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रहस्यमय मूर्ति | Rahasyamay Murti | Hindi Kahaniya | Moral Story In Hindi | Hindi Kahani | Bed Time Story | Hindi Stories

आज की इस कहानी का नाम है - " रहस्यमय मूर्ति " यह एक Rahasyamay Kahani है। अगर आपको Hindi Kahaniya, Moral Story in Hindi या Achhi Achhi Kahaniya पढ़ें।
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हेलो दोस्तो ! कहानी की इस नई Series में आप सभी का स्वागत है। आज की इस कहानी का नाम है - " रहस्यमय मूर्ति " यह एक Rahasyamay Kahani है। अगर आपको Hindi Kahaniya, Moral Story in Hindi या Achhi Achhi Kahaniya पढ़ने का शौक है तो इस कहानी को पूरा जरूर पढ़ें।

रहस्यमय मूर्ति | Rahasyamay Murti | Hindi Kahaniya | Moral Story In Hindi | Hindi Kahani | Bed Time Story | Hindi Stories

Rahasyamay Murti | Hindi Kahaniya | Moral Story In Hindi | Hindi Kahani | Bed Time Story | Hindi Stories


 रहस्यमय मूर्ति 

गुड्डू जयपुर के पास के गांव में अपनी बूढ़ी माँ के साथ रहता था। वो छोटी छोटी मूर्तियां और खिलौने बेचकर अपना घर चलाता था। 

गुड्डू," अरे माँ ! क्या हुआ... तुम रो क्यों रही हो ? "

मां," बेटा, वो ज़मींदार आया था। तुम्हारे बाबा ने उससे कुछ 50 हजार रुपए का कर्जा लिया था। 

वो अब सूट समेत मिलाकर डेढ़ लाख हो गया है। हम इतने पैसे कहाँ से लाएंगे बेटा ? 

उसने बस दो हफ्ते का वक्त दिया है वरना... वरना ये घर खाली करना होगा। "

गुड्डू," माँ तुम रोना बंद करो, मैं कुछ करता हूँ। तुम... तुम फिक्र मत करो। "

गुड्डू परेशान सा पैसे जुगाड़ करने का रास्ता सोचते हुए बाहर निकल आता है। तभी घूमते हुए उसकी नजर एक बड़े से पोस्टर पर पड़ती है। 

10 दिन बाद जयपुर शहर में मूर्तियों का एक एग्ज़िबिशन होने वाला था। उसे एक उम्मीद की किरण नजर आई। 


उसने तुरंत वापस लौटकर मूर्ति बनाना शुरू किया और 9 दिन की मेहनत के बाद दसवें दिन मूर्ति लेकर एग्ज़िबिशन में पहुँच गया। 

गुड्डू," देखिए सर, ये मेरी सबसे कीमती मूर्ति है। "

करन शिंदे (एग्ज़िबिशन का होस्ट)," और तुम्हें लगता है ये मूर्ति एग्ज़िबिशन में रखने के लायक है ? "

गुड्डू," पर क्यूँ सर..? क्या हुआ, कोई कमी रह गई है क्या ? "

करन शिंदे," कमी... गुड्डू, तुम इसे मूर्ति कह रहे हो। ये मूर्ति कहने लायक ही नहीं है। मिट्टी का कबाड़ है कबाड़। "

गुड्डू," सर, ऐसा मत कहिए। इस मूर्ति को बनाने के लिए मैंने बहुत मेहनत की है। "

करन शिंदे," इसे मेहनत नहीं कहते गुड्डू। ये मूर्ति एग्ज़िबिशन में तो क्या कहीं पर भी रखने के लायक नहीं है। 

ले जाओ इसे वापस। ये मूर्ति सिर्फ कचरे के डिब्बे में फेंकने लायक है। ले जाओ इसे यहाँ से। "

गुड्डू की आँखे भर आईं। अपनी मेहनत को इस कदर अपने सामने बिखरते देख वो बहुत दुखी हो गया। 

गुड्डू ने आँखों में आंसू लिए उसे देखा और अपनी मूर्ति के टुकड़ों को समेटकर वहाँ से निकल गया। उसके जाने के बाद करन शिंदे खुद से ही बात करने लगता है। 

करन शिंदे," सपने हैसियत देखकर पूरे किए जाते हैं और तुम्हारी इतनी हैसियत नहीं कि तुम इस एग्ज़िबिशन में अपनी मूर्ति रखो, समझे ? 

