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मेहनती किसान | Mehnati Kisaan | Hindi Kahaniya | Moral Stories | Bed Time Story | Hindi Stories | Hindi Fairy Tales

आज की इस कहानी का नाम है - " मेहनती किसान " यह एक Moral Story है। अगर आपको Hindi Stories, Bedtime Story या Hindi Kahaniya पढ़ें।
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हेलो दोस्तो ! कहानी की इस नई Series में आप सभी का स्वागत है। आज की इस कहानी का नाम है - " मेहनती किसान " यह एक Moral Story  है। अगर आपको Hindi Stories, Bedtime Story या Hindi Kahaniya पढ़ने का शौक है तो इस कहानी को पूरा जरूर पढ़ें।

मेहनती किसान | Mehnati Kisaan | Hindi Kahaniya | Moral Stories | Bed Time Story | Hindi Stories | Hindi Fairy Tales

Mehnati Kisaan| Hindi Kahaniya| Moral Stories | Bed Time Story | Hindi Stories | Hindi Fairy Tales



 मेहनती किसान 

मोतीपुर गांव में चंदू नाम का आदमी रहा करता था। वो अपनी पत्नी मीना के साथ खुशी से जीवन बिताया करता था। 

एक बार जब धान की रोपाई चल रही थी, सभी तैयार होकर खेतों की तरफ जाने लगे।

चंदू," मैं जा रहा हूँ खेत पर, तुम बाद में आ जाना खाना लेके और भाग्यवान ज़रा लस्सी भी लेते आना थोड़ा सा। "

मीना," ठीक है, मैं ले आउंगी। "

चंदू खेत में पहुंचता है। थोड़ी देर काम करता है। तभी खेतों की मेड़ों पर दो आदमी चल रहे होते हैं, उनमें से एक आदमी छाता लेकर चल रहा होता है जो कि ज़मींदार करोड़ीमल और उनका मुंशी बाबूलाल होते हैं।

बाबूलाल," साहब, ये है चंदू। सुना है... इसकी फसल बहुत अच्छी निकलती है। इस बार आठ बोरी चावल के लिए इसे बोल देते हैं। गरीब है दो पैसा कमा लेगा तो दुआ ही देगा। "

करोड़ीमल," ठीक है बाबूलाल, जाकर इसे बता दो। "

बाबूलाल," जी मालिक। "


बाबूलाल," अरे ओ चंदू ! सुन तो। "

चंदू," क्या बात है, बाबूलाल भाई ? "

बाबूलाल," जमींदार साहब तुझसे मिलना चाहते हैं। "

चंदू," मुझसे मिलना चाहते हैं... क्यों ? "

बाबूलाल," अरे ! वो तेरी फसल खरीदना चाहते हैं, जल्दी जा। "

चंदू," जी जमींदार साहब। "

करोड़ीमल," आओ चंदू, आओ। सुना है... तुम्हारी फसल बहुत अच्छी होती है। क्या इस बार की फसल तुम हमें बेचना चाहोगे ? बाजार के दाम से अच्छा दाम दे दूंगा। "

चंदू," ये तो हमारे लिए खुशी की बात है,साहब। "

करोड़ीमल," तो फिर ठीक है। जिसदिन फसल ठीक से तैयार हो जाएगी, हमें बता देना। हम आदमियों को भिजवा देंगे। 

तुम्हारी फसल काटने में वो सब तुम्हारी मदद करेंगे और तुम्हारे घर पर पैसे भिजवा देंगे। "

उसके बाद जमींदार चला जाता है। चंदू फिर से खेत में वापस आकर काम करने लगता है। थोड़ी देर बाद मीना वहाँ आ जाती है। 

मीना," सुनिए जी आ जाईये, आपके लिए खाना लेकर आई हूँ और हाँ साथ में लस्सी भी लाई हूँ। "

चंदू," आता हूँ। "

इसके बाद चंदू मीना के पास पहुँच जाता है।

चंदू," लाओ, लाओ बड़ी भूख लगी। "

मीना," हां, लीजिये। "

चंदू," मीना जमींदार जी आये थे। जानती हो उन्होंने क्या ? "

मीना," क्या कहा उन्होंने ? "

चंदू," उन्होंने कहा कि वो हमारी इस बार की फसल खरीदना चाहते हैं और बाजार से अच्छे दाम भी देंगे। "

