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जादुई बिरयानी | Jadui Biryani | Hindi Kahaniya | Moral Stories | Bed Time Story | Hindi Stories | Jadui Kahani

आज की इस कहानी का नाम है - " जादुई बिरयानी " यह Jadui Kahani एक है। अगर आपको Hindi Stories, Moral Story in Hindi या Hindi Fairy Tales पढ़ें।
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हेलो दोस्तो ! कहानी की इस नई Series में आप सभी का स्वागत है। आज की इस कहानी का नाम है - " जादुई बिरयानी " यह एक Jadui Kahani है। अगर आपको Hindi Stories, Moral Story in Hindi या Hindi Fairy Tales पढ़ने का शौक है तो इस कहानी को पूरा जरूर पढ़ें।

जादुई बिरयानी | Jadui Biryani | Hindi Kahaniya | Moral Stories | Bed Time Story | Hindi Stories | Jadui Kahani

Jadui Biryani | Hindi Kahaniya| Moral Stories | Bed Time Story | Hindi Stories | Jadui Kahani



 जादुई बिरयानी 

कासगंज गांव में भोला अपने सौतेले पिता और अपनी मां के साथ रहता था। भोला को गांव में सब लोग भोंदू बोलते थे। 

उसकी मां और पिता उसे बहुत प्यार करते थे। भोला अपने नाम की तरह बहुत भोंदू था। 

पिता उसे समझाया करते थे। गांव वाले अक्सर उसे बेवकूफ बना देते थे।

पिता," भोंदू... ओ बंधु, इधर तो आ भोंदू। यह ले 5 रूपये... सामान के, फटाफट रामदीन को दे आ। बोलकर आया हूं कि अभी भेज रहा हूं। "

भोला," जी पिताजी... अभी दे आता हूं। "

पिता," हां, लेकिन काम करके जल्दी आ जाना। "

गांव के पीपल के पेड़ के नीचे कुछ लोग जुआ खेलते थे। 

आदमी," हे भगवान ! यह मैंने क्या अनर्थ कर दिया ? मुझे लगा था कि बाजी जीत गया, रुपए दुगने हो जाएंगे। 

पर सारे के सारे जुए में हार गया। अब मुन्नी की दवा कहां से आएगी ? "

सामने से भोंदू जा रहा था। 

आदमी (मन में)," यह भोंदुआ कहां जा रहा है ? पूछता हूं... शायद कोई मदद कर दे। "


आदमी," भोंदू, ओ भोंदू ! कहां भागे जा रहे हो भैया ? जरा रुको तो। "

भोला," अरे ! मैं जल्दी में हूं। बापू ने 5 रूपये रामदीन काका को जल्दी से देकर आने को कहा है। "

आदमी (मन में)," 5 रूपये... अरे रे ! मुझे मिल जाएं। इस भोंदुआ से ₹5 ऐंठना कोई ज्यादा बड़ा काम नहीं है। "

आदमी," अरे भैया ! सुनो तो, मैं बहुत मुश्किल में हूं भैया। तुम बहुत दयावान हो। थोड़ी मदद कर दो। "

भोला," क्या हो गया ? ऐसा क्यों बोल रहे हो ? "

आदमी," भाई, मुन्नी की तबीयत बहुत खराब है। मुझे 1 महीने से कोई काम नहीं मिला। बेरोजगार घूम रहा हूं। तुम ये 5 रूपये मुझे दे दो। "

भोला," नहीं नहीं, बापू गुस्सा करेंगे। "

आदमी," भाई, आज दवाई लाना जरूरी है। मैं पक्का कुछ भी करके कल तक तुम्हें रुपए वापस कर दूंगा। तुम रामदीन को कल दे देना, कुछ नहीं बिगड़ेगा। "

भोला," कल...। "

आदमी," हां भैया, पक्का कल दे दूंगा। आज मदद कर दो। "

भोंदू ने उसे रुपए दे दिए। 

आदमी," भगवान तुम्हें खूब तरक्की दे भैया। "