चाहे कितनी ही खूबसूरत मूर्ति बना लो, गरीबी तुम्हे कभी ऊंचा उठने ही नहीं देगी और मुझसे आगे तो तुम कभी नहीं निकल सकते। "

गुड्डू रोता हुआ बाहर चला जाता है और सोचने लगता है कि अब वो क्या करे ? वो माँ से वादा करके आया था वो पूरे पैसे लेकर आएगा। अब वो माँ को क्या जवाब देगा ? 

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गुड्डू," कोई फायदा नहीं हुआ इतनी मेहनत करने का। सब बर्बाद हो गया। मेरी महीनों की मेहनत बिखर गई। "

वो उस टूटी हुई मूर्ति को गुस्से से वहीं पर फेंक देता है और वहाँ से आगे बढ़ जाता है। बस कुछ दूर जाने के बाद ही वो वापस पलटकर देखता है। 


उसे अपनी मूर्ति से बहुत प्यार है, जैसे उसका ही हिस्सा हो। वो ऐसे कैसे उसे फेक सकता है ? 

गुड्डू," चाहे जो भी हो, चाहे मैं कितनी ही बार असफल रहू पर मेरी मूर्तियां मैं नहीं फेंक सकता। एक दिन यही मुझे कामयाब बनाएंगी, हाँ। "

गुड्डू ऐसे ही इस मूर्ति को लेकर वहाँ से निकल जाता है। शाम हो चुकी थी। वो दूसरे शहर से यहाँ आया होता है इसलिए फिलहाल उसके पास रहने का कोई ठिकाना नहीं होता। 

गुड्डू बहुत थक गया होता है, इसलिए वही बेंच पर पीठ लगाकर एक झपकी लेने लगता है। गुड्डू काफी देर तक सोता रहता है और फिर अचानक एक आवाज के साथ उठता है। 

गुड्डू," कौन...? कौन है ? "

पर वहाँ कोई होता ही नहीं। अचानक गुड्डू की आँखे हैरानी से बड़ी हो जाती है, जब वह अपने सामने अपनी मूर्ति को देखता है। 

गुड्डू," ये मूर्ति तो टूट गई थी। ये वापस ठीक कैसे हो गई ? "

वो मूर्ति के पास जाता है और उसे छूकर देखने लगता है। 

गुड्डू," ये तो सच में पूरी हो गयी, पर ये हुआ कैसे ? ये तो पूरी टूट गयी थी। "

गुड्डू अच्छे से ऊपर से नीचे तक, आगे से पीछे घूमकर उस मूर्ति को देखता है और फिर अचानक खुशी से उसकी आँखें चमक जाती हैं। 

गुड्डू," ये तो चमत्कार हो गया। मेरी मूर्ति ठीक हो गयी...मेरी मूर्ति। "

गुड्डू खुश होते हुए उस मूर्ति को गले से लगा लेता है। 

गुड्डू," कोई बात नहीं, अगर इस बार मैं सफल नहीं हुआ पर तुम ठीक हो, ये मेरे लिए बहुत बड़ी बात है। 

वैसे भी शहर में मैं किसी को नहीं जानता तो आज यहाँ रुक जाता हूँ। सुबह होते ही चला जाऊंगा। "

गुड्डू उस मूर्ति को एक पेड़ के नीचे खड़ा करके एक दुकान पर कुछ खाने के लिए लेने चला जाता है। थोड़ी देर बाद जब वो वापस आता है तो हैरान रह जाता है। 

गुड्डू," मेरी मूर्ति, मेरी मूर्ति कहाँ गई ? यहीं तो थी मेरी मूर्ति... मेरी मूर्ति। "

गुड्डू वहीं खाने का सामान रख आसपास मूर्ति को ढूंढने लगता है और आसपास देखते हुए उसकी नजर पार्क के गेट पर चली जाती है जहाँ मूर्ति के पास एक औरत खड़ी होती है जो ध्यान से मूर्ति को देख रही होती है। 


