब्बा निकालता है।

सुमोना," यह क्या है ? "

ललित," पता नहीं यह डिब्बा मुझे मेरे पिताजी ने अंतिम समय में दिया था और उनको उनके पिताजी ने। मेरे दादाजी सिद्ध योगी थे। मेरे पिताजी ने यही कहा था कि इस डिब्बे को तभी खोलना जब तुम पर कोई बड़ी विपदा आ जाए वरना इसे भूल जाना। "

सुमोना कहती है," आज आपके प्राणों पर संकट छाया हुआ है। इससे बड़ी विपदा और क्या हो सकती है ? चलिए इसे खोलते हैं। "

ललित उस डिब्बे को खोलता है तो उसमें एक पुरानी अंगूठी और एक कोरा कागज निकलता है।

सुमोना हाथ में कोरा कागज लेते हुए कहती है," यह क्या ? इतनी पुरानी अंगूठी और कोरा कागज...। "

ललित कहता है," दादाजी ने पिताजी को यह अंगूठी और कागज क्यों दिया होगा ? ऐसा क्या है इसमें ? "

सुमोना कहती है," पता नहीं... लेकिन यह बुजुर्गों का आशीर्वाद है। इसे अपने पास ही रखना। "

ललित उस अंगूठी को पहन लेता है और राक्षस के पास जाने के लिए तैयार हो जाता है। सुमोना उसे एक पुराना थैला देती है।

ललित कहता है," पता नहीं मैं जीवित लौटूंगा या नहीं। मेरी प्रतीक्षा मत करना। अपना और डमरु का ध्यान रखा। चलो मैं चलता हूं। "

वही थैला लिए ललित दूर जंगल में पहुंच गया। तभी एक भयानक आवाज सुनाई दी," आ गए तुम। " 


और ललित के सामने धूल, मिट्टी और पत्ते से बनी वायु की गोल आकृति अचानक रुक गई और उसमें से वह भयानक राक्षस प्रकट हुआ।

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उसी पल उस राक्षस ने एक पेड़ खिलौने की तरह उखाड़ फेंका और जोर जोर से हंसने लगा," हा, हा, हा... मुझे बहुत जोर की भूख लगी है। जल्दी से मेरा भोजन लाओ। मैं कब से भूख से तड़पा जा रहा हूं ? "

ललित उसी वक्त अपने थैले में से उसी थोड़े बहुत भोजन को निकालता है जो वह घर से लेकर आया था।

राक्षस कहता है," जल्दी लाओ, मुझे बहुत तेज भूख लगी है। नहीं तो मैं तुम्हें ही खा जाऊंगा। "

ललित कहता है," मेरे पास बस इतना ही भोजन है। "

राक्षस कहता है," बस इतना ही है ? तुम उपहास तो नहीं कर रहे। इससे तो चींटी का भी पेट नहीं भरेगा। कुछ भी हो जाए मुझे भरपेट भोजन चाहिए। नहीं तो..."

ललित जोर जोर से रोने लगा।

तभी राक्षस ने ललित को एक खिलौने की तरह एक हाथ से उठाकर अपने दूसरे हाथ की हथेली पर रख दिया।

राक्षस," रोज-रोज घास फूस खाकर मैं ऊब चका हूं। आज मैं मांसाहार करूंगा। "

ललित," छोड़ दो मुझे, छोड़ो। हे भगवान ! मुझे बचाओ। "

राक्षस हंसता है," हा, हा, हा... क्या कहा भगवान ? यहां तुम्हें बचाने कोई नहीं आएगा। तुम्हारा भगवान भी मुझसे डर गया है।
चलो मैं तुम्हें एक शर्त पर छोड़ सकता हूं। तुम नाच कर मेरा मन बहलाओ। अगर मैं खुश हो गया तो मैं तुम्हें छोड़ दूंगा। "

ललित उस राक्षस की हथेली पर ही रोते हुए नाचने लगा। वह अपने दोनों हाथ ऊपर करते हुए नाच ही रहा था तभी राक्षस उसे गेंद की तरह हाथ में ही उछलने लगा।

राक्षस बोला," मैं तुम्हें कच्चा खाऊं या पका ? चलो मैं तुम्हें पकाकर खाता हूं। "

ललित जोर जोर से रोने लगा और उसके आंसू की एक बूंद उसकी अंगूठी पर जा गिरी। बूंद का अंगूठी पर गिरते ही अंगूठी में से एक तेज रोशनी प्रकट हुई और वह ललित के अंदर समा गई और ललित अदृश्य हो गया।

राक्षस," कपटी... छल करता है। तू क्या सोचता है तू बच जाएगा ? मैं तुझे नहीं छोडूंगा। "

ललित इस समय चींटी से भी छोटे आकार में आ जाता है। राक्षस उसे पकड़ने की बहुत कोशिश करता है लेकिन ललित कभी उसकी अंगुलियों के बीच से तो कभी उसकी हथेली के इधर-उधर चक्कर काटता रहता है लेकिन हाथ नहीं आता। हार थककर राक्षस वहीं बैठ जाता है।