भोंदू ने घर आकर पिता को सब बता दिया।

पिता," अरे ! इस सौतेले बेटे को इसलिए पाल पोसकर बड़ा किया कि हमारे बुढ़ापे की लाठी बनेगा। पर यह मूरख राज तो बिल्कुल भोंदू है। "

मां," अजी, आप बबुआ को ऐसा क्यों बोल रहे हो ? "

पिता," किसी को याद भी है कि इसका नाम भोंदू नहीं, बबुआ है ? इस बुढ़ापे में इतनी ताकत नहीं। मैं इसे नहीं पाल सकता। "

पिता (भोंदू से)," तुम चले जाओ यहां से। "

मां," अरे ! आप क्या कह रहे हो ? वह कहां जाएगा ? मैं अपने बेटे के बिना नहीं रहूंगी हां। "

पिता," तुम्हारी वजह से ही तो यह आज ऐसा है। लाड प्यार ने लड़के को बर्बाद कर दिया है। जाने दो इसको। इसी बहाने शायद कुछ अक्ल आ जाए। "


पिता (भोंदू से)," कोई काम धंधा कर ले, रुपए पैसे की कीमत समझ जाएगा। "

मां," नहीं नहीं, मैं इसे कहीं नहीं जाने दूंगी। "

पिता," तो तुम भी इसके साथ हो लो। देखता हूं यह बबुआ तुमको पालता है या तुम इसे। "


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पिता (भोंदू से)," ओ बबुआ ! सुबह होते ही यहां से चले जाना तुम, बता रहे हैं। 

और सुनो... इस घर के आस-पास भी दिखाई मत देना। ससुरा बिल्कुल ही गैर जिम्मेदार हो गया है। "

पिता (मां से),"खबरदार जो तुमने कोई चालाकी दिखाई या इसकी कोई मदद की तो। "

सुबह पिता के जाने के बाद भोंदू घर से जाने लगा। 

मां," सुन... मैं पीछे वाली कोठी की खिड़की खोल दूंगी, तू रात को चुपके से अंदर आ जाना। समझ गया ना..? "

भोंदू," ठीक है। "

मां," जा और रात को छुपकर आ जाना। "

भोंदू घूमते घूमते एक वीरान जंगल से गुजर रहा था। 

भोंदू," अरे वाह ! अमरूद का पेड़। "

उसने पेड़ पर पत्थर फेंका। नीचे पत्थर गिरते ही जोर से आवाज आई... टन्न।

भोला," यह कैसी आवाज है भैया ? हटो... मैं तो अमरुद तोड़कर ही रहूंगा। "

उसने फिर से एक पत्थर उठाया और अमरूद की तरफ देख मारा। पत्थर के नीचे गिरते ही दोबारा से आवाज आई टन्न।

भोंदू," फिर आवाज...। "

उसने पेड़ के पीछे जाकर देखा। 


भोंदू," यह क्या..? इतना बड़ा पतीला..? इसमें तो पूरी बारात का खाना बन जाएगा। मगर यह है किसका ? कौन छोड़ गया है इसे ? "

भोंदू (आवाज लगाते हुए)," ऐ भैया ! इस पतीले का मालिक कौन है भैया ? किसका है यह पतीला ? "

कोई नहीं था।

भोंदू," क्या महाराज... अनाथ हो ? तुम्हारा मालिक कौन है ? तुम ही बता दो। चलो तुम मेरे साथ चलो। "

उसने पतीला उठाया तो उसके नीचे 10 रूपये का नोट था। 

भोंदू," यह क्या ₹10..? लगता है प्रभु आज मेहरबान है। लॉटरी लग गई लॉटरी। "

आवाज," यह रुपए तुम्हारी मदद के लिए है। इनसे इस पतीले में केवल बिरयानी बनाना, केवल बिरयानी। "

भोला," यह कौन बोला ? कोई आदमी तो यहां है ही नहीं। प्रभु ! रक्षा करना। "