गुड्डू," कौन हो तुम और मेरी मूर्ति को कहाँ लेकर जा रही हो ? "

औरत," ये आपकी मूर्ति है ? "

गुड्डू," हाँ, ये मेरी मूर्ति है और तुम इसे चुराकर ले जा रही थी। "


औरत," नहीं नहीं, मैं तो यहाँ से गुजर रही थी और इस मूर्ति को यहाँ देखा तो बस रुक गई। मेरा नाम मधु है। "

गुड्डू," झूठ ऐसा बोलो जो पकड़ा ना जाए। ये मूर्ति मैंने पेड़ के नीचे रखी थी। "

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औरत," पर मैंने तो इसे यहीं देखा। "

गुड्डू उसे घूरने लगता है। 

गुड्डू," भला मूर्ति खुद तो चल कर आई नहीं है। कोई इसे यहाँ लाया ही होगा ना ? "

मधु," मुझे नहीं पता, पर आपकी ये मूर्ति बेहद खूबसूरत है। आपने खुद बनाई है ? "

गुड्डू," हाँ, मैंने बनाई है पर कोई मतलब नहीं है। "

मधु," मतलब क्यों नहीं..? कितनी खूबसूरत मूर्ति है ये ? ऐसी और भी होंगी ? आप इन्हें एग्ज़िबिशन में क्यों नहीं रखते ? "

गुड्डू," कौन रखेगा मेरी मूर्ति को एग्ज़िबिशन में ? वहाँ तो बड़े बड़े लोगों के राज़ है और मैं ठहरा छोटा सा मूर्तिकार। "

मधु," अरे ! इसमें छोटे बड़े की बात कहाँ से आई ? बात तो तुम्हारे जादू की है। कितनी खूबसूरत मूर्ति है ? 

तुम बहुत हुनरमंद हो। तुम्हारे हुनर में ऐसा जादू है कि मूर्ति बिल्कुल जीवित नजर आती है। "

गुड्डू," हुनरमंद होने का क्या फायदा, जब मैं कुछ कर ही नहीं सकता ? हम गरीबों की मदद कौन करेगा ? "

मधु," ऐसा क्यों बोल रहे हो ? अगर तुम बुरा ना मानो तो मैं कल होने वाले एग्ज़िबिशन में तुम्हारी मूर्ति को रखवाना चाहती हूँ। "

गुड्डू," कल वाले एग्ज़िबिशन में... पर कैसे ? कौन हैं आप। "

मधु ने उस मूर्ति को देखा और कुछ सोचने लगी। 

मधु," मैं एक मूर्तिकार हूँ। सिर्फ मूर्ति ही नहीं बनाती बल्कि उनकी भावनाओं को भी समझती हूँ और कल ये मूर्ति एग्ज़िबिशन में जरूर रखी जाएगी। "

अगले दिन एग्ज़िबिशन में गुड्डू की मूर्ति भी रखवाई जाती है पर किसी को गुड्डू का नाम नहीं पता होता। 

क्योंकि यह पहली बार हुआ था जब गुड्डू की कोई मूर्ति एग्ज़िबिशन में रखी गई है। गुड्डू खुश होकर देख रहा था। 


सबसे ज्यादा भीड़ उसकी मूर्ति के सामने होती है और ये सब देखकर उसे बेहद खुशी होती है। करन शिंदे ये सब देखकर उसके पास आता है। 

करन शिंदे," तुमसे कहा था ना तुम एग्ज़िबिशन में मूर्ति नहीं रख सकते, फिर किसने रखवाई ये मूर्ति ? "

गुड्डू," आपने तो मेरी मूर्ति तोड़ ही दी थी। और शायद आज मेरा यहाँ आना लिखा था। मेरी मूर्ति ठीक भी हो गई और मधु जी ने मेरी मूर्ति एग्ज़िबिशन में रखवा भी थी। "

करन शिंदे," मधु... ये कौन है ? "

गुड्डू," एक मूर्तिकार है। यहाँ एग्ज़िबिशन में हैं वो। शायद उनकी मूर्तियां भी हैं। "

करन शिंदे," यहां मधु नाम की कोई मूर्तिकार नहीं है और ना ही उसकी कोई मूर्ति है। "