ललित कहता है," तुम इस तरह नहीं बैठ सकते। आओ और मेरा मुकाबला करो। "

वह भागकर आता है और राक्षस के घुटनों के बराबर चढ़ जाता है। राक्षस हारा थका हुआ होता है इसलिए उसे गुस्सा आ जाता है और वह वापस खड़ा हो जाता है। 

इस बार ललित अपना रूप राक्षस के बराबर कर लेता है और उसे तेज धक्का मारता है जिससे राक्षस बहुत दूर जाकर करता है।

राक्षस," अब तू बच मेरे प्रहार से। "

राक्षस तेजी से भागते हुए ललित की ओर आता है लेकिन ललित राक्षस से भी विराट रूप धारण कर लेता है और कहता है," नीचे क्या देख रहे हो ? ऊपर देखो। "

राक्षस ऊपर देखता है और कहता है," कौन हो तुम और मुझे क्रोधित क्यों कर रहे हो ? "

ललित कहता है," इतना घमंड। " और हंसने लगता है। उसकी हंसी पूरे जंगल में गूंज उठती है। उसकी आवाज इतनी तेज थी कि राक्षस भी अपने कानों को बंद कर लेता है और कहता है," बंद करो हंसना। "

ललित हंसते हुए उसे गुदगुदाने लगता है," सुन, अब अपनी आवाज को सुन। "

गुदगुदी के कारण राक्षस भी हंसने लगा। तभी ललित ने राक्षस को अपनी एक उंगली से उठाया और हवा में फेंक दिया। राक्षस हवा में इधर-उधर गोल गोल घूमने लगा। 


तभी राक्षस हंसते हुए बोला," हा, हा, हा... मुझे ना तो कोई धरती पर मार सकता है और ना ही आकाश में। और अब मैं तुम्हें मजा चखाऊंगा। मैंने सोचा तुम्हें एक मौका दिया जाए लेकिन अब तो वह भी व्यर्थ है। "

राक्षस," अगर तुम मुझे 5 मिनट के अंदर - अंदर नहीं मार पाए तो मैं तुम्हें मारकर खा जाऊंगा। यह मेरा वरदान है। अब आ जाओ।"




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ललित ने अपना स्वरूप और भी विराट कर लिया और उसे पकड़ने के लिए दौड़ लगाई।

थोड़ी दूर तक भागने के बाद ललित उस राक्षस को पकड़ लेता है और दोबारा से हवा में उछाल देता है। राक्षस हवा में उड़ते हुए वापस जमीन पर गिरता है और राख का ढेर बन जाता है।


तभी वापस ललित के शरीर से वह तेज रोशनी निकलती है और अंगूठी में समा जाती है। और ललित वापस अपने पहले वाले स्वरूप में आ जाता है। 

ललित," अरे ! यह क्या... यह मुझे क्या हो गया था ? और वह राक्षस कहां है ? अरे ! यह तो राख का ढेर हो चुका है। पता नहीं मुझ में इतनी ताकत कहां से आ गई थी ? हे भगवान ! आपका बहुत-बहुत शुक्रिया। "

ललित अपना भोजन समेट कर वापस घर के लिए रवाना हो जाता है। घर पहुंचने के बाद उसकी पत्नी बहुत खुश होती है और कहती है," हे भगवान ! आपका बहुत-बहुत धन्यवाद। आपने ममेरे पति की रक्षा की। नहीं तो वह राक्षस पता नहीं मेरे पति के साथ क्या करता ? "

ललित कहता है," खुद मुझे भी नहीं पता कि मैंने उस राक्षस का सामना कैसे किया ? पता नहीं मेरे अंदर कौन सी शक्ति आ गई थी ? "

तभी डमरु अपने माता-पिता को आवाज लगाते हुए कहता है," मां - पिताजी यहां आइए। "

सुमोना कहती है," यह तो वही कोरा कागज है जो अंगूठी के साथ उस डिब्बे में निकला था। "

डमरू कहता है," इस कागज पर कुछ लिखा हुआ है। "

ललित कहता है," अरे ! नहीं... यह तो केवल कोरा कागज है। "

तभी डमरु उस कागज को जलती हुई मोमबत्ती के पास लेकर जाता है तो उस पर लिखे हुए शब्द उभर आते हैं।

ललित उन्हें ध्यान से पड़ता है। उस पर लिखा था," यह एक जादुई अंगूठी है। यह किसी भी नकारात्मकता को मिटा सकती है। लेकिन इस अंगूठी की शक्ति का प्रयोग केवल एक ही बार किया जा सकता है। इसके बाद इसे एक नदी में बहा दिया जाए। "

सुमोना कहती है," धन्य है इस अंगूठी का। चलो अब हम इसे किसी नदी में बहाकर आते हैं। "

ललित सुमोना और डमरू तीनों एक नदी के पास जाते हैं और उस अंगूठी को नदी में बहा देते हैं।


इस कहानी से आपने क्या सीखा ? नीचे Commemt में हमें जरूर बताएं।


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