मीना," ये तो बड़ी खुशी की बात है। ये सब माता रानी की कृपा से हुआ है। मैं कहती थी ना...एक दिन सब ठीक हो जाएगा ? "

चंदू," माता रानी करें, ऐसा ही हो। "

इसके बाद दोनों घर चले जाते हैं। घर जाकर चंदू सो जाता है। चंदू शाम को उठा और घर के आंगन में लगी क्यारी से सब्जियां निकाली।


चंदू," मैं ये सब्जी बेच कर आता हूँ, ठीक है। "

मीना," सुनिए... आप समय से आ जाइएगा, रात होने से पहले। "

चंदू," ठीक है। "


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उसके बाद मंडी में सब्जियां बेचकर वापस आते वक्त एक मछली के ठेले के पास...
चंदू," मछली कैसे दे रहे हो, भाई ? "

मछलीवाला," भाई चंदू सुनो, तुम ये दोनों ले जाओ ₹100 में, मुझे ज़रा जल्दी घर जाना है। "

चंदू," ये लो भाई ₹100। आज मीना को कहूंगा, मछली के गर्मागर्म पकौड़े खिला दे। "

चंदू घर पहुंचा।

चंदू," अरे ओ मीना ! कहा हो ? ये लो मछली। आज पकौड़े खाने का दिल कर रहा है, ज़रा बना दो। "

मीना," जी हाँ ठीक है, लेकिन पहले आप हाथ मुँह धो लीजिये। "

इसके बाद मीना मछली पकाने लग गयी।

चंदू," अरे वाह ! तुम्हारा कोई जवाब नहीं, क्या पकौड़े बनाये है ? "

इसी तरह कई महीने बीत गए। चंदू के खेतों में सोने की तरह चमकने वाली फसल तैयार हो गयी।

चंदू," मीना में खेत में जा रहा हूँ, जमींदार के आदमी पहुंचते ही होंगे। "

मीना," ठीक है। "

चंदू खेत में गया।

चंदू," चल चंदू तैयार हो जा, बहुत काम करना बाकी है आज। "

ज़मींदार के आदमी वहाँ पहुँच गए। 

आदमी," चलिए सब काम पर लग जाते हैं। सेठ ने कहा है जल्दी से सारा काम निपटाकर फसल चंदू के घर पहुंचा देना।

सबने मिलकर फसल काटी और आठ बोरियां तैयार कर दी। तभी वहाँ मीना आई।

मीना," अरे ! ये क्या, इतनी जल्दी काम भी हो गया ? "

चंदू," मीना इसीलिए तो कहते हैं कि एकता में बल है। जो काम मैं अकेला 2 दिन में करता है, वो हम चार लोगों ने मिलकर कुछ ही टाइम में कर दिया। "

इसके बाद सबने मिलकर बोरियां चंदू के घर तक पहुंचा दीं।

आदमी," हम सब कल आके ये बोरियां सेठ के घर ले जाएंगे। चलिए, हम चलते है। "

चंदू," चलो आज का काम भी खत्म हुआ। बस अब कल का इंतजार है। "

उसने सारी बोरियां घर में रख दी। तभी आधीरात को चंदू के घर के बाहर कुछ चोर बात करते हुए।

पहला चोर," सुनो सब के सब, ध्यान से घुसना। अगर हम खाली हाथ लौटे तो सरदार हमें छोड़ेंगे नहीं। "

सब धीरे धीरे चंदू के घर से सारी बोरियां चुराकर ले गये। 


अगली सुबह...
मीना," सुनिए जी, उठिए ना आप। देखिये... क्या हो गया ? "

चंदू," क्या हो गया ? "

मीना," उठिये, उठिये ना। "

चंदू," क्या बात है भाग्यवान ? ऐसा क्या हो गया जो तुमने सारा घर सिर पर उठा लिया है ? "

मीना," गोदाम से सारी बोरियां चोरी हो गयी है। "

चंदू," क्या चोरी..? कहाँ पर ? "

मीना," गोदाम में आइए और खुद ही देख लीजिये। "

चंदू," हे भगवान ! ये क्या हो गया ? जमींदार जी के आदमी कभी भी आ सकते हैं। माता रानी ! मैंने किसी के साथ कुछ बुरा नहीं किया, फिर भी मेरे साथ ही क्यों ? "

चंदू घर की सीढ़ियों पर बैठ जाता है। चंदू की आँखों से आंसू आ रहे थे। तभी वहाँ जमींदार के आदमी आ गए।

आदमी," अरे भाई चंदू ! बोरियां तैयार है ना ? "

चंदू," नहीं भाई, कल रात को ही किसी ने अनाज की बोरियां चोरी कर ली है। "

आदमी," ये क्या कह रहे हो, भाई ? जमींदार जी कहीं गुस्सा ना हो जाए ? तुम तो उनका गुस्सा जानते हो ना ? "

चंदू," चलो उनसे बात तो करनी ही पड़ेगी, चलो अब। "

चंदू बाबूलाल के साथ जमींदार के घर गया।

करोड़ीमल," क्या चंदू, तुम सब खाली हाथ क्यों आ रहे हो ? "

चंदू," ज़मींदार जी, कल रात को हमारे घर में चोरी हो गयी। सुबह देखा तो गोदाम से सारी बोरियां गायब हो चुकी थी। "

करोड़ीमल," कही तुमने किसी और को तो बेहतर दाम के चक्कर में नहीं बेच दी ? "

चंदू," नहीं जमींदार जी, मैं सच कह रहा हूँ। "

चंदू," सेठ जी, एक ही गांव में रहना है हम सबको। भला झूठ बोल के कितने दिन बच पाऊंगा ? "

करोड़ीमल," ठीक है, लेकिन अगर मुझे पता चला कि तुमने किसी और को दिया है तब देखना कि मैं क्या करता हूँ ? "


कुछ दिन तक चंदू और मीना दोनों उदास थे। चंदू सब्जियों को बाजार में बेचता और जो भी कमाता, उसे बहुत ध्यान से खर्च करता।

चंदू खाना खाने बैठा।


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मीना," सुनिए ना... कितने दिन हो गए हमें इस तरह सब्जियां बेचते हुए लेकिन हमारा घर मुश्किल से चल पा रहा है। घर के भी हालात ठीक नहीं है। हमारा गुज़ारा सिर्फ सब्जियां बेचकर नहीं हो सकता। 

पहले तो अनाज बेचकर हम अच्छे खासे पैसे कमा लेते थे जिसमें सालभर थोड़ा थोड़ा घर का खर्च चल जाता था, लेकिन अब तो हमें अगली फसल के पक जाने तक इंतजार करना होगा। आप बताइए ना, ऐसे कैसे घर चलेगा ? "

चंदू," मैं जानता हूँ लेकिन मैं क्या करूँ, समझ नहीं आ रहा ? "

अचानक चंदू थाली में रखा अचार रोटी के साथ खाने लगता है।

चंदू," अरे भाग्यवान ! अचार...। "

मीना," क्या आचार..? क्या मतलब है, मैं आपको आचार की तरह देखती हूँ ? आप मेरे बारे में ये सब सोचते हैं ? "

चंदू," नहीं भाग्यवान, मैं तो कह रहा था कि हमारी समस्या का समाधान है ये अचार। मेरी बात सुनो ध्यान से, तुम अचार बनाना और मैं अचार लोगों के घर जाकर बेचूंगा। 

पहले हम लोगो का अचार का स्वाद चखाएंगे, उन्हें पसंद आया तो वो खरीद लेंगे। "

मीना," अगर पसंद नहीं आया तो ? "

चंदू," अरे कैसे नहीं आएगा, मेरी मीना ने जो बनाया है ? अंग्रेजी में क्या कहते हैं, फंटा टेस्टिंक अचार बनाती हो तुम, हां। "

मीना," आपने अंग्रेजी कब सीखी ? "

चंदू," तुम मुझे कम मत समझो। बट आर यू डूइंग, आई ऐम वेरी वेल... देखा। "

मीना," आप तो बड़ी अच्छी अंग्रेजी बोल लेते है। "

दोनों हंसने लगते हैं। इसके बाद मीना अचार बनाने लगी।
और मीना ने अचार डिब्बों में पैक कर दिया और चंदू चल पड़ा साइकिल लेकर। चंदू एक घर पर जाकर रुका।

चंदू (आवाज लगाते हुए)," घर पे कोई है, भाई ? "

औरत," अरे चंदू भैया ! आप यहाँ कैसे ? ये क्या ले आये ? "

चंदू," अचार बेचने का काम शुरू किया है इसीलिए घर घर जाकर बेच रहा हूँ। अचार खरीदना चाहेंगी ? "

औरत," जरूर... ज़रा चखाना तो, भैया। "

औरत ने अचार चखा तो उसे बड़ा पसंद आया। 

औरत," भैया ऐसा करो, एक किलो दे दो। कितना हुआ ? "


चंदू," ₹150 में ? "

औरत," ठीक है भैया, अभी पैसे लेकर आती हूँ। "

चंदू," अच्छा चलता हूँ, बहन। "

ऐसे करते करते चंदू दूसरे घर गया।

चंदू," रमेश भैया, घर पे हो ? "

रमेश," अरे चंदू ! कैसा है भाई और कैसा चल रहा है सब ?
उस चोरी के बारे में सुनकर बहुत बुरा लगा यार जानकर। "

चंदू," जाने दो भाई, क्या कर सकते हैं ? अच्छा ये बताओ, अचार खरीदते हो बहार से। "

रमेश," हाँ, क्यों..? "

चंदू," मैंने अचार बनाना शुरू किया। "

रमेश," क्या बात है, ज़रा चखा तो ? "

चंदू ने उसे थोड़ा सा चखने को दिया।

रमेश," अरे वाह ! किसने बनाया ? "

चंदू," मीना ने। "

रमेश," भाभी को कहना... बहुत अच्छा अचार बनाती है, बड़ा ही कमाल का। "

चंदू," बताओ भाई, खरीदोगे ? "

रमेश," हाँ भाई, क्यों नहीं..? दूसरो से भी तो खरीदता ही हूँ। इससे अच्छा तुमसे ना खरीद लूं ? ये बताओ कितने में बेच रहे हो ? "

चंदू," ₹150 किलो। "

रमेश," ठीक है भाई, दो किलो दे दो। "

चंदू ने अचार पैक करके दे दिया। धीरे धीरे उसका सारा अचार बिक गया। चंदू घर पहुंचा।

चंदू," मीना...। "

मीना," आप आ गए ? कैसा गया आज का दिन ? किसी ने खरीदा कुछ अचल ? "

चंदू," कुछ तो नहीं खरीदा किसी ने।"

मीना," मैंने कहा था ना... मेरा आचार इतना भी खास नहीं है। आपका विचार ही गलत था, इसे बेचने का। "

चंदू," पूरी बात तो सुन लो। लोगो ने कुछ नहीं सब कुछ खरीद लिया, देखो जाकर टोकरी में। "


मीना टोकरी के पास गई। उसने देखा की टोकरी तो खाली है यानी कि सारा का सारा अचार बिक गया। मीना बहुत खुश हुई।

चंदू," अब बस तुम ऐसे ही बनाती रहो और मैं घर घर जाकर बेचता रहूंगा। "

मीना," मैं कहती हूँ ना... आप ऐसा करिए, पास के गांव में भी बेचना शुरू करिए। क्या पता, वहाँ के लोगों को थोड़ा बहुत पसंद आ जाये ? 

अब हम जितनी जगह जाकर बेचेंगे उतना ही तो हमारा फायदा होगा ना ? कल से आप थोड़ा और अधिक अचार लेकर जाना और दूर दूर के गांव तक भी जाना। "

चंदू," ठीक कहा तुमने, मैं ऐसा ही करूँगा। कल से तुम ज्यादा से ज्यादा अचार बनाना शुरू करना। "

मीना," आप एक हफ्ते रुक जाईये। एक हफ्ते में बहुत सारा अचार बनाकर तैयार कर दूंगी, उसके बाद आप बेचना शुरू कर देना; क्योंकि आचार पकने में भी तो समय लगता है ना ? "

चंदू," ठीक है तब तक मैं सब्जियां बेच दिया करूँगा। इससे हमारा घर भी चलेगा और हमें नुकसान भी नहीं होगा। "

इसके बाद मीना अचार बनाना शुरू कर देती है और कुछ दिनों तक चंदू बाजार में सब्जियां बेचता है। कुछ दिनों में अचार तैयार हो जाता है और चंदू भी बेचना शुरू कर देता है। 

इस बार चंदू दूर के गांव में जाता है और आचार बेचना शुरू कर देता है।

अब धीरे धीरे करके मीना का बनाया हुआ अचार सभी जगह लोकप्रिय हो जाता है। इसके बाद चंदू एक दुकान भी खोल लेता है। 

अब जो भी ग्राहक आता, उसकी दुकान पर ही जाता। एक दिन वहाँ से गुजरते हुए ज़मींदार जी की नजर चंदू की दुकान पर पड़ी।

करोड़ीमल," क्या बात है चंदू..? तुम्हारी तो दुकान चल पड़ी। ज़रा अचार तो चखाना। सुना है तुम्हारी दुकान का अचार सभी को बहुत पसंद आ रहा है। "


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चंदू," ये तो सबका प्यार है, जमींदार साहब। ये लीजिये, आप इसे चख लीजिए। "

करोड़ीमल," ये तो बड़ा स्वादिष्ट है। ऐसा करो, हमारे घर पर 60 किलो अचार पहुंचा देना। हमारे यहाँ बहुत बड़ा भंडारा है। 


एक हफ्ते में हम तुम्हारे घर पर कुछ लोगों को भेज देंगे रात को इसलिए तुम सारा सामान तैयार रखना। "

चंदू," जी जमींदार साहब। "

रात को जमींदार के लोग चंदू के घर नहीं पहुंचे, रात भी काफी हो गई थी।

मीना," ऐसा करिये, आप सो जाइए। अगर कोई आया तो हमें पता चल ही जाएगा, तब उठकर उनका सामान उन्हें दे देंगे। "

मीना," तुम ठीक कहती हो। सो जाना चाहिए, क्या पता वो आज ना आये ? चलो सो जाते है। "

अगले दिन जब चंदू और मीना उठे तो घर में फिर से चोरी हो चुकी थी। इस बार चोरी अचार की हुई थी। 

मीना," सुनिए... घर में फिर से चोरी हो गयी है। किसी ने इस बार हमारा रखा हुआ अचार चुरा लिया। 

चंदू उठा और जाकर अचार जहाँ रखा था, वहाँ देखने लगा।

चंदू," मैं जमींदार साहब को बताकर आता हूँ। उन्हें कहीं और से पता चलेगा तो कहीं वो गुस्सा ना हो जाऐं। "

मीना," ठीक है, आप संभाल लेना सब कुछ इस बार। "

चंदू जमींदार साहब के घर गया।

चंदू," जमींदार साहब, इस बार फिर से आप के लिए जो हमने अचार तैयार किया था, वो चोरी हो गया। "

करोड़ीमल," यह हमेशा मेरे साथ ही क्यों हो रहा है ? मैं तुमसे कुछ भी मंगाता हूं और वो तुम्हारे घर में चोरी हो जाता है। 

मुझे लगता है तुम मुझे अपना सामान बेचना ही नहीं चाहते।
ठीक है, मैं भी नहीं खरीदूंगा आज के बाद तुम्हारा कोई सामान जाओ। "

चंदू," ऐसी बात नहीं है, जमींदार साहब। आप खुद ही सोचिए, मैं आपसे दुश्मनी क्यों मोल लूँगा ? 

आप चिंता मत करिए। मैं आपके लिए दुबारा से 60 किलो अचार तैयार करता हूँ। "

करोड़ीमल," ठीक है, अगर इस बार कुछ हुआ तब देख लेना। "

चंदू अपने घर गया और सोचने लगा कि अब इस चोर को कैसे रोकें ? इस बार चंदू ने बहुत सारे मटकों को एक जगह पर रखा और चला गया। अचानक आधी रात को आवाज आयी। 


सारे के सारे चोर दर्द से चिल्ला रहे थे। अब जैसे ही चंदू उस कमरे में गया जहाँ पर अचार रखा हुआ था, तो वहाँ देखा... सारे के सारे चोर जमीन में लेटकर चिल्ला रहे थे और अपनी आंखें मल रहे थे।

चोर," ये क्या कर दिया, कोई बचाओ हमें। पानी... पानी दो हमें कोई। अरे ! हमारी आंखें जल रही हैं। "

चंदू," अब आया ना मज़ा ? मेरे घर में जैसे तुम्हें आदत ही पड़ गई है चोरी करने की। क्या मज़ा आता है तुम्हे ये करके ? 

इतना दिमाग चोरी में लगाते हो, कुछ और कर लेते ना, अभी चैन से अपनी जिंदगी बिता रहे होते पर नहीं... तुम्हे तो चोरी करनी है। लोग करो अब। अब चलो बताओ, क्यों कर रहे थे चोरी ? "

चोर," ये सब हम अपनी मर्जी से नहीं कर रहे थे। हमें सब करने के लिए बाबूलाल ने कहा था। "

चंदू," क्या..? बाबूलाल... भला उसे क्या जरूरत पड़ गयी ? "

चोर," ये तो मुझे नहीं पता, आप हमें माफ़ कर दीजिए। अब पुलिस को मत बुलाना बस। "

चंदू," ठीक है, नहीं बुलाऊंगा। पर मेरी एक शर्त है... अगर गांव में तुमने दुबारा कभी चोरी की, तो बाबूलाल की मदद लेकर तुम्हें पुलिस के हवाले कर दूंगा। "

चोर," ऐसी नौबत नहीं आएगी, चंदू भाई। हमें माफ़ कर दो। "

इसके बाद चोर चले गए। अगले दिन चंदू जमींदार साहब के घर गया। उसने जमींदार साहब को सारी बातें बता दी।

चंदू," ज़मींदार साहब, ये बाबूलाल ही है जिसने आज तक हमारे घर में चोरियां करवाई है। "

करोड़ीमल," तुम कैसे कह सकते हो कि सारी चोरियां बाबूलाल ने ही कराई हैं ? "

चंदू," क्योंकि कल मैंने खाली मटके गोदाम में रखवाए थे और दरवाजे के ऊपर मिर्च की थाली रखवा दी थी। 

जैसे ही उन्होंने दरवाजा खोला, उनके ऊपर लाल मिर्च गिर गयी और उन सबकी आँखों में जलन होने लगी और वो चिल्लाकर पानी मांगने लगे। 

बस... मुझे पता चल गया। मैं उनके पास गया तो उन्होंने तोते की तरह सब उगल दिया।

करोड़ीमल," इस बाबूलाल को पकड़ लो और पुलिस को फ़ोन करो। "

तभी सेठ के आदमी बाबूलाल को पकड़कर लाते है।

बाबूलाल," मुझे माफ़ कर दीजिए, जमींदार साहब। कुछ कीजिये। भला मैं इतने सालों से आपके यहाँ काम पे हूँ, कुछ रहम करिये। "

करोड़ीमल," मुझसे क्या माफी मांग रहे हो ? गलत तो तुमने चंदू के साथ किया है, उससे माफ़ी मांगो। "


बाबूलाल," मुझे माफ़ कर दो, चंदू। मैं आज के बाद कभी ये सब नहीं करूँगा। लालच में मुझसे बहुत बड़ी गलती हो गयी। "

चंदू," गलती तो तुमसे हुई है लेकिन तुम्हें छोड़ देना मेरे वश में नहीं है। आज तुम्हें छोड़ दूंगा तो कल कोई और चोरी कर लेगा। 

उनके पास एक सबख जाना चाहिए कि जैसा करोगे वैसा भरोगे। इसलिए मुझसे किसी चीज़ की उम्मीद मत रखो। "

तभी दो पुलिस वाले आकर बाबूलाल को गिरफ्तार करके ले जाते हैं।

चंदू," भाइयो, अचार ले आओ। "

बहुत सारे आदमी अचार के भरे मटके ले आए।


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चंदू," ये लीजिये जमींदार साहब, इस बार आपके घर में हमारा सामान आखिरकार पहुँच ही गया। "

करोड़ीमल," ये लो... तुम्हारे पैसे, चंदु। तुम सच में ईमानदार और मेहनती किसान हो। हमें तुम पर नाज है। "

चंदू," आपका बहुत शुक्रिया सेठ जी ! चलिए अब मैं चलता हूँ। "

इसके बाद चंदू अपने घर लौट गया। इसके बाद से चंदू के घर में कभी कोई चोरी नहीं हुई और चंदू का काम भी बहुत अच्छे से चलने लगा।


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हेलो दोस्तों ! मैं हूं आपका अपना दोस्त, प्रदीप। यहां मैं कुछ अनोखी कहानियों के साथ आपका मनोरंजन करूंगा। अगर आपको हमारा लेखन कार्य पसंद आए तो हमें Support करें और अपना प्यार बनाए रखें।

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