वह पतीला और रुपए लेकर भाग गया।

घर आकर...
भोंदू," मां... ओ मां ! "

मां," अरे बबुआ ! तू अभी क्यों आ गया ? अगर तेरे बापू को पता चला ना, तो तेरे साथ मुझे भी इस घर से निकाल देंगे। 

मैं खिड़की खोल दूंगी। तू जा और रात में चुपके से आ जाना। अभी चला जा। "

भोंदू," ठीक है। पर यह पतीला तो रख लो। इसे कहां लेकर जाऊं। "

मां," इतना बड़ा पतीला कहां से उठा लाया ? "

भोला," जंगल से। और यह देखो ₹10 का नोट भी मिला। मां, बेचारा यह अनाथ है। अब से यह भी हमारे साथ ही रहेगा। "

मां," पतीला कोई अनाथ होता है क्या ? "

भोंदू," मां, मैं सच कह रहा हूं। जंगल में पता नहीं किसकी आवाज आ रही थी ? हम दोनों डर गए। "

मां," अरे ! कैसी बातें कर रहा है ? सच में तू भोंदू है। तभी तुझे सब पागल बनाते हैं। 

इसे नीचे रख और तू जा यहां से। सुन... ₹10 है ना तेरे पास, इनसे कुछ खा पी लेना। "

भोंदू," ना ना ना... मां, डरावनी आवाज बोली कि इनसे सामान लेकर पतीले में बिरयानी बनानी है। "


मां," मेरे बेटे, तू सच्ची में इतना भोंदू क्यों है ? "

भोंदू," मां, यह बिरयानी के रुपए हैं। "

मां," भोंदू, आज तो तूने समझदारी की बात कर दी। अरे ! इन रुपयों से तो इस पतीले में खूब सारी बिरयानी बन जाएगी। 

तू उसे बेच देना। कोई काम होगा तो तेरे बापू तुझे वापस घर बुला लेंगे। "

भोंदू," सच्ची..? "

 भोंदू बाजार से सामान लाता है। मां और भोंदू दोनों मिलकर बिरयानी बनाते हैं। 

मां," बहुत स्वादिष्ट बनी है। "

भोंदू," मां, इतनी सारी बिरयानी का क्या करें ? "

मां बिरयानी को दो बड़े डिब्बों में डालकर देती है।

मां," तू ऐसा कर... खेतों की तरफ चला जा। वहां बहुत सारे मजदूर काम करने के लिए आते हैं। वह ले लेंगे। और हां तेरे लिए बचाकर रख दी है, इसमें से मत खाना। 

सुन बेटा... किसी को भी मुफ्त में मत देना। सबसे एक ₹1 लेना। "

भोंदू," हां, ठीक है। "

भोंदू खेतों के पास बिरयानी के डिब्बे और बड़े बड़े पत्ते लेकर बैठ गया। 

भोंदू (आवाज लगाते हुए)," बिरयानी, बिरयानी... गरम-गरम बिरयानी। अरे कोई ले क्यों नहीं रहा भैया ? अरे भैया ! बिरयानी खा लो, बहुत गर्म है। "

मजदूर," नहीं भाई, रहने दो। मैंने खाना खा लिया है। वैसे भी बहुत थका हुआ हूं। ऐ भैया, आराम करने जा रहा हूं। "

भोंदू," अरे ! एक बार खाकर तो देखो, मजा आ जाएगा। तुम्हारी सबरी थकान गायब हो जाएगी हां भैया। "

मजदूर," अच्छा... तो आप इतना कह रहे हो तो लाओ खिला दो भैया। "


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मजदूर ने पहला निवाला आराम से खाया। उसके बाद सारी गपा गप खा गया। 

मजदूर (डकार मारते हुए)," वाह भैया ! सच्ची में मजा आ गया भैया। यह तो चमत्कारी बिरयानी है। मेरी सारी थकान गायब हो गई। "


मजदूर ने खेतों में आकर बाकी मजदूरों को यह बात बताई। सब ने आकर भोंदू की बिरयानी खायी। भोंदू सबसे रुपए लेकर वहां से चला गया। 

भोंदू," वाह ! इतनी सारे रुपए हो गए। मां खुश हो जाएगी। बापू को पता चलेगा तो मुझे घर में आने देंगे। "

बुढ़िया (कोने में सिमटी हुई)," बेटा, ओ बेटा ! थोड़ी मदद कर दो। "

भोंदू ने उसे एक सिक्का दे दिया। 

बुढ़िया," सुनो बेटा... तुम्हारे पास कुछ खाने को है तो दे दो। मैंने 2 दिन से कुछ नहीं खाया। मेरी जान निकल रही है। मैं अपनी जगह से हिल भी नहीं सकती। "

भोंदू ने डिब्बा खोलकर देखा। 

भोंदू," सारी बिरयानी खत्म हो गई है। यह लो थोड़ी सी बची है। "

बुढ़िया ने बिरयानी खाई। 

बुढ़िया," यह तो बहुत स्वादिष्ट है। ऐसा लग रहा है कि मुझमें जान आ गई। तुम बहुत खुश रहो बेटा। "

भोंदू (खुश होकर)," रुपया मिल गया, आशीष मिल गया... रुपया मिल गया आशीष मिल गया। 

मां," क्या बडबडा रहा है ? "

भोंदू," मां, बिरयानी सारी बेचकर आ गया और रास्ते में एक बूढ़ी माई मिली थी, उसने खूब आशीष दिया। " 

मां," अरे ! पकड़, कहीं गिर ना जाऊं ?"

भोंदू," मां... "

मां," मेरे बेटे ने एक दिन में इतने रुपए कमा लिए। भगवान ! यह कोई सपना तो नहीं ? "

भोंदू," मां, तुम भी बिरयानी खाओ। सब कह रहे थे कि यह बिरयानी चमत्कारी है। इसे खाते ही उनका जी (मन) अच्छा हो गया। "

पिता," अरे ! सुनती हो, कहां हो ? "

मां," अरे भोंदू ! तेरे बापू आ गए। तू अंदर वाले कमरे में जाकर छिप जा। "

भोंदू भागकर कमरे में छिप जाता है।

मां," यह लो पानी पी लो। "

पिता," भोंदू आया था क्या यहां..? "

मां," नहीं नहीं, वह नहीं आया। "


पिता," सच-सच बताओ, क्या खिचड़ी पकाई है ? "

मां," खिचड़ी..? खिचड़ी नहीं हमने तो बिरयानी पकाई थी। पर आपको यह बात कैसे पता चली ? "

पिता," आते समय खेतों वाले मजदूर मिले थे रास्ते में। बोल रहे थे - तुम्हारा बेटा आज बिरयानी लाया था, वह कमाल की थी। उसे बोलना कि कल भी ले आए। "

मां," अच्छा... उसने सच में क्या ऐसा ही बोला ? "

पिता," हां, यह क्या माजरा है भाई ? भोंदू ने कोई काम शुरू किया है तो बताओ। मैं उसकी पूरी पूरी मदद करूंगा। 

सौतेला हूं तो क्या हुआ ? हूं तो बाप ही। एक बरस का था जब तुमने उसे मेरी गोद में दे दिया था। 

मेरी कोई औलाद नहीं है। मुझे बाप होने का अहसास उसी ने करवाया है। 

तुम क्या सोचती हो, उसे घर से निकाल कर मैं खुश रहता हूं भला ? वह भोंदू नहीं, भोला है। 

सब उसे बुद्धू बना कर अपना मतलब साधते हैं। बस यही चाहता हूं, वह अपने पैरों पर खड़ा हो जाए। नहीं तो हमारे जाने के बाद ये गांव वाले उसे जीने नहीं देंगे। "

मां," ना ना आप ऐसा मत कहिए। मैं जानती हूं आप उसे बहुत प्यार करते हो। कुछ हो जाए, आज तक आपने उसे कभी नहीं छुआ। 

यह गांव वाले तो अपनी औलाद की गलती पर उसे मार मारकर अधमरा कर देते हैं। "

पिता," धत्त... एक ही तो बेटा है, पीटने के लिए थोड़े ही ना है। सुनो... कहां है वह ? बुला लो। "

मां," वह तो... "

पिता," मैं तुम्हें भी अच्छे से जानता हूं। जहां छुपाया है बुला लो। "

मां," भोंदू... अरे ओ भोंदू। "

पिता," भोंदू... आ जा बेटा, यह घर तेरा है। "

भोंदू चुपचाप गर्दन लटकाए सामने आ गया।

मां," सुनिए जी, मैंने आप लोगों के लिए बिरयानी बचाकर रखी है। अभी लेकर आती हूं। "


भोंदू," बापू... माफी। मैं आपसे बिना पूछे घर में आ गया। "

मां," लो आप लोग भी खाओ। " 


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पिता," रे ! यह तो वाकई में काफी स्वादिष्ट बिरयानी है भैया। अरे ! सुनो... भोंदू की कमाई का एक पैसा भी खर्च मत करना, संभाल कर रखना। बिरयानी बनाने के रुपए मैं तुम्हें दूंगा। "

भोंदू की बिरयानी खूब बिकने लगी। वह जितनी भी लाता, सब बिक जाती। सारे कासगंज मैं भोंदू की बिरयानी चर्चित हो गई।

एक दिन भोंदू बिरयानी बेचकर वापस आ रहा था। तभी कासगंज के एक बदमाश (राघव) ने भोंदू का रास्ता रोक लिया।

राघव," अरे भैया ! क्या बात है ? तुम्हारी कमाई तो रोज बढ़ती जा रही जा रही है। 

हां भैया... राज क्या है ? यह बिरयानी कैसे बना रहे हो ? मतलब कोई मसाला वसाला है तो बताओ भाई हमें भी। "

भोंदू," ना ना, मैं नहीं बताऊंगा। मां ने बताने से मना किया है। "

राघव," भगवान कसम भैया, मैं किसी को नहीं बताऊंगा। अब बताओ तो सही क्या राज है ? "

भोंदू," राज़ 2 पतीले में है। मुझे जंगल से एक बहुत ही बड़ा पतीला मिला है। उसमें लाजवाब बिरयानी बनती है। कोई झंझट नहीं। "

राघव," अच्छा तो यह बात है। इस पतीले का कमाल है सब। "

आधी रात को राघव खिड़की से भोंदू के घर की रसोई में घुस गया। 

राघव," अच्छा तो यह है चमत्कारी बिरयानी बनाने वाला पतीला। अरे बाबा ! यह तो बहुत बड़ा है भैया। इसे बेच भी दूं तो बहुत अच्छा माल मिलेगा। "

राघव एक हाथ से पतीला उठाने की कोशिश करता है फिर दोनों हाथों से कोशिश करता है पर दूर जाकर करता है। 

राघव," ये पतीला देखने में इतना भारी तो नहीं लगता। चलो दोबारा उठाता हूं। "

उठाने पर पतीले में से एक हाथ निकलकर राघव को दूर फेंक देता है।

राघव," अरे ! तेरी इतनी हिम्मत... रे बेटा रुक, तुझे अभी बताता हूं। "

दूसरी तरफ कमरे में...
पिता," सुनो... भोंदू की कमाई के रुपए लेकर आओ। देखूं तो कितने हो गए हैं ? "


मां रुपयों की गड्डी ले आती है।

पिता," एक हजार... दो हजार... तीन हजार..? "

मां," अरे ! इतनी रात को क्यों हिसाब करने में लगे हुए हो ? सुबह कर लेना। "

पिता," अरे ! यूं ही... देख रहा था कि कितने हो गए हैं ? साहूकार अपनी जमीन का टुकड़ा बेच रहा है। सोच रहा हूं भोंदू के लिए खरीद लूं। वो जमीन सोना है सोना।

तभी रसोई से बर्तन खड़खडाने की जोर से आवाज आई।

राघव," आह ! मर गया रे बाबा ! इतनी जोर से धक्का तो कोई पहलवान भी नहीं मारता। "

इतने में भोंदू, मां और पिता वहां आ जाते हैं।

पिता," ऐ ! तुम यहां क्या कर रहे हो रे..? "

मां," देखते नहीं, यह चोरी करने आया है यहां। मारो इसे। "

राघव," नहीं नहीं, मारना नहीं मुझे। पहले ही इस पतीले ने ऐसा धक्का मारा कि मेरी कमर ही टूट गई है। "

पिता," तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई ? पंचायत में तुम्हारी शिकायत करूंगा। "

राघव," मुझे माफ कर दो भैया। तुम जो सजा दोगे, मैं भुगतने के लिए तैयार हूं। इस बार माफ कर दो भैया। "

भोंदू," राघव, इसलिए तुम पूछ रहे थे कि तुम्हारी कमाई का राज क्या है ? ताकि चोरी कर सको। चोरी करना अच्छी बात नहीं है। "
राघव," चोरी तो क्या ? मैं किसी दूसरे की चीज की ओर आंख उठाकर देखूंगा भी नहीं। मुझे माफ कर दो। "

पिता," अरे ! चलो निकलो यहां से। पंचायत के लिए तैयार रहना भैया। "

मां और पिता भी रसोई से चले गए। तभी भोंदू रसोई से बोला।

भोंदू," मां, ओ मां - बापू... जल्दी आओ। "

पिता," अरे ! क्या हुआ ? क्यों चिल्ला रहा है ? "

भोंदू," मां, पतीली में से आवाज आ रही है। "

मां," अरे तू फिर से शुरू हो गया। कल से कह रहा है पतीला बोल रहा है। "

पिता," अरे बेटा ! तेरा यह भ्रम है। पतीला नहीं बोलता। "

तभी पतीले से आवाज आई। 

आवाज," तुम इंसान भी ना, किसी पर भी इतना जल्दी विश्वास नहीं करते। "

मां," अरे भगवान ! यह तो सच्ची में बोल रहा है।
 
आवाज," हा हा हा... अब तुम लोग मेरी बात ध्यान से सुनो। इसमें चमत्कारी बिरयानी बनती है। जो भी खाता है उसका कल्याण होता है। 


और ये पतीला निस्वार्थ आदमी को ही मिलता है। भोंदू ने कभी किसी का बुरा नहीं किया इसीलिए उसे यह पतीला मिला। 

बिरयानी ने अपना काम कर दिया है। अब तुम किसी भी पतीले में बिरयानी सारी बिक जाएगी। "

पिता," क्या सच में..? "

आवाज," पर एक शर्त है... तुम लोग यह बात किसी को मत बताना। किसी का बुरा मत करना और लालच नहीं करना, दिन में केवल एक बार बनाना और बेचना। 

गरीबों को मुफ्त में खिलाना। यदि लालच किया तो मेरा आशीर्वाद समाप्त हो जाएगा। "

मां," नहीं नहीं, हमें तो केवल भोंदू के भविष्य की चिंता है, वह आपने दूर कर दी। "


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आवाज," अच्छा चलो मैं अब चलता हूं। अब किसी और अच्छे इंसान की सहायता करनी है। "

पतीला जोर से घूमा और धुएं में परिवर्तित होकर अदृश्य हो गया। उसकी जगह चावल के कुछ दाने थे। 

पिता ने चावल के दाने उठाकर कुछ भोंदू को दिए और कुछ मां को दिए। 

भोंदू," मां इन्हें घर के रखे चावलों में मिला दो। "

पिता," चल बेटा, इन्हें पूजा घर में रख दे। "

भोंदू ने चावल के दाने पूजा घर में रखे। तीनों ने हाथ जोड़कर भगवान को प्रणाम किया।


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