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रहस्यमय सुरंग | Hindi Kahaniya| Moral Story | Bed Time Story | Hindi Stories | Hindi Fairy Tales

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हेलो दोस्तो ! कहानी की इस नई Series में आप सभी का स्वागत है। आज की इस कहानी का नाम है - " रहस्यमय सुरंग " यह एक Bhutiya Kahani है। अगर आपको Hindi Kahaniya, Moral Story या Hindi Fairy Tales पढ़ने का शौक है तो इस कहानी को पूरा जरूर पढ़ें।

रहस्यमय सुरंग | Hindi Kahaniya| Moral Story | Bed Time Story | Hindi Stories | Hindi Fairy Tales

Rahasamay Surang | Hindi Kahaniya| Moral Story | Bed Time Story | Hindi Stories | Hindi Fairy Tales



 रहस्यमय सुरंग 

समुद्र तटीय इलाके में हरिनगर नाम का एक छोटा सा गांव था। इस गांव में एक छोटा सा परिवार था जिसमें मां, बाप और एक जवान बेटा रहता था। बेटे का नाम रामकिशोर था। रामकिशोर की 12वीं कक्षा की परीक्षा अभी अभी खत्म हुई थी।

बाप," अरे ! ओ रामकिशोर... सुन तेरी परीक्षा का परिणाम आने में तो अभी समय लगेगा तब तक तू कुछ काम क्यों नहीं ढूंढ लेता ? घर का खर्च ही चलता रहेगा। "

रामकिशोर," पिताजी लेकिन अभी मुझे क्या काम मिलेगा ? एक काम करता हूं कल सुबह मैं राजू के साथ मछली पकड़ने के लिए चला जाऊंगा। "

बाप," मछली पकड़ने के लिए... क्या इतना पढ़ लिखकर तू मछली ही पकड़ेगा ? यह सब तो अनपढ़ों के काम है। "

रामकिशोर," तो फिर मैं क्या करूं ? "

बाप," एक काम कर कल तेरे चाचा घर आ रहे हैं, मैं उनसे तेरे काम के लिए पूछ लूंगा। "

रामकिशोर," ठीक है पिताजी। "

अगले दिन रामकिशोर के चाचा जी घर आते हैं।

रामकिशोर के चाचा," नमस्कार भैया जी... कैसे हो ? "

रामकिशोर के पापा," आओ आओ छोटे भाई बैठो, बड़े दिनों बाद आना हुआ। "

रामकिशोर के चाचा," क्या बताऊं भैया ? कामकाज के चक्कर में आना जाना ही नहीं हो पाता। और रामकिशोर तुम्हारा क्या हो रहा है ? "

रामकिशोर," अभी-अभी 12वीं की परीक्षा खत्म हुई है। परिणाम आना बाकी है। सोच रहा हूं तब तक कोई काम ही ढूंढ लूं। "

रामकिशोर के चाचा," तुम मेरे साथ ही काम क्यों नहीं कर लेते ? बस दूर से आए लोगों को उनके मनचाही स्थलों का भ्रमण कर आना है और बदले में तुम्हें कुछ रुपए मिल जाया करेंगे। 

कल ही मेरे तीन दोस्त काजीरंगा घूमने के लिए जाना चाहते हैं। मैंने उनसे वादा किया है कि मैं उन्हें काजीरंगा का भ्रमण जरूर कराऊंगा। तो क्या तुम मेरे साथ चलोगे ? क्योंकि तुम तो यहां काजीरंगा से अच्छी तरह परिचित हो। "


रामकिशोर," लेकिन मैं तो...। "

रामकिशोर के पापा," अरे ! सुन तो सही, तेरे चाचा सही कह रहे हैं। कल तू उनके साथ जाएगा, ठीक है ना। "

रामकिशोर," जैसा आप ठीक समझें पिताजी। "


अगले दिन

रामकिशोर के चाचा (फोन उठाते हुए)," हेलो ! यह सब कैसे हुआ ? ठीक है, ठीक है... मैं आज ही पहुंचता हूं। "