गुड्डू उसकी बात सुन हैरान रह जाता है। वो इधर उधर देखता है पर मधु उसे कहीं नहीं दिखती। 

वो सारी मूर्तियों को भी देखता है पर उसे कहीं पर भी मधु की मूर्ति नहीं मिलती। 

गुड्डू," ये सब क्या हो रहा है ? मधु नाम की कोई इंसान नहीं। फिर वो कौन थी जो कल मुझे मिली थी, जिसने मेरी मूर्ति यहाँ प्रदर्शनी में रखवाई ? "

गुड्डू परेशान सा यहाँ वहाँ देख रहा था। तभी अचानक उसकी नजर अपनी मूर्ति पर चली गई। मूर्ति का मुस्कुराता हुआ चेहरा देख गुड्डू को याद आने लगा। 

अचानक उसकी टूटी हुई मूर्ति का जादुई तरीके से ठीक हो जाना, फिर मधु का उससे मिलना, मूर्ति का प्रदर्शनी में आना और अब मधु का गायब हो जाना उसे याद आता है कि मूर्ति कल अपने आप पार्क के गेट के पास पहुँच गई थी। 

गुड्डू सारी कड़ियां जोड़ता है और उसे अहसास होता है कि उसकी मूर्ति जादुई थी। 

शायद ये उसकी मेहनत और लगन का नतीजा था। 

गुड्डू," इसका मतलब ये सब मेरी मूर्ति ने किया है। ये तो चमत्कार है। "

गुड्डू खुश हो जाता है। इतने में एक आदमी उसके पास आता है। 

आदमी," सुनिए, मेरा नाम यश पाटिल है। मुझे आपकी मूर्ति बेहद पसंद आई है। "

गुड्डू ," माफ़ कीजिएगा, ये मूर्ति बेचने के लिए नहीं है। "

आदमी," तो..? क्या आप मेरे लिए ऐसी ही कोई खूबसूरत मूर्ति बना देंगे ? मेरी पत्नी को मूर्तियों का बहुत शौक है। "

गुड्डू," जी। "

आदमी," मैं आपको मुँह मांगे कीमत देने को तैयार हूँ। प्लीज़ मना मत कीजिएगा। "


गुड्डू ," हाँ, जरूर मैं आपके लिए मूर्ति बना दूंगा। "

गुड्डू को वहाँ कई लोग उस मूर्ति की कीमत लगाने को बोलते हैं पर गुड्डू नहीं बताता। तो वहाँ खड़े कई लोगों ने खुद उसे मूर्ति बनाने को कहा था और मुँह मांगी कीमत में खरीदने को भी।

गुड्डू ने खुश होकर सबको हाँ बोल दिया। जब वह प्रदर्शनी खत्म करके बाहर आता है तो वहाँ दो आदमी पहले से ही उसका इंतजार कर रहे थे। 

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आदमी," सर, हमने आज प्रदर्शनी में आपकी मूर्ति देखी। पर आपने कहा, वो बेचने के लिए नहीं है। 

अगले महीने एक स्कल्चर एग्ज़िबिशन होने वाला है। क्या आप उसके लिए मूर्ति बना सकते है ? सर, प्लीज़ मना मत कीजिएगा। "

गुड्डू," जी जरूर, मैं ये काम जरूर करूँगा। "

उसे यकीन हो गया था कि ये सब उसकी मूर्ति ने किया है। वो लोग 2 लाख रुपए अडवांस भी देते हैं, जिससे गुड्डू ज़मीदार के पैसे चुका देता है। 

गुड्डू की बनाई मूर्ति इस एग्ज़िबिशन में सबसे महंगी बिकी और गुड्डू जानता था इस कामयाबी में उसकी जादुई तिलस्मी मूर्ति का हाथ है, जिसकी वजह से वह इतना आगे बढ़ पाया है। 

उसने आज तक उस मूर्ति को कभी किसी को नहीं बेचा। चाहे किसी ने उसे करोड़ रूपये ही ऑफर क्यों ना किये हों।

इस कहानी से आपने क्या सीखा ? नीचे Comment में हमें जरूर बताएं।
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