रामकिशोर के पापा," क्या हुआ छोटे भाई ? सब कुछ ठीक है ना। "

रामकिशोर के चाचा," नहीं, नहीं भैया जी... रामकिशोर की चाची सीढ़ियों से गिर गई है। उसके पैरों में और सिर में चोट आई है। 

मुझे अभी इसी वक्त हॉस्पिटल पहुंचना होगा। मेरे दोस्तों को काजीरंगा घुमाने का काम मैं रामकिशोर को सौंप देता हूं। ठीक है ना रामकिशोर। "

रामकिशोर," लेकिन मैं अकेला कैसे चाचाजी..?? "

रामकिशोर के चाचा," अरे ! कुछ नहीं, वह भी तो हमारी तरह इंसान ही है,अच्छे से बात करेंगे। तुम काजीरंगा को अच्छे से जानते हो। इसलिए तुमसे अच्छा भ्रमण कोई और नहीं करा पाएगा। 

 

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तुम एक काम करना, ऐतिहासिक सभी जगहों पर उन्हें घुमाने जरूर लेकर जाना। चलो अब मैं चलता हूं। " यह कहते हुए रामकिशोर के चाचा वहां से चले जाते हैं।

लगभग दोपहर के समय रामकिशोर के चाचा के तीन दोस्त हिम्मत सिंह, धनराज और पंकज रामकिशोर के घर पहुंचते हैं।

हिम्मत सिंह," मेरा नाम हिम्मत सिंह है। मैं लाखन सिंह के साथ काजीरंगा भ्रमण के लिए आया हूं। "

रामकिशोर," अच्छा - अच्छा तो आप है। चाचा जी ने मुझे बताया था, आपको काजीरंगा भ्रमण कराना है। चाचा जी को तो किसी जरूरी काम से शहर जाना पड़ा। इसलिए आपको काजीरंगा भ्रमण कराने का काम मुझे सौंप कर गए हैं। "

हिम्मत सिंह," ठीक है तो फिर चलिए शुरुआत करते हैं अपने काम की। "

इसके बाद रामकिशोर और हिम्मत सिंह अपने दो दोस्तों के साथ गाड़ी में बैठकर काजीरंगा भ्रमण के लिए निकल जाते हैं।

काजीरंगा पहुंचकर रामकिशोर उन तीनों को सबसे पहले एक प्रसिद्ध चर्च का भ्रमण कराता है। भ्रमण पूरा करने के बाद वह सब फोटोग्राफी का काम करते।

सभी एक दूसरे का फोटो खींचते हैं। भ्रमण हो जाने के बाद धनराज कहता है," अच्छा अब तुम हमें कहां ले कर जाने वाले हो ? नेक्स्ट लोकेशन कौन सा है ?


रामकिशोर," काजीरंगा का एक प्रसिद्ध उद्यान है। आप कहे तो वहां चल सकते हैं। "

धनराज," हम इतनी दूर से क्या बगीचे घूमने के लिए आए हैं ? हमें कोई ऐसी जगह बताओ जो डरावनी और रहस्यमई हो। "

रामकिशोर," ऐसी जगह तो केवल एक ही है। लेकिन वहां पर किसी की भी जाने की हिम्मत नहीं होती। इसे रहस्यमय सुरंग के नाम से जाना जाता है। यहां से थोड़ी ही दूर पहाड़ियों के पीछे यह सुरंग है। "

धनराज," अब की ना तुमने मजे की बात। ऐसी ही तो लोकेशन का भ्रमण करने के लिए मैं यहां तक आया हूं। "

हिम्मत सिंह," देखो भाई... भले ही मेरा नाम हिम्मत सिंह है लेकिन हिम्मत नाम की चीज मेरे अंदर बिल्कुल भी नहीं है। इसलिए मैं तो तुम्हारे साथ इस जगह पर नहीं जाऊंगा। "

पंकज," हम कोई दूसरी लोकेशन पर चलते हैं। "

धनराज," तभी तो मैं तुम जैसे डरपोक लोगों के साथ नहीं आता। "

पंकज," डरपोक किसे कह रहा है ? "

धनराज," तुम दोनों को और किस को ? "

हिम्मत सिंह," देखो तुम दोनों लड़ाई झगड़ा बंद करो। चलो हम सब एक साथ इस जगह चलते हैं। हम सब साथ साथ रहेंगे तो कुछ भी गलत नहीं होगा, ठीक है ना। "

कुछ समय बातचीत के बाद वह सब उस रहस्यमई सुरंग के भ्रमण के लिए निकल जाते हैं। लगभग आधे घंटे के बाद वह समुद्र तटीय पहाड़ों से होते हुए उस रहस्यमय सुरंग के पास पहुंच जाते हैं।

तभी एक भिखरी वहां से गुजरता है और
 उन चार मुसाफिरों को देखकर कहता है," आ गए तुम अपनी मौत के पास। अब तुम्हें कोई नहीं बचा सकता। केवल चमकता पत्थर और साफ मन ही यहां से जिंदा वापस लौट सकता है। "

रामकिशोर," साहब, आप एक बार फिर सोच लीजिए यह रहस्यमई होने के साथ-साथ भूतिया सुरंग भी है। जो भी लोग पास में समुद्री लहरों से मरे हैं, उन सबकी आत्मा इस सुरंग में बसी है। "

धनराज," अरे ! अब बंद भी करो यह डरपोक बातें। चलो सभी साथ में चलते हैं। "

रामकिशोर," ठीक है तो आप तीनों जाइए, मैं यहीं खड़ा रहता हूं। "

धनराज," तुम यहां क्यों ? तुम्हें भी हमारे साथ चलना होगा। नहीं तो हम पूरा पेमेंट भी नहीं करेंगे। "

ना चाहते हुए भी रामकिशोर को उस रहस्यमय सुरंग के अंदर जाना पड़ता है।

बड़े बड़े पहाड़ी पत्थर, मकड़ी के जाले और पक्षियों का बसेरा और बढ़ता हुआ अंधेरा उस सुरंगों को और भी ज्यादा डरावना बना रहा था। 

तभी पंकज कहता है," धनराज, तुम्हारे पास टॉर्च है उसे जलाते क्यों नहीं ? "

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धनराज पंकज के कहने पर अपने थैले में हाथ डालता है तो उसके हाथ में टॉर्च के बजाय किसी का कटा हुआ हाथ आ जाता है। 

धनराज यह देखकर डर जाता है और कहता है," मैंने तो इस थैले में अपनी जरूरतमंद चीजें ही भरी थी फिर ये यहां कैसे आया। "

तभी सुरंग से डरावनी आवाजें आने लगती है," हा, हा, हा... स्वागत है आप सभी का इस प्यारी सी सुरंग में, इस प्यारी सी सुरंग में स्वागत है। आज आप सभी मौत के मुंह में आ चुके हो। अब तुम्हारा मरना निश्चित है।

यह कहते हुए वह डरावनी आवाज और भी तेज होती जा रही थी। सभी लोग डर जाते हैं और उनके कदम पीछे की ओर हटने लगते हैं। 

रामकिशोर कहता है," मैंने तो पहले ही कहा था - यह एक भूतिया सुरंग है। लेकिन तुमने मेरी बात को नहीं सुना। अब देखो क्या हो रहा है ?


धनराज जो बड़े ही उत्सुकता से इस सुरंग का भ्रमण करना चाहता था, पसीने से भीग चुका था और उसका दिमाग भी काम करना बंद कर चुका था। 

सभी लोग डर के मारे कांप रहे थे। तभी वहां कुछ कटे हुए मांस के टुकड़े गिरते हैं जिन्हें देखकर सब लोग चिल्लाने लगते हैं। तभी पीछे से पंकज को एक सर कटी चुड़ैल खींच कर ले जाती है।

अपने दोस्त को अपने से दूर होता हुआ देख वह लोग और भी डर जाते हैं। वहां से भागने के लिए वो लोग सुरंग से बाहर जाने का रास्ता ढूंढने लगते हैं।

कुछ समय के बाद उन्हें सुरंग के ठीक सामने दो रास्ते दिखाई देते हैं जिसमें से एक रास्ता बिल्कुल अंधेरे से भरा हुआ था और दूसरे में थोड़ी सी रोशनी दिखाई दे रही थी।

हिम्मत सिंह अपना सुझाव देते हुए कहता है कि इस रास्ते में से थोड़ी सी रोशनी दिखाई दे रही है। लगता है यह सही रास्ता है। लेकिन हम तीनों में से एक एक करके ही इस सुरंग में जा सकते हैं। 

इसलिए मैं सबसे पहले जाता हूं। जैसे ही हिम्मत सिंह बीच सुरंग में पहुंचता है, सरकटी चुड़ैल उसे भी मार देती है और उसकी चीख की आवाज है पूरी सुरंग में गूंज जाती है।

यह सुनकर धनराज और रामकिशोर भी डर जाते हैं। लेकिन रामकिशोर हिम्मत बांधते हुए धनराज से कहता है," सुनो साहब... यह समय डरने की नहीं बल्कि हिम्मत दिखाने का समय है। अगर हम डर गए तो हम अपनी जान नहीं बचा पाएंगे। "

धनराज कहता है," यह सब मेरी वजह से हुआ है। अगर मैं यहां आने की जिद नहीं करता तो मेरे बाकी दो दोस्त भी सही सलामत मेरे साथ होते। मेरा तो दिमाग भी काम नहीं कर रहा है। तुम ही कुछ सोचो। "

तभी रामकिशोर के दिमाग में भिखारी की कही हुई बात याद आती है - साफ मन और चमकता पत्थर ही इस सुरंग से जिंदा वापस आ सकता है।

वह थोड़ा विचार करता है कि आखिर भिखारी की इस कही हुई बात में क्या संबंध है ? उसके बाद वह धनराज से कहता है," साहब, अपने आसपास कोई चमकीला पत्थर ढूंढो। "

धनराज," चमकीला पत्थर क्यों ? "

रामकिशोर," पहले आप चमकीला पत्थर ढूंढो, सवाल जवाब बाद में होते रहेंगे। "

रामकिशोर और धनराज उसी समय अपने आसपास उस चमकीले पत्थर को ढूंढना शुरू कर देते हैं। काफी समय बाद धनराज के पैरों से वह चमकता पत्थर टकराता है और दूर लुडकता हुआ गिरता है। जैसे ही धनराज की उस पर नजर गिरती है, वह तुरंत रामकिशोर को आवाज लगाता है। 

रामकिशोर और धनराज अभी भी उस पत्थर को देख रहे होते हैं। तभी धनराज उस चमकीले पत्थर को अपने हाथ पर लेता है और भगवान का शुक्रिया अदा करता है।

रामकिशोर," अब हमें चमकीला पत्थर तो मिल गया लेकिन साफ मन का क्या मतलब है ? "

चमकीला पत्थर अभी धनराज के हाथों में होता है। धनराज उसकी कही हुई बात का मतलब समझ जाता है। तभी वह उस चमकीले पत्थर को रामकिशोर के हाथ पर रखकर कहता है," अलविदा मेरे दोस्त...। "

यह कहते हुए ही एक तेज रोशनी होती है और वह दोनों गायब होकर सुरंग के बाहर पहुंच जाते हैं।


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यह देखकर वह दोनों पूरी तरह चौक जाते हैं कि आखिर इस चमकीले पत्थर में ऐसा क्या है जो उन्हें इस सुरंग के बाहर तक सुरक्षित लेकर आ पाया ?


उसके बाद वह उसे चमकीले पत्थर को उस रहस्यमय सुरंग के एक ओर रख देते हैं और दोनों गाड़ी में बैठ कर घर की ओर निकल जाते हैं।

इस तरह धनराज की एक गलती की सजा उसके दो सच्चे और अच्छे मित्रों की मौत से चुकाई जाती है। धनराज अपनी इस गलती पर बहुत ज्यादा शर्मिंदा है और दोबारा ऐसी कोई गलती ना करने का वचन भी लेता है।


इस कहानी से आपने क्या सीखा ? नीचे Comment में हमें जरूर बताएं